मकसद न अब जीने का, यहां कुछ ख़ास रह गया,
यूँ लगे है कि जीना तो बस, टाइम पास रह गया।
ढोये जा रहे बोझ को, मानो किसी कुली की तरह,
गाडी आई-गई, स्टेशन का ही अहसास रह गया।
कोई न हमसफ़र,चले अकेला मंजिल-ए-मुसाफिर,
बेरहम है ये दुनिया, सोचके दिल उदास रह गया।
खुद के पैमानों पर जीना चाहते थे जिन्दगी मगर,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया।
सोचते थे यों कि हमेशा चलेंगे शुतुरमुर्ग की चाल ,
बैसाखियों पर सिमटा ,बन्दा-ए-बिंदास रह गया।
यूँ लगे है कि जीना तो बस, टाइम पास रह गया।
ढोये जा रहे बोझ को, मानो किसी कुली की तरह,
गाडी आई-गई, स्टेशन का ही अहसास रह गया।
कोई न हमसफ़र,चले अकेला मंजिल-ए-मुसाफिर,
बेरहम है ये दुनिया, सोचके दिल उदास रह गया।
खुद के पैमानों पर जीना चाहते थे जिन्दगी मगर,
वक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया।
सोचते थे यों कि हमेशा चलेंगे शुतुरमुर्ग की चाल ,
बैसाखियों पर सिमटा ,बन्दा-ए-बिंदास रह गया।
अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
ReplyDeleteवक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
बेहतरीन, आभार
वास्तविकता ज़िन्दगी की । खूब कहा आपने ।
ReplyDeleteबढिया कविता! इसी को तो समय क फेर कहते हैं.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आप आजकल निराशा की बात क्यों कर रहे हैं। ब्लाग है ना उदासी मिटाने के लिए। वैसे बेहतरीन रचना है।
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दों के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
ReplyDeleteवक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
magar ham to blaag par aa kar sab udaasee bhagaa dete haiM racanaa bahut acchee hai aabhaar
एहसासो को बेहतरीन शब्द दिये है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
bahut khoobsurat ashaar hain..
ReplyDeletebadhaii..
अपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
ReplyDeleteवक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
Waah !!! Bahut hi sundar rachna...
ढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
ReplyDeleteस्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया !
-बहुत उम्दा, वाह!
बेहतरीन अभिव्यक्ति !वाह क्या कहने !!
ReplyDeleteअपने ही पैमानों पर कभी , जीने चले थे जिन्दगी,
ReplyDeleteवक्त की ठोकर में अटका, कतरा-ए-सांस रह गया !
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
मकसद न यहाँ जीने का,अब कुछ ख़ास रह गया,
ReplyDeleteयूँ समझिये, जीना तो, बस टाइम पास रह गया !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
क्या बात है ! अहा !!
ReplyDeletezindagi ki vastvikta ki sundar abhivyakti.
ReplyDeleteढोये जा रहे बोझ को, कुली की तरह दिन-रात,
ReplyDeleteस्टेशन पर गाडी आई-गई,यही अहसास रह गया ..
अपने ही देश में अपनों के साथ ऐसा हो रहा है ...... सत्य तो है पर इतना कड़वा ........