Thursday, February 18, 2010

संघ की एक 'वृहत हिन्दू मंच' के तहत पिछड़ी दलित-दमित जातियों को साथ लेकर चलने की नई मुहीम कहीं हमारे कुछ समाज विज्ञानियों के पेट-दर्द का सबब न बन जाए।

डिस्क्लेमर: मैं संघ का किसी भी तरह का सदस्य नहीं हूँ !
इस देश में कुछ वो जयचंद वंशीय स्वार्थी तत्व जिन्हें सिर्फ और सिर्फ समाज को बांटे रखकर अपना उल्लू सीधा करना भाता है, अक्सर स्वयं सेवक संघ (आर एस एस ) पर यह आरोप लगाते रहे है कि यह हमेशा से सिर्फ हिन्दुओं के लिए खुला रहा है। यह खुले तौर पर कहता है कि यह हिन्दुओं के हितों की सेवा करने के लिए है। संघ ने कभी भी निचली जातियों या निचले वर्गों के हिन्दुओं के लिए कोई काम नहीं किया है। लेकिन अब जब आर एस एस दलित और निचली जातियों के लिए एक ख़ास मुहीम लेकर आया है तो इनके पेटों में दूसरी तरह का दर्द उठने लगा है , इन्हें यह भी याद दिलाना चाहूँगा कि संघ ने समरसता अभियान चलाकर दलितों व निम्न तबकों को जोड़ने पर पिछले दशकों में ज्यादा जोर दिया है, और आदिवासी दलित इलाको में इस सम्बन्ध में कुछ प्रशंसनीय कार्य भी किये। मगर यह बात किसी से छुपी नहीं है कि हमारे कुछ तथाकथित सेकुलरों और मिशनरियों को यह रास न आया, और परदे के पीछे रहकर इन्होने फिर विदेशो से इक्कट्ठा किये धन के प्रभाव से नक्सलियों के जरिये अपने कुकृत्यों और मंसूबो को अंजाम दिया, और आज भी दे रहे है। इनका बस एक ही मकसद है कि सुनियोजित ढंग से हिंदुस्तान को सदा के लिए इस तरह से बांटे रखा जाये कि ये कभी भी एक न हो सके, और इन जयचंद वंशियों की रोटियाँ सिकती रहें।

अक्सर बुद्धिजीवी वर्ग जब धर्म और देश हित के बारे में विचार करता है तो हिन्दू बुद्धिजीवियों की यह शिकायत रहती है कि चूँकि हम हिन्दू आपस में ही बंटे हुए है, इसलिए हम एकजुट होकर किसी दूसरे धर्म और देश का मुकाबला नहीं कर पाते। देश की कुल आवादी का १८-२० प्रतिशत वाला एक ख़ास वर्ग आज भी इस देश की राजनीति की दिशा मोड़ पाने में सक्षम है, क्योंकि हिन्दुओ में एकजुटता नहीं है। और इन सभी बातो पर गौर करने के बाद अभी जब हाल की बैठक में संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत की अध्यक्षता में यह फैसला लिया गया कि पिछड़ी दलित-दमित जातियों को साथ लेकर चलने की नई मुहीम पूरे देश में छेड़ी जाए, जिसके लिए कुछ उपायों के तहत इन जातियों के लोगो को भरोसा दिलाने हेतु और उन्हें एक वृहत हिन्दू मंच के तहत लाने हेतु कुछ संस्थाओ और पंथ प्रमुखों, जाति समाजों जैसे बाल्मीकि समाज, पासी समाज जैसे निचले समुदायों तथा दलित और पिछड़ों के बीच लोकप्रिय पंथ जैसे कबीर पंथ, वाल्मीकि पंथ वगैरह की मदद से हिन्दुओ के बिखरे समाज को एकजुट करने का प्रयास किया जाएगा। हालांकि इन कुछ संस्थाओ के लिए हिन्दुत्व के मजबूतीकरण के प्रयासों को जोड़ना एक नयी चुनौती होगी क्योंकि इन कुछ संस्थाओ में कुछ अन्य धर्मो के लोग भी सम्मिलित है, मगर फिर भी अपने प्रयास के तहत आर एस एस हिन्दुत्ववादी राजनीति दलितों और निचले तबकों को अपनी राजनीति में शामिल करने के लिए अत्यन्त तेजी से अग्रसर हुई है।

और बस, इन्ही खबरों के चलते हमारे कुछ तथाकथित समाज विज्ञानियों की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। ये भला यह कैसे बर्दाश्त कर पायेंगे कि सभी हिन्दू एकजुट हो जाए ? अगर ऐसा हुआ तो फिर इनकी सत्ता डगमगाने लगेगी। ये अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पायेंगे, और इसी भय से ये लोग दुबले हुए जा रहे है। जातियों के बीच आपस में वैमनस्यता फैलाने की नई तरकीबो पर इनके शैतान दिमाग तेजी से चलने लगे है।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।