Thursday, October 8, 2015

कुछ कर !




बाजुओं में अपनी, तू बल जगा ,
किसान का वंशज है, हल लगा। 
फटकने न दे तन्द्रा पास अपने,
आलस्य निज तन से पल भगा। 
किसान का वंशज है, हल लगा।। 



चिराग उपज का न कभी बुझे, 
पुकारती है खेत की माटी तुझे,
अंकुरित आशा का वो बीज हो, 
जिसे दे न पाये कभी जल दगा।
किसान का वंशज है, हल लगा।। 



समर्थ है शख्शियत,ये सिद्ध कर ,
परिश्रम से खुद को समृद्ध कर ,
तन नजर आये न मलीन झगा,
सीस पे चमके सदा शीतल पगा , 
किसान का वंशज है, हल लगा।।



जोत का ध्येय दिल में पाले रख, 
अन्न-कण श्रेष्ट को संभाले रख, 
कर बंजरों में भी वो प्रजननक्षम, 
बने जो तेरा खुद वसुधा तल सगा। 
किसान का वंशज है, हल लगा।।

वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...