Tuesday, February 9, 2010

क्या वोट-बैंक सचमुच इतना अक्लमंद है ?

यूँ तो इस देश की सबसे बड़ी बिडम्बना ही यह है कि यहाँ कुछ भी निश्चित (दृड, ठोस) नहीं है! एक तरफ तो हम और हमारा संविधान कहता है कि देश के सभी नागरिक समान है, कोई रंग-भेद, जाति-वर्ण, धर्म इत्यादि का फर्क नहीं है! और यदि इसमें कोई भेद करता है तो उसके खिलाफ सख्त क़ानून है! एवं दूसरी तरफ सरकारी नौकरी पाने और अपने फायदे के लिए भिन्न-भिन्न राजनैतिक दलों की सरकारें तथा वे स्वार्थी लोग, जिन्हें इसमें फायदा दीखता है, खुद ही जाति-धर्म के आधार पर समाज को बांटने पर तुले है ! तब ये समानता की परिभाषा भूल जाते है! मेरा यह तर्क है कि जब कोई पिछड़ा अल्प्संखयक अथवा दलित यह कहता है कि चूँकि उन्हें हमारे समाज में बहुसंख्यको और उच्च जाति कि लोगो ने शोषित किया, इसलिए उन्हें अपना उत्थान करने के लिए संरक्षण/ आरक्षण जरूरी है तो भाई साहब, चाहे जिन भी कारणों से भूतकाल में सवर्णों और बहुसंख्यको ने आपको शोषित किया हो, तो क्या उसका बदला आप आज की पीढी पर निकालोगे, उनके हक़ और अधिकार मारकर ? आज जब आपकी चल रही है तब आप जमकर कानूनों और अपने ओहदे का जहां तक हो पाता है खूब दुरुपयोग कर रहे है, और इसे आप सही भी मानते है तो जब पूर्व में सवर्णों और बहुसंख्यको की चलती थी, और उन्होंने आपका शोषण किया तो क्या गलत किया? आज आप भी तो वही सब कर रहे है, उनमे और आप में फर्क क्या है ?

यह तो सर्वविदित है कि सरकारे सिर्फ अपने फायदे और राजनीति में वोट के लिए यह बांटने का खेल खेलती है, अगर ऐसा न होता तो इन समाज के गरीब और शोषित लोगो के रहन-सहन के उत्थान और इनको शैक्षणिक सुविधाए मुहैया कराने से हमारी सरकारों को किसने रोका था ? लोगो के उत्थान के लिए बेहतर माहौल और सुविधाए मुहैया करा सकते थे, ताकि गरीब और दलित का बेटा-बेटी भी समाज के अन्य तबको के बच्चो से एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के योग्य बन पाते ! मगर जहां प्रतियोगिता के माध्यम से श्रेष्ठता की बात आती, वहा बिना किसी भेद-भाव के सभी को उचित अवसर दिया जाता ! इस आरक्षण से फायदे की बजाये देश का नुकशान ही अधिक हो रहा है , क्योंकि आरक्षण के जरिये अकुशल और भ्रष्ट लोग शासन पर काविज हो गए है! नतीजा यह है कि आज देश भ्रष्टाचार से बूरी तरह जूझ रहा है! शासन निरंकुश है, और ये राजनेता तो यही चाहते थे कि देश में नालायको की फ़ौज खडी हो जाए, ताकि ये अपने मन मुताविक उन्हें नचा सके !

अब मुख्य टोपिक पर आता हूँ, चुनाव से पहले आंध्र प्रदेश में हमारी धर्म निरपेक्ष सरकार ने वोट बैक को हासिल करने के लिए ४% आरक्षण का चारा फेंका था, जिसे कल ही वहां के हाईकोर्ट ने नकार दिया, क्योंकि यह उचित नहीं था! चूँकि अब वहाँ चुनाव हो चुके, तो लगता है फिलहाल उस चारे की हमारे सेक्युलर नेताओं को जायदा अहमियत नजर नहीं आती! मगर एक तरफ जहां आंध्रा के उच्च न्यायालय ने इसे गलत करार दिया वही पश्चिम बंगाल सरकार ने १०% का चारा वहां भी फिर से फ़ेंक दिया, क्योंकि अब वहाँ भी चुनाव सर पर है ! और पिछले दो सालो से वहाँ पर कम्यूनिस्टो की हालत पतली चल रही है! यूँ तो पश्चिम बंगाल में वोट बैंक कम्यूनिस्टो का चुनाव जीतने का एक प्रमुख हथियार रहा है, क्योंकि वहाँ क़रीब 28 फ़ीसदी मुसलमान हैं, और उनके वोट भी पारंपरिक और ज़रूरत के हिसाब से वाम मोर्चे को ही जाते रहे हैं ! इनमें से कई वाम मोर्चे की मेहरबानी से सीमा पार से आकर बसे हैं ! ये वोट भी वाम मोर्चे की मुट्ठी में रहा है फिर वोटर जनता को चुनाव बूथों तक लाने का काम लाल ब्रिगेड की युवा शक्ति बख़ूबी करती आयी है ! लेकिन अब उन्हें ममता बनर्जी की तरफ से जो कड़ी टक्कर मिली है, तो उनको अपना भविष्य डांवाडोल नजर आने लगा !

खैर, अपने इन राजनेतावो की तो कहाँ तक तारीफ़ करे, मगर मुझे आश्चर्य उस वोट बैंक पर होता है जिसे ये इस्तेमाल कर रहे है, अपने फायदे के लिए ! क्या वोट-बैंक वाले इतना भी नहीं समझते कि इनका उद्देश्य क्या है ? कल चुनाव हो जायेंगे तो वहाँ भी आन्ध्रा की तर्ज पर कोई कोर्ट आरक्षण को अवैध करार देगा! और ये फिर से कहलायेंगे, बहुसंख्यको द्वारा शोषित लोग ! मगर लाख टके का सवाल यह है कि इन राजनेताओ को इस वोट बैंक को इतना बुद्धिमान समझने का नुख्सा दिया किसने
?


वो जो कुछ
निक्कमे, निर्लज,misfit थे,
आज राजनीति में fit हो गए !
खुद के
विकसित होने की
जल्दवाजी में,
बिक गए और shit हो गए !!

8 comments:

  1. राजनीति भी जो ना करा दे.....

    बहुत बढ़िया पोस्ट.....

    फिलहाल अभी बाहर जा रहा हूँ..... परसों आपसे मिलता हूँ.....

    तब तक के लिए बाय बाय....

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  2. यह आरक्षण देश हित मे होता यदि जाति की जगह आर्थिक मुद्दो पर किया जाता....लेकिन वोट की राजनिति करने वालों को सिर्फ अपना हित नजर आता है इस लिए यह सब हो रहा है..।
    बढिया पोस्ट लिखी।धन्यवाद।

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  3. इन राजनेताओ को इस वोट बैंक को इतना बुद्धिमान समझने का नुख्सा दिया किसने ?
    सही में लाख टके का सवाल!

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  4. खैर, अपने इन राजनेतावो की तो कहाँ तक तारीफ़ करे, मगर मुझे आश्चर्य उस वोट बैंक पर होता है जिसे ये इस्तेमाल कर रहे है, अपने फायदे के लिए ! क्या वोट-बैंक वाले इतना भी नहीं समझते कि इनका उद्देश्य क्या है ?

    जिस रोज समझ जायेंगे उस रोज समस्या ही खत्म हो जायेगी.

    रामराम.

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  5. आपने सच कहा है की कोई रंग-भेद, जाति-वर्ण, धर्म इत्यादि का फर्क नहीं है! और यदि इसमें कोई भेद करता है तो उसके खिलाफ सख्त क़ानून है! कैसी विडम्बना है!
    आपने यह भी लिखा है , "मगर लाख टके का सवाल यह है कि इन राजनेताओ को इस वोट बैंक को इतना बुद्धिमान समझने का नुख्सा दिया किसने ?"

    गुलामी के ज़माने में अँगरेज़ लोग इसी किस्म के नुख्से को ज़रा अलग ढंग से इस्तेमाल करते थे और यह अब हमें विरासत में मिला है. विडम्बना यह है कि इस विरासत में मिले हुए नाग को अपने गले का हार मानकर देश में ज़हर फैला रहे हैं.
    महावीर शर्मा

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  6. जब तक हम लड़ते-बटते रहेंगे तब तक राजनेता हमें लड़ाते रहेंगे | अब दलितों को यही लगता है की माया बहिन ही उसका उद्धार करेगी .. दलित को मिहनत करने की जरुरत ही नहीं है | वैसे मुस्लिमों का कांग्रेस प्रेम किसी से छुपा नहीं है ... आजादी के ६० वर्षों बाद भी मुस्लिमों को यही सिखया पढ़ाया जा रहा है की उसका भविष्य मदरसे की पढाई मैं ही है .... अब क्या कहें ..

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  7. जनता के मानस में यह विश्‍वास दृढ हो चुका है कि राजनेता जो भी करते हैं सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए , इस काम के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं ।

    होड चल रही है...

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  8. zabardast pravaah !

    zabardast baat

    zabardast aalekh !

    jai ho !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।