Thursday, February 4, 2010

क्या गजब का शिगूफा छोड़ा है, माननीय !


देखा गया है कि हम हिन्दुस्तानियों की याददास्त बहुत कमजोर होती है, और शायद यही वजह रही होगी कि एक गुलामी झेलने के बावजूद भी दूसरी गुलामी हमारे सिर पा आ बैठी थी क्योंकि ये भुल्लकड़ हिन्दुस्तानी पिछली गुलामी की मार को भूल गए थे और इसी तरह दूसरी, दूसरे के बाद तीसरी और फिर उसके बाद चौथी गुलामी आराम से यहाँ पैर पसारती रही। भ्रष्टता के लिए हम लोग रोज नए नए फोर्मुले इजाद करते रहते है इसलिए याददाश्त कमजोर हो जाती है। अत: याद दिलाना चाहूँगा कि आज से ठीक एक साल पहले व्यापारी सुभाषचन्द्र अग्रवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय पर केन्द्रीय मंत्रियों और उनके रिश्तेदारों की सम्पति के ब्योरे का जानकारी नहीं देने का आरोप लगाते हुए कहा था कि कार्यालय ने इस मामले पर पलटी मार ली है।

श्री अग्रवाल ने सूचना के अधिकार कानून के तहत आवेदन देकर मंत्रियों और उनके रिश्तेदारों की सम्पति का ब्योरा माँगा था। उन्होंने बताया प्रधानमंत्री कार्यालय शुरुआत में यह जानकारी देने को तैयार हो गया था, पर 17 दिसम्बर 2008 के एक पत्र में उसने पलटी मारते हुए कहा कि माँगी गई जानकारी सूचना के अधिकार कानून की 8.1 (ई) और 8.1. (जे) के तहत व्यक्तिगत जानकारी बनती है। अतः इसका खुलासा नहीं किया जा सकता। अग्रवाल ने जब यह जानकारी लेने के अनेक प्रयास किए तो 27 जनवरी २००९ को प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें पुन नकारात्मक जवाब मिला। आवेदनकर्ता ने एक टीवी चैनल को बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने मंत्रियों की सम्पति की जानकारी 19 मई 2008 को कैबिनेट सचिवालय को दी है, ताकि सूचना के अधिकार कानून के तहत इसकी जानकारी माँगने पर दी जा सके। श्री अग्रवाल ने तब केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील की । इसके मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जवाब बदलने का कारण पूछे जाने का जिक्र था । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय के इस निर्णय ने सरकार की प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की ईमानदारी पर प्रश्न खड़ा कर दिया।

किरकिरी हुई तो अपने को पुन: जनता की नजरों में एक भला( भोला-भाला और ईमानदार ) व्यक्ति साबित करने के लिए माननीय ने एक और नया शिगूफा छोड़ दिया है कि मंत्री और उनके रिश्तेदार फलां-फलां होमवर्क करें । लेकिन माननीय जी आपके ही राजनैतिक कुनवे में सुनता कौन है? याद दिलाना चाहूंगा कि पिछले लोकसभा कार्यकाल के दौरान भी इन सब नियमो को ताक पर रखकर करीब २० मंत्रियों ने अपनी संपत्ति का व्योरा नहीं दिया था ।

अत: कहना चाहता हूँ कि आपके पिट्ठू खबरिया चैनल जैसे कि इस सदी के महाभ्रष्ट और श्री रामगोपाल वर्मा की हाल में रिलीज फ़िल्म के किरदार इण्डिया २४/७ ( महाभ्रष्ट इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि मीडिया में जो भी बुराइयां आज हमें दिखती है, यही चैनल इन सब बुराइयों की जननी है ) आपकी जितनी मर्जी तारीफ़ करे, लेकिन क्या आपने कभी सोचा और यह देखने की कोशिश की कि देश की जनता जो आज इस भ्रष्टाचार के महादलदल में बुरी तरह पिस रही है, वो आपके बारे में क्या सोचती है? यह तो आप मानोगे कि पिछले ५-७ सालो में यह भ्रष्टता का दलदल अपनी सारी सीमाए लांघ चुका है । और अभी जो आपने यह शिगूफा छोड़ा है , यदि इसके बावजूद भी आपके मंत्री आपके आदेश का पालन नहीं करते, तो क्या आप उन्हें बर्खास्त करेंगे , या फिर खुद इस्तीफ़ा देंगे ? अथवा यह महज जनता की आँखों में धूल झोकने का एक और प्रयास मात्र समझा जाए ? एक महिला आरक्षण विधेयक था जो युगों से आपके दफ्तर की धूल चाट रहा है , क्यों ? सिर्फ इस डर के बहाने से कि जो आदमी अपनी बहु तक को संसद में बिठाना चाहता है, वही अपने समाजवाद की परिभाषा के अनुरूप किसी और की बहु को सदन में नहीं देखना चाहता ? क्या ही अच्छा होता कि आप एक क़ानून बनाते कि राजनीति के लिए पोलिटिकल मैनेजमेंट एक अनिवार्य डिग्री हो और किसी और पेशे का व्यक्ति राजनीति में न आये, वकील वकालात करे, राजनीति नहीं, क्योंकि आज की राजनीति की सारी बुराइयों को क़ानून के उलटे सीधे दावपेंच इन्ही दूसरे प्रोफेशन के लोगो ने राजनीति में आकर भ्रष्ट नेताओं को दिए है।

17 comments:

  1. "देखा गया है कि हम हिन्दुस्तानियों की याददास्त बहुत कमजोर होती है"

    सत्यवचन!

    यहाँ पर आपने जो कुछ भी लिखा है वह भी कुछ दिनों के बाद भुला दिया जायेगा।

    सांसद और मन्त्री किस काम के लिये वेतन लेते हैं, उनकी ड्यूटीलिस्ट क्या है, कर्तव्य पूरा न होने पर किस दण्ड का विधान है ऐसे प्रश्न भी पूछे गये थे किन्तु आज उन्हें भी भुला दिया गया है।

    ReplyDelete
  2. "...हिन्दुस्तानियों की याददास्त बहुत कमजोर होती है..." सिर्फ़ याददाश्त ही कमजोर नहीं है, बल्कि इतिहास से सबक न लेने की बीमारी भी है… :)

    ReplyDelete
  3. इस देश का कुछ नहीं हो सकता.... अब हम ब्यूरोक्रेसी के ग़ुलाम हैं... सिस्टम की को खराब कह सकते हैं... लेकिन बदल नहीं सकते...

    ReplyDelete
  4. भ्रष्टाचार एक घाव था छोटा बढ़कर अब नासूर हुआ।
    हाल यहाँ का अब ऐसा कि जान बचाना मुश्किल है।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. सुरेशजी से सहमत ...!!

    ReplyDelete
  6. godiyal ji
    isiliye kaha gaya hai ki ye bharat nhi india hai jahan kuch bhi ho sakta hai.

    ReplyDelete
  7. हमें एक बात याद रहती है, हम महान है.

    कैसे महान है यह आप सोचें, हम तो महान है.

    महान लोग न याद रखते है न सीखते है.

    ReplyDelete
  8. दिमाग (स्मृति, और वह भी समय पर काम आने वाली समृति) सुरक्षा का सबसे बड़ा साधन है। उसे बनाये रखने का सबसे अच्छा तरीका स्मृति को समय-समय पर ताजा (री-फ्रेश) करना है।

    आपका कहना सही है कि हम बहुत भुलक्कड़ हैं। पर इसके लिये एक कारगर 'मेमोरी-रिफ्रेशिंग यूनिट' लगानी चाहिये। आपने यही काम एक लघुस्तर पर किया है।

    ReplyDelete
  9. याददास्त तो कमजोर होगी ही...सरकार निर्णय लेने मे ही इतनी देर करती है कि जनता भूल जाती है....विपक्ष भी तभी गढे मुर्दे उखाड़्ता जब उसे कोई फायदा नजर आता है...अब तो लगता है कुछ नही बदलने वाला।

    बढिया पोस्ट ।

    ReplyDelete
  10. दरअसल याददाशत के जिंदा बने रहने के तमाम खतरे हैं तो फिर क्यों न इसे यूंही रहने दिया जाए।

    ReplyDelete
  11. कानून बने या कमिटी .. जबतक भ्रष्‍टाचार समाप्‍त नहीं होता .. हमारी स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा !!

    ReplyDelete
  12. ये याददाश्त क्या होती है?:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  13. बिल्कुल दुरुस्त कहा .......... हम हिंदुस्तानियों की यादाश्त की कमज़ोरी का ही नतीजा है की आज हम भूल गये की ६३ साल पहले अंगेरोन से आज़ादी मिली है ..... आज फिर एक विदेशी महिला हमारे देश की सत्ता पर काबिज है ......... वो भी बिना अधिकारिक पोस्ट के .......

    ReplyDelete
  14. आप एक क़ानून बनाते कि राजनीति के लिए पोलिटिकल मैनेजमेंट एक अनिवार्य डिग्री हो

    बिल्कुल सही सोच! यदि ऎसा हो जाए तो समझिए भारतीय राजनीति से आधी से अधिक गंदगी साफ हो जाए....

    ReplyDelete
  15. कानुन सब गरीबों के लिए,
    माल सब अमीरों के लिए
    इसकी फ़रियाद कहां पर हो
    रास्ते है जी हजुरी के लिए।

    अच्छी पोस्ट आभार

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।