Saturday, February 20, 2010

वाह जी खुशवंत सिंह जी !

अभी कुछ देर पहले दैनिक हिंदुस्तान के गेस्ट कॉलम में जाने-माने और वयोवृद्ध लेखक श्री खुशवंत सिंह जी का एक आलेख पढ़ रहा था ! शीर्षक था "कितने अलग हैं राहुल और वरुण" यह तो काफी पहले से जानता था कि खुशवंत सिंह जी का एक ख़ास झुकाव नेहरू परिवार और कौंग्रेस के प्रति हमेशा से रहा है, और जो उनके लेखो में कई बार साफ़ परिलक्षित भी होता है! लेकिन मेरा हमेशा यह मानना है कि एक लेखक और साहित्यकार ज्यों-ज्यों वृद्ध होता चला जाता है, उसकी बौद्धिक क्षमता में निखार आता चला जता है! उसकी तर्क शक्ति निष्पक्ष होती चली जाती है! परन्तु आज उनका जब यह लेख पढ़ा तो न जाने मैंने क्यों अपने इस आत्मविश्वाश को डगमगाते पाया ! समझ नहीं पाया कि खुशवंत सिंह जी जैसे प्रसिद्ध लेखक ऐसे कैसे सोच सकते है? आइये, उनके उस लेख की एक हल्की सी झलक आप भी देख लीजिये, और खुद निर्णय कीजिये कि इस बात को नजरअंदाज कर कि इस देश ने यहाँ के सर्वोच्च पद पर एक सिख राष्ट्रपति और एक सिख प्रधानमत्री बिठाया था / है, मेनका जी के माध्यम से सिखों के प्रति इस देश के लोगो की सोच के बारे में उन्होंने जो कहा,क्या वह सत्य है? चूँकि खुशवंत सिंह जी एक जाने-माने " सेक्युलर" किस्म के लेखक है,इसलिए हमारे "सेक्युलर पाठको" को इसमें कोई खोट नजर न आये,मगर क्या यह एक ख़ास सम्प्रदाय के मन में कडुवाहट या विद्वेष पैदा नहीं करता ?

"........ फिलहाल तो मैं केंद्र के विकल्पों को लेकर परेशान हूं। सोनिया गांधी और मेनका को ‘बाहरी’ माना जाता है। सोनिया को इसलिए कि वह इतालवी कैथोलिक हैं। और सिख होने की वजह से मेनका। सोनिया ने तो खुद को हिंदुस्तानियों से ज्यादा हिंदुस्तानी साबित कर दिया..................."

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।