Monday, February 22, 2010

नजारा !


बालकनी अथवा 
घर की खिडकी से 
बाहर गली में झांकना ,
यानि  कि  

दो सम्भाव्यताओं का  उदय।
या तो चक्षुओं को

सकून अथवा पीड़ा का अनुभव ,
या फिर कानों को कटु-मीठी श्रुति प्राप्ति ॥

पड़ोस के मकान की छत पर,
कोई चांद टहलता  सा दिखे ,
तो चक्षुओं को  सकूँ  मिलना  निश्चित। 

और यदि  नीचे गली में 
खम्बे की ओंट मे  खड़ा
कोई चकोर  भी नजर आये
तो  मधुर कर्ण-श्रुति  प्राप्ति  संभव ॥

किन्तु, यदि अचानक,
उस खुशनुमा वातावरण  को 

प्रदूषित करने हेतु
अमावस्या  छत पर आ जाये ।
चकोर फुदककर भाग खड़ा हो ,
चांद दुबककर कहीं छुप जाए
तो  कानो को कटु श्रुति 

और चक्षुओं को पीड़ा का अनुभव होना  अपरिहार्य ॥

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।