Thursday, February 4, 2010

जीना तो बस टाइम पास रह गया !

मकसद न अब जीने का, यहां कुछ ख़ास रह गया,
यूँ  लगे है कि जीना तो बस, टाइम पास रह गया।

ढोये जा रहे बोझ को, मानो  किसी कुली की तरह,
गाडी आई-गई, स्टेशन का ही अहसास रह गया।  


कोई न हमसफ़र,चले अकेला मंजिल-ए-मुसाफिर,
बेरहम  है ये दुनिया, सोचके दिल उदास रह गया।

खुद के पैमानों पर जीना चाहते थे जिन्दगी मगर,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया।

सोचते थे यों कि  हमेशा चलेंगे शुतुरमुर्ग की चाल ,
बैसाखियों पर सिमटा ,बन्दा-ए-बिंदास रह गया।  

16 comments:

  1. अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
    वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !

    बेहतरीन, आभार

    ReplyDelete
  2. वास्तविकता ज़िन्दगी की । खूब कहा आपने ।

    ReplyDelete
  3. बढिया कविता! इसी को तो समय क फेर कहते हैं.
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  4. आप आजकल निराशा की बात क्‍यों कर रहे हैं। ब्‍लाग है ना उदासी मिटाने के लिए। वैसे बेहतरीन रचना है।

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन शब्‍दों के साथ सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  6. अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
    वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
    magar ham to blaag par aa kar sab udaasee bhagaa dete haiM racanaa bahut acchee hai aabhaar

    ReplyDelete
  7. एहसासो को बेहतरीन शब्द दिये है
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  8. अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
    वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !

    Waah !!! Bahut hi sundar rachna...

    ReplyDelete
  9. ढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
    स्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया !

    -बहुत उम्दा, वाह!

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन अभिव्यक्ति !वाह क्या कहने !!

    ReplyDelete
  11. अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
    वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
    ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

    ReplyDelete
  12. मकसद न यहाँ जीने का,अब कुछ ख़ास रह गया,
    यूँ समझिये, जीना तो, बस टाइम पास रह गया !

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  13. क्या बात है ! अहा !!

    ReplyDelete
  14. zindagi ki vastvikta ki sundar abhivyakti.

    ReplyDelete
  15. ढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
    स्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया ..

    अपने ही देश में अपनों के साथ ऐसा हो रहा है ...... सत्य तो है पर इतना कड़वा ........

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।