उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी,
हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी,
अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहना,
रसूखदार हवेली के मालिकों की, धमक हुआ करती थी।
वक्त की परछाइयों तले, आज सबकुछ वीरान हो गया,
चोखट वीरान,देहरी ख़ामोश,आंगन में रमक हुआ करती थी।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 21 मई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
वक्त के साथ ...बदल जाते है हालात ।
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