Wednesday, March 30, 2011

जहां भगवान् ही अपना शतक न बना पा रहा हो...!

जहां तक मैं समझता हूँ, भारत और पाकिस्तान का शायद ही कोई ऐसा क्रिकेटप्रेमी होगा जो यह न जानता हो कि खेल खेल होता है, और दो टीमे जब आपस मे खेलेंगी तो अवश्य ही एक जीतेगी और एक हारेगी ! अधिक से अधिक यही हो सकता है कि मैच दोनों टीमों के बीच बराबरी पर छूटे (टाई रहे) ! और शायद बहुत से लोग मेरी इस बात से भी इत्तेफाक रखते हो कि किसी भी खेल में इससे अधिक की उम्मीद रखना शायद मूर्खता ही कहलायेगी ! लेकिन यह भी एक बिडम्बना ही है कि हम लोग कहाँ इतने में ही संतुष्ट होने वाले ठहरे , अत: हमने ढूढ़ निकाली एक नई दवा " क्रिकेट डिप्लोमेसी" !


दोनों ही पक्षों, भारत और पाकिस्तान में से कोई भी यह मानने को राजी नहीं कि यह दोनों देशों की टीमों के बीच सिर्फ एक एक दिवसीय खेल है और उनकी टीम इस खेल में सिर्फ और सिर्फ अच्छा खेले, बल्कि वे चाहते है कि बस उनकी ही टीम जीत हासिल करे ताकि वे दूसरे पक्ष को नीचा दिखा सकें ! जहाँ तक पाकिस्तान की टीम का सवाल है, मैं समझता हूँ कि अगर हम इस खेल को केवल खेल के ही दायरे में देखने की कोशिश करें, और हाल के वर्षों में उनके खिलाड़ियों के कारनामों की वजह से उनकी परफोर्मेंस का आंकलन करे, तो हम पायेंगे कि अगर पाकिस्तान की टीम मोहाली में इस मैच को हार भी जाती है, तो वह भले ही फाइनल में खेलने का अवसर चूक जायेगे, मगर जहां तक तथाकथित डिप्लोमेसी का सवाल है, वे ख़ास ज्यादा कुछ नहीं गवां रहे है ! अगर ऐसा न होता तो ऐन वक्त पर क्या वहां के एक मंत्री अपने खिलाड़ियों को मैच फिक्सिंग के प्रति इस तरह आगाह करते ? मगर जहां तक भारत की क्रिकेट टीम का सवाल है, शायद हमने अपनी अपेक्षाओं को बहुत ज्यादा पसार दिया, नतीजतन निश्चित तौर पर हमारी टीम दबाव में आ गई ! जिसके लिए बहुत कुछ हमारा मीडिया भी जिम्मेदार है!


मैंने पहले भी कई बार ब्लॉग पर लिखा है, और आज फिर से लिख रहा हूँ कि सचिन नि: संदेह दुनिया के एक श्रेष्ठतम क्रिकेट खिलाड़ी है, और जिसका उचित प्रतिफल उन्हें समय समय पर मिला भी ! लेकिन मेरे सज्जन देशवासियों , वह भगवान् नहीं है ! अगर भगवान् होता तो उसे इस तरह सेंचुरी ( शतक ) बनाने के लिए भला पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के कप्तानो के वो दृढ कटु- बाण क्यों सहने पड़ते कि सचिन शतक नहीं बना सकेंगे ! और वे अपने इस दावे में कामयाव भी हुए ! जैसा आप सब जानते है कि सचिन एक अच्छे खिलाड़ी है, और उन्होंने कई कीर्तिमान अपने नाम किये है, मगर, हमें यह भी समझना होगा कि यदि आप १२० करोड़ के देश में अन्य प्रतिभावान खिलाड़ियों का दरकिनार कर किसी एक खिलाड़ी को ही २१ सालों तक खिलाते रहोगे, तो भले मानुषो, वह कुछ न कुछ तो कीर्तिमान बनाएगा ही ! और अफ़सोस कि आज क्रिकेट एक भ्रष्ठ्तम देश ( एशिया का चौथा भरष्ट देश ) के अनेक महाभ्रष्ट लोगो का एक धर्म बनकर रह गया है ! दिखाने के लिए हम देश-भक्ति का जो नाटक रचते है उसका गवाह मोहाली है, कि एक तरफ तो हम अपने घोटालों को अनदेखा कर देते है और दूसरी तरफ क्रिकेट के मैच को देश की प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर, सब कुछ छोड़ छाड़कर देश-भक्ति दिखाने पहुँच जाते है ! हम यह भूल जाते है कि ये हमारे खिलाड़ी तो बौल-बल्ला घुमाने की ऐवज में अरबों में खेलकर हर लुफ्त उठाते है, मगर एक हमारा २१ साल का नौजवान लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया भी था, जिसने यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे भरष्ट देशवासी निर्भय होकर घोटाले कर सके, और मैच का बेफिक्र होकर लुफ्त उठा सकें, उसने भरी जवानी में अपनी कुर्बानी दे दी, बिना कुछ पाए !


एक खबर पर पर नजर गई थी कि मोहाली के इस मैच में विज्ञापन का खर्चा प्रति दस सेकेण्ड १८ लाख रूपये है ! आपने कभी सोचा कि जो वस्तु उत्पादन के बाद, उपभोक्ता को महज १५ रूपये में उपलब्ध हो सकती है, वह ६० रुपये में क्यों मिलती है ? सिर्फ इसलिए कि व्यापारी/ व्यवसायी उसकी लागत में इसतरह के विज्ञापनों का खर्च भी जोड़ता है ! दूसरी तरफ आज पूरा देश ठप्प सा हो गया, इसकी कीमत किसे चुकानी पड़ेगी ? खैर, हम लोग इस इकोनोमिक्स को नहीं समझ पायेंगे ! अंत में ( इस मोहाली के मैच के परिणाम से पहले) बस इतना कहूंगा कि मैं भी आप ही की तरह एक भारतीय होने के नाते तहेदिल से यह उम्मीद लगाए बैठा हूँ कि हमारी टीम यह मैच जीते ! अब भले परिणाम जो भी हो, लेकिन मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि जहां तक क्रिकेट डिप्लोमेसी का सवाल है, पाकिस्तान इस मैच को पहले ही जीत चुका है ! वैसे तो हम लोग विश्वशक्ति बनने का दावा करते फिरते है, मगर यह भी एक कडवी सच्चाई है कि आज भी हम भारतवासी, पाकिस्तान को ही अपना असली प्रतिद्वंदी मानते है ! और आज यह मैसेज दुनियाभर में भी खुलकर गया है ! जो पाकिस्तान के लिए तो निश्चिततौर पर गर्व की बात है मगर पता नहीं हम लोग कब सुधरेंगे ??????????India shuts down for India-Pakistan showdown Work across India and Pakistan will come to a grinding halt on Wednesday as bureaucrats, factory workers, farmers and millions of other cricket fans gather to watch the World Cup semi-final।Last minute ad rates for Mohali semifinal quoted at over $40,000 for 10 seconds.


और अभी -अभी :सभी देशवासियों को और अपनी क्रिकेट टीम को बधाई देता हूँ कि हम "सेमीफाइनल मैच" जीत गए!

कार्टून कुछ बोलता है-खिलाडियों का उत्साहवर्धन !




Monday, March 28, 2011

कुरुर पुनरावृति !





शर्मो -हया गायब हुई,

आंख,नाक,गालों से,

गौरवान्वित हो रहा,

अब देश घोटालो से ।


विदुर ने संभाला है,

अभिनय शकुनि का,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


द्यूत क्रीड़ा चल रही,

घर,दरवार,जेल मे,

पांसे खुद जुट गए,

शह-मात के खेल मे ।


इन्द्र-प्रस्थ पटा पडा,

कुटिल दलालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


एकलव्य का अंगूठा,

बहुमूल्य हो गया,

सुदूर दक्षिण का इक 
रंक-ए-राजा तुल्य हो गया ।


यक्ष भी हैरान है,

करुणाजनित जालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


गरीब-प्रजा से भी,

लगान जुटाने के बाद,

सफ़ाई के नाम पे,

अरबों लुटाने के बाद ।


गंगा-जमुना मजबूर है,

बहने को नालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


युवराज दुर्योधन है,

ताक मे सिंहासन के,

चीरहरण को आतुर है,

हाथ दू:शासन के ।


बेइज्जत हो रही द्रोपदी,

खाप-चौपालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


कहीं ढूढना न फ़िर,

अर्जुन-कान्हा पड़े,

इतिहास महाभारत का

न कहीं दुहराना पड़े।


कुरुक्षेत्र लहुलुहान न हो,

बाण-भालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


छवि गुगुल से साभार

Saturday, March 26, 2011

हताशा !

क्षमा चाहता हूँ कि शारीरिक व्यस्तता और मानसिक व्यथितता ने आजकल कलम द्वारा कागज़ के लेखन भंडारण क्षेत्रों में प्रवेश पर पाबंदी लगा रखी है ! मस्तिष्क और हाथ की उंगलिया हालांकि कभी-कभार निषेद्धाज्ञा का उल्लंघन करने की सोचते भी है, किन्तु वक्त अपने द्वारा अधिग्रहित और नियंत्रित क्षमताओं के क्षेत्र के विस्तार की अनुमति नहीं देता ! बस , यों समझ लीजिये कि जहाँ एक ओर अजीब सी कशमकश की स्थिति बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर अफवाहों का बाजार भी गरम है ! तेज तूफानी हवाओं के चलने और गरज के साथ छींटे पड़ने की भी आशंका जताई जा रही है! समूचे देह क्षेत्र के विभिन्न सम्प्रदायों और जातियों के बीच कोई सांप्रदायिक दंगा न भड़के, इसके लिए चक्षुगण लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए है! शरीर के अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में स्थिति तनावपूर्ण मगर नियंत्रण में बताई जाती है !

खैर, आज कर्फ्यू का उल्लंघन करने के पीछे दो कारण हैं, एक तो आज शनिवार है, यानि अन्य दिनों के मुकाबले थोड़ा हल्का बोझ और दूसरे अपने आस-पास घटित हो रही घटनाएं! आज ही एक साईट पर अमेरिका में चल रहे भारतीय मूल के रजत गुप्ता और श्रीलंकाई मूल के राजारत्नम के मुक़दमे के बारे में पढ़ रहा था ! थोड़ी देर के लिए सोचता रह गया की भारत में तो खैर चलो छोड़ो, हमारे कारनामों की बड़ी लम्बी फेहरिस्त है, लेकिन हमने दुनिया के दूसरे देशों में जाकर भी अपने कारनामे दिखाना बंद नहीं किया! आखिर दुनिया के समक्ष हम अपनी क्या छवि पेश करना चाहते है ? टूजी, राष्ट्रमंडल खेल, हसन अली इत्यादि-इत्यादि-इत्यादि और विकिलीक्स के खुलासों के बाद भी अगर हम यह उम्मीद करें कि दुनिया हमें अच्छी नजरों से देखे, तो शायद यह हमारी भूल है!कितनी हास्यास्पद बात है कि विकिलीक्स ने जिस देश की गुप्त सामग्री पर हाथ डालकर उसे सार्वजनिक किया, वह देश तो उसके द्वारा जारी उन तथ्यों को झुठला नहीं रहा और हम सिरे से झुठला रहे है ! और तो और मुखिया ही अगर अपनी जनता से ईमानदारी बरतने की सलाह देने का नैतिक अधिकार खो दे, तो किसी अन्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है ? और हमारे महान मीडिया की तारीफ़ के कसीदे कसने के लिए तो शब्द ही नहीं मिलते कि किस तरह वह अपनी सच्ची-झूठी कहानियों को ठीक उसी वक्त पेश करता है, जिस वक्त कोई अहम् सवाल देश के इन कर्ता-धर्ताओं से पूछा जा रहा हो ! नाम के लिए देश आजाद हुआ, मगर क्या देश के उस आमजन को सचमुच आजादी मिली, जिसने सच्ची आजादी की चाह की थी ?



विक्किलीक्स के खुलासे नहीं होते तो हम कहाँ से जान पाते कि हमारे देश और इसके इन महान कर्णधारों के दिलों में क्या-क्या पकता है ? एक मंत्री जी तो यहाँ तक कह गए कि यह देश शायद तब ज्यादा प्रगति करता, अगर इस देश में उत्तर और पुर्व भारत नहीं होता ! हा-हा... इन महाशय के कहने का आशय क्या रहा होगा, वह तो वही बेहतर जानते होंगे, मगर इससे इतना तो मालूम हो ही गया कि हमारे दक्षिण भारतीयों के दिलों में क्या-क्या पकता है! और गुलाम मानसिकता और चाटुकारिता की हमारी हदें देखिये कि यह सब बोलने के लिए भी हम अमेरिकियों के मुहं पर जाते है ! अब जब यह बात निकली है तो मैं भी यहाँ अपने कुछ अनुभव जरूर शेयर करूंगा! मैं जब कभी दक्षिण भारत के टूर पर जाता हूँ, तो चेन्नई और हैदराबाद के अपने कुछ मित्रों के मुख से एक-दो बार यह सुनने को मिला कि पॉलिसी का प्रीमियम हम भरते है और बीमा कंपनियों से क्लेम उत्तर भारतीय खाते है! कहने का उनका आशय यह समझिये कि हम ज्यादा ईमानदार है,जबकि उत्तर भारतीय कम!मैं यह कदापि नहीं कहूंगा कि वे एकदम गलत कह रहे है, मगर साथ ही यह भी कहूँगा कि उनका यह खुद को ईमानदार दिखाना एक ढोंग मात्र है, और अराजकता और भ्रष्टाचार भी उनके अन्दर उतना ही कूट-कूट कर भरा है! और इसका ताजा उदाहरण है टूजी और कॉमन वेल्थ गेम के नाम पर इस देश के ऊपर ढाई-लाख करोड़ का चूना ! और यह चूना लगाने वाले दक्षिण और पश्चिम के ही ज्यादा खिलाड़ी है ! :)

एक और उदाहरण दूंगा, चूँकि मैं खुद भी निजी निर्माण क्षेत्र से जुडा हुआ हूँ, इसलिए थोड़ा बहुत इस बात का अनुभव मुझे भी है कि इस क्षेत्र में क्या-क्या चल रहा है ! निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार मैंने पहली बार १९९७ में देखा था, जब दक्षिण की एक फर्म yell and tea के एक कर्मचारी का ऐसा मुद्दा मेरे समक्ष आया था ! उसके बाद अब देख रहा हूँ कि प्राइवेट क्षेत्र में जो भ्रष्टाचार आज दक्षिण में पैर पसार रहा है, वह अभी उत्तर में हरगिज नहीं है ! खरीद का ठेका देने वाली फर्म के मालिक अथवा कर्मचारी द्वारा रेट में पहले से अपना मार्जिन तय कर लेना , बाद में उसे नकदी में वापस लेना, आजकल वहाँ एक आम बात हो गई है ! अगर और कुछ न मिले और मान लीजिये कि विक्रेता कंपनी नॉर्थ की है, और खरीददार साउथ का, तो रेट में हेराफेरी कर विक्रेता के खर्चे पर फैक्ट्री विजिट करने का बहाना करके दो दिन अपनी फेमली को आगरा, उत्तरभारत घुमाकर हवाई यात्रा कराकर, पंचतारा होटल का लुफ्त उठाकर चला जाता है ! कहने का तात्पर्य यह है कि निजी क्षेत्र को भी धीरे-धीरे जो भ्रष्ठाचार का ग्रहण इस देश में लग रहा है, उसमे काफी कुछ योगदान दक्षिण और वेस्ट का है! तो जो यह कहते है कि सिर्फ उत्तर भारत ही भ्रष्ट है, बाकी सब ईमानदार है, तो वे इस मुगालते में कतई न रहें !

यह भी खुलासा है कि किस तरह राजनैतिक पार्टियों ने पिछले चुनाव में वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए तमिलनाडु में सुबह के अखबार के अन्दर नोटों के पैकेट रखकर वोटरों के घरों में फिंकवाये , लेकिन ताज्जुब है कि इस घटना के बारे में किसी एक ईमानदार वोटर ने भी कम्प्लेंन नहीं की ! एक मजेदार बात मुझे पिछले सितम्बर में विसाखापत्तनम से विजयवाड़ा सड़क मार्ग से जाते हुए उस टैक्सी ड्राइवर ने बताई थी जिसे मैंने एयरपोर्ट से किराए पर लिया था कि तमिलनाडु में वहाँ की सरकार गरीब वोटरों को रिझाने के के लिए उन्हें दो रूपये कीलो चावल देती है और फ्री टीवी-बिजली उपलब्ध कराती है, परिणामत एक झुग्गी में रहने वाला श्रमिक सिर्फ दिनभर टीवी देखता है और यही धंधा करता है कि इधर २ रूपये कीलो चावल खरीदकर वहीं बगल में ८ रूपये कीलो में बेचता है और उसी में उसका गुजारा चलता है, वह काम-धाम नहीं करता! अब सोचिये कि एक वह उत्तर का किसान है, जो कमरतोड़ मेहनत कर अन्न उपजाता है, और उसे उसकी उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिलता, उसके अनाज के लिए सरकार के पास गोदाम नहीं है, और दूसरी तरफ ये फ्री का खाने वाले है!अब अपने देश की पत्थर फेंकू युवाशक्ति की महिमा का गुणगान सुनिए ! अगर आप हैदराबाद के आस-पास रहते हो अथवा हाल ही में हैदराबाद गए हो, तो एयरपोर्ट जाते वक्त आपने नोट किया होगा कि बंजारा हिल्स की अधिकतर बिल्डिंगों ने आजकल जालीनुमा बुर्का पहन रखा है ! कौतुहलबश टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि भाई क्या यहाँ आजकल बहुत कंसट्रकशन चल रहा है ? तो वो बोला नहीं बाबूजी, यहाँ हमारी यूनिवर्सिटी की युवाशक्ति आजकल तेलंगाना के लिए पत्थर फेंकने का खेल खेलती है, इसलिए लोगों ने मजबूरन अपने घरों को बचाने के लिए उन्हें ऊपर से नीचे तक जाली पहना रखी है! अब आप सोचिये कि कितनी संवेदनशील है हमारी यह युवाशक्ति, जो यह नहीं सोचती कि किसी के घरों पर पत्थर बरसाकर वो क्या हासिल कर लेंगे ?

आगे चलते है, तीन मार्च,२०११ की टाइम्स आफ इंडिया की एक खबर थी "..... marriage of youngest son of politician Kanwar Singh Tanwar, with Sohna ex-MLA Sukhbir Singh Jaunapuria`s daughter, Yogita. A Rs 33-crore, seven-seater chopper, gifted by Jaunapuria .... .The barber from the groom`s side was reportedly gifted Rs 2.5 lakh.But Tanwar is not the only one to spend big on a marriage. Several Gujjar leaders from
Delhi and its suburbs have hosted lavish weddings. Mercedes and BMWs have become common gifts. "An MLA`s son got a farmhouse, an Endeavour and two Santros recently besides huge cash. In several cases bride`s parents, who are into politics and are either sitting MLAs or ex-MLAs are gifting two Mercedes cars or a Hummer and huge quality of gold and silver," said a resident of Ghitorni." और दूसरी तरफ इन गुज्जरों को भी देखिये जो आरक्षण की अपनी मांगों को लेकर पिछले एक पखवाड़े से रेल पटरियों पर बैठ लोगो का जीना मुहाल किये हुए है ;



हमारे इस भ्रष्ट देश-समाज का एक और चेहरा देखिये; एक तरफ ये मिंया है जिनके पेट में आंत नहीं, मुंह में दांत नहीं ! इनका खुद का देश भले ही भ्रष्टाचार, और अराजकता के दल-दल में सिर के ऊपर तक डूब चुका हो, मगर इन्हें तो उससे कुछ ख़ास नहीं लेना देना ! इन्हें तो बस फिक्र है अपने धर्म की और लीबिया की !


और दूसरी तरफ यह आज की एक अहम् खबर है ;" Bahujan Samaj Party MLA Haji Yaqoob Quraishi once again made waves for displaying unusual extravagance at the wedding of his daughter in Meerut on Thursday. Besides a high end Audi car, Quraishi gave away 51 motor-bikes and 51 refrigerators together with jewelry worth Rs 1 crore as dowry to the bridegroom's family." पब मुद्दे पर प्रमोद मुथालिक को चड्डीयाँ भेंट करने वाले हमारे महिला संघठन ऐसे गंभीर विषयों पर ख़ास कुछ नहीं बोलेंगे, जिनकी वजह से आगे चलकर उन गरीब युवतियों और महिलाओं को अपनी आहुति देनी पड़ सकती है, जिनके माँ-बाप समाज की देखादेखी इतना दहेज़ दे पाने में सक्षम नहीं है !


सच में, बहुत अफ़सोस होता है यह देखकर कि यहाँ हर चीज बिकाऊ है, जिसे देखो वह बिका हुआ है ! जो नहीं बिका, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वह ईमानदार है , बल्कि बिकने की ताक में तो वह भी बैठा था, मगर उसे खरीदने वाला ही नहीं मिला ! जिसदेश में वोटर ५०-५० रुपये में बिक जाता है, एम् पी,विधायक, जज,मीडिया, और नौकरशाह पांच-पांच हजार रुपये में बिक जाते है, वह देश तो सचमुच भगवान भरोसे ही चल रहा है ! बस, तब कहीं जाकर कभी-कभार ऐसी चीजे देख दिल के किसी कोने को यह सांत्वना मिलती है कि शायद इस देश में इमानदारी ने अभी पूरी तरह दम नहीं तोड़ा है!





उज्जवल भविष्य
अमोघ है,
पूत के पाँव
पालने में ही दिख गए,
धंधा भी चोखा चला
भ्रष्टाचार का,
मुनीम जी
बही में लिख गए,
इससे बढ़कर और क्या
उन्नति के ख्वाब देखोगे,
ऐ भरत-सुत !
कि जो कुछ कमीने,
सेल्समैन रखे थे दूकान पर,
वो खुद भी बिक गए !!
चित्र इधर-उधर से साभार, बड़ा देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें !

Friday, March 18, 2011

मजेदार- पोलैंड में भगवान कृष्ण के खिलाफ केस!

(इसे आप अंगरेजी में गूगल सर्च पर भी ढूंढ सकते है )
दुनिया भर में तेजी से बढ़ता हिंदू धर्म का प्रभाव देखिये कि वारसॉ, पोलैंड में एक नन ने इस्कॉन (कृष्ण चेतना के लिए इंटरनेशनल सोसायटी) के खिलाफ एक मामला अदालत में दायर किया था ! नन ने अदालत में टिप्पणी की कि इस्कॉन अपनी गतिविधियों को पोलैंड और दुनियाभर में फैला रहा है, और पोलैंड में इस्कॉन ने अपने बहुत से अनुयायी तैयार कर लिए है ! अत: वह इस्कॉन पर प्रतिबन्ध चाहती है क्योंकि उसके अनुयायियों द्वारा उस 'कृष्णा' को महिमामंडित किया जा रहा है, जो ढीले चरित्र का था और जिसने १६,००० गोपियों से शादी कर रखी थी ! इस्कॉन के वकील ने न्यायाधीश से अनुरोध किया : "आप कृपया इस नन से वह शपथ दोहराने के लिए कहें, जो उसने नन बनते वक्त ली थी" न्यायाधीश ने नन से कहा कि वह जोर से वह शपथ सुनाये, लेकिन वह ऐसा नहीं करना चाहती थी ! फिर इस्कॉन के वकील ने खुद ही वह शपथ पढ़कर सुनाने की न्यायाधीश से अनुमति माँगी ! आगे बढ़ो, न्यायाधीश ने कहा ! उसने शपथ पढ़कर सुनाई, शपथ में यह है कि नन ने यीशु मसीह से शादी की है ! इस्कॉन के वकील ने कहा , "मी लोर्ड ! भगवान् कृष्ण पर तो सिर्फ यह आरोप है कि उन्होंने 16,000 गोपियों से शादी की थी, मगर दुनिया में दस लाख से भी अधिक नने हैं , जिन्होंने यह शपथ ली है कि उन्होंने यीशु मसीह से शादी कर रखी है! अब आप ही बताइये कि यीशु मसीह और श्री कृष्ण में से कौन अधिक लूज कैरेक्टर ( निम्न चरित्र ) हैं ? साथ ही ननो के चरित्र के बारे में आप क्या कहेंगे ? न्यायाधीश ने दलील सुनने के बाद मामले को खारिज कर दिया !



ना के अपना सगा ले गई थी,
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी,
गले मिलने की जिद पर उतरके ,
मुझसे दिल अपना लगा ले गई थी।  


जवाँ-गबरू गाँव का पढ़ा-लिखा,
शरीफ सा भोला-भाला जो दिखा,
माँ-बाप को मेरे दगा दे गई थी,
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी।  

अपनी ही दुनिया में खोया-खोया,
जमाने के रंगों से मैं बेखबर सोया,
पिचकारी मारके जगा ले गई थी,
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी।  

होली खेलन का तो इक बहाना था,
असल मकसद  ढूढना कान्हा था,
चतुरनार भोले को ठगा ले गई थी, 
मुझे मेरे घर से भगा ले गई थी !!



आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाये !

Tuesday, March 15, 2011

विकसित कहलाने की कीमत !


















जापान में ९ तीव्रता के भूकंप से शुरू हुई त्रासदी थमने का नाम ही नहीं ले रही है ! फुकुशिमा के सोमा स्थित तीसरे परमाणु सयंत्र में विस्फोट के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिकों और प्रकृति प्रेमियों के माथे पर बल पड़ने शुरू हो गए है! जापान की सरकार और परमाणु प्रतिष्ठानों की देख-रेख करने वाली एजेंसिया जहां अब तक सबकुछ नियंत्रण में होने का दावा कर रहे थे, वो भी अब सकते में आ गए है, और यह स्वीकार कर रहे है कि वहाँ परमाणु विकिरण या प्रसारण चिंताजनक स्थित में पहुच गया है !

अब सवाल यह उठता है कि यह परमाणु विकिरण क्या है, और प्रसारण के किस स्तर के बाद परमाणु विकिरण खतरनाक हो सकता है ? इसे संक्षेप में जानने के लिए मैं यह कहूंगा कि परमाणु विकिरण वह अवस्था है जब परमाणु रिसाव के बाद अस्थिर नाभिक कण वातावरण में घुलकर जैविक सामग्री जैसे जीवित उत्तकों के स्पर्श में आकर शारीरिक अंगो को जला देते है, और शरीर में कैंसर तथा मौत का कारण बनते है!

भौंतिक विज्ञान अथवा चिकित्सा जगत में विकिरण खुराक को रेम (REM =roentgen equivalent in man ) में मापते है ! यूँ तो 25 rems की खुराक से ही खून में परिवर्तन नजर आने लगते है किन्तु यह माना जाता है कि 100 rems तक की खुराक शरीर को ख़ास नुकशान नहीं पहुंचाती ! किन्त यदि खुराक का स्तर 100 rems से ऊपर जाता है तो विकिरण बीमारियों जैसे मतली या उबकाई ,उल्टी, सरदर्द और सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की क्षति के लक्षण नजर आने लगते है ! जापान में अभी तक जो तीन विस्फोट हुए है उसके आधार पर वैज्ञानिकों का मत है कि वहाँ का परमाणु विकिरण जोखिम स्तर इस वक्त १००० rems से भी अधिक है, जबकि अमेरिका में एक परमाणु संयंत्र पर काम करने वाले मजदूर के लिए अधिकतम विकिरण जोखिम सीमा सिर्फ ५ rems रखी गई है! इसी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जापान के लोगो के लिए स्थिति कितनी भयावह है !

जापान अपने औद्योगिक उत्पादन और तकनीकी कुशलता की वजह से एक विकसित राष्ट्र बना! मगर विकसित बनने की होड़ में इंसान अपने को कहाँ तक दांव पर लगा देता है, यह भी हमें जापान से ही सीखना होगा ! यह एक आम बात है कि जहां अगर आप औद्योगिक आधार पर विकसित होने का सपना देख रहे हो, वहाँ निश्चिततौर पर आपको पहली जरुरत बिजली की है ! और जापान जैसा देश जो हमारे मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ (५ लाख वर्ग किलोमीटर ) से भी बहुत कम क्षेत्रफल वाला देश है (३७८००० वर्ग किलोमीटर) , वहाँ इस वक्त कुल ५५ परमाणु रिएक्टर लगे है जबकि भारत जैसे विशाल देश के पास अभी भी कुल २० रिएक्टर है और भविष्य में अमेरिका के साथ हुई परमाणु संधि के आधार पर २२ नए रिएक्टर लगाने की योजना है!

जापान की इस त्रासदी ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें किस स्तर तक विकसित होना चाहिए और इस विकसित होने की प्रक्रिया में अपने पास मौजूद किन साधनों का उपयोग अथवा दोहन करना चाहिए? जापान से हम सबक ले सकते है कि बजाये परमाणु रिएक्टरों की भरमार के हम अपने प्राकृतिक जल स्रोतों का उपयोग कर अपनी बिजली जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर सकते है ! जिसके लिए ईमानदार प्रयासों की जरुरत है न कि तथाकथित "मिस्टर ग्रीन" और उनके वे पर्यावरण विरादर जो सिर्फ खोखले संरक्षक बनने का दावा करते है, उनकी गैरजिम्मेदाराना और अदूरदर्शी नीतियों की, जिसकी वजह से उत्तराखंड और अन्य पहाडी इलाकों की अनेक महत्वाकांक्षी जलविद्युत परियोजनाए अधर में लटकी पडी है! हर बात का अगर इमानदारी और सोच-समझकर ध्यान रखा जाये तो पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ अपनी विद्युत जरूरतों की भी आपूर्ति की जा सकती है ! अत: जरुरत है यह देखने की कि हम विकसित बनकर अपनी भावी पीढ़ियों के लिए फूलों के बीज संरक्षित करे न कि कांटे !

Sunday, March 13, 2011

सबक !
























उन्नति के मुद्दे पर
हमारा मन चाहे कितना भी सच्चा है,
किन्तु , ये न भूलें 
कि कुदरत 
एक आतंक परस्त, बिगडैल बच्चा है।  

यूं तो हर कोई 
नजदीकिया 
बढाना चाहता है सुन्दर सलोनो से,
मगर खुद ही देख लो, जब कोई 
बिगडैल बच्चा जिद पर आता है तो
किस तरह खेलता है मासूम खिलोनो से।  

Saturday, March 12, 2011

प्रकृति और मानव निर्मित त्रासदी की बढ़ती खतरनाक सहभागिता से सबक लेने की जरुरत !

जहां एक ओर जापान की इस ताजा भयंकर और दुखद प्राकृतिक आपदा ने समस्त प्राणी-जगत को एक सन्देश साफ़तौर पर दे डाला है कि मनुष्य अपनी कौशलता और सफलता के जितने मर्जी परचम लहराने का दावा कर ले, मगर उसका तथा धरा पर मौजूद अन्य प्राणियों का जीवन विकास प्रकृति की कृपा पर पूर्णतया निर्भर है, और रहेगा! जो लोग ये सोचते है कि वे इस धरा पर जितनी मर्जी मानव-बस्तियां बसा सकते है, जितने मर्जी जीवित रहने के वैकल्पिक स्रोत पैदा कर सकते है, इंसान को अमर बना सकते है, वे सरासर किसी गलतफहमी का शिकार है! वहीं दूसरी ओर प्रकृति ने मानव सभ्यता को यह भी चेताया है कि आपस में कोलेबोरेशन और सांठ-गाँठ न सिर्फ मनुष्य को ही अपितु प्रकृति को भी करना आता है, और वह मानव द्वारा खुद के लिए खोदी गई खाई के साथ मिलकर किसतरह अपनी विनाश लीला का सर्वांगीण विकास कर सकता है, जापान उसका जीता जागता उदाहरण है !

परसों और कल जहां एक तरह जापान ने दो-दो प्राकृतिक आपदाओं यानि ८.९ तीव्रता के भूकंप और प्रशांत महासागर में उठी तेज ३० फिट ऊँची सूनामी लहरों ( मुझे तो इसके नाम पर भी आपत्ति है, पता नहीं किस बेवकूफ ने इसका नाम सूनामी रखा जबकि इसका सही नाम कूनामी होना चाहिए था ) का तांडव झेला, वही तीसरी आपदा के रूप में परमाणु बिजली प्राप्त करने हेतु जापान द्वारा लगाए गए पांच परमाणु रिएक्टरों और दो परमाणु बिजलीघरों को भूकंप के तेज झटकों की वजह से तुरंत बंद कर दिया गया था, लेकिन फुकुशिमा स्थित एक रिएक्टर के पप्पिंग प्लांट में भारतीय समय के अनुसार दोपहर करीब बारह बजे जबरदस्त विस्फोट हो जाने की वजह से अफरातफरी का माहौल बन गया! हालांकि अभी तक की ख़बरों के मुताविक स्थिति बहुत ज्यादा चिंतनीय नहीं है मगर वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यधिक तापमान के कारण रिएक्टर के पिघलने और विकिरण का ख़तरा बना हुआ है ! और इसे हम दो प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव निर्मित आपदा के साथ सांठ-गाँठ की संज्ञा दे सकते है!

एक ओर चाहे वह चीन और उत्तरकोरिया से बढ़ता परमाणु ख़तरा ही क्यों न हो, मगर इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि जापान हमेशा से एक तीव्र भूकंप प्रभावित और संभावित क्षेत्र रहा है ! वहीं दूसरी ओर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोहरी परमाणु मार झेल चुका यह देश कैसे अपने यहाँ इतना प्लूटोनियम इक्कट्ठा करके रखने की हिमाकत कर सकता है? वह बम तो सिर्फ ५ किलो प्लूटोनियम का था जबकि आज जापान खुद के तकरीबन ४५ टन प्लूटोनियम के ढेर पर बैठा है! यह जानते हुए भी कि कभी भी ऐसी सूनामी आ सकती है, कैसे यह देश अपने समुद्री तटों पर अमेरिकी परमाणु पोतो को आमंत्रित कर सकता है, जापान की हुकूमत को इस पर गंभीर चिंतन की जरुरत है! हम भगवान् से तो यही प्रार्थना करते है कि विकिरण कम से कम हो, मगर यह कहानी अभी यहीं ख़त्म नहीं हुई, ख़बरों के मुताविक जब यह विस्फोट हुआ और आपात परिस्थितियों में आस-पास की आवादी को वहाँ की सरकार ने इलाके को खाली करने के आदेश दिए तो उस इलाके से दूर भागते लोग सड़कों पर फँस गए है, क्योंकि हर कोई अपना वाहन लेकर वहाँ से दूर चले जाने को सड़क पर आ गया, और परिणामस्वरूप सड़कों पर लम्बे जाम लग गए है ! यानि कुल मिलाकर स्थिति यह है कि लोग चाहकर भी बचने का प्रयास नहीं कर सकते !

आइये अब इन सब बातों का विश्लेषण हम भारतीय परिपेक्ष में करने की कोशिश करे ! जापान एक कम आवादी वाला छोटा सा देश है, तब भी अभी तक करीब १६०० लोगो के मारे जाने और दस हजार के लापता होने की पुष्ठि हुई है, भगवान् न करे लेकिन कल्पना कीजिये कि यह अगर हमारे यहाँ हुआ होता तो मंजर क्या होता ? २६ दिसंबर २००४ की सूनामी की विनाशलीला अभी बहुत पुरानी बात नहीं हुई! खैर, जहां हम प्रकृति के इस हथियार के आगे वेबश है, वहीं हमें भी इस घटना के बाद कुछ गंभीर चिंतन की आवश्यकता आन पडी है! ज्यादा दूर न जाकर मैं दिल्ली और एनसीआर की ही बात करूंगा, जहां चार करोड़ से ज्यादा की आवादी निवास करती है! और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नरोरा स्थित परमाणु प्लांट बहुत दूर नहीं है! अगर कुछ ऐसी अनहोनी हो गई तो कहाँ जायेंगे, जब भागने के लिए सड़क ही नहीं मिलेगी ? पाकिस्तान हमारे बहुत करीब पंजाब प्रांत में अपना चौथा रिएक्टर लगा रहा है, जिस देश में कुछ भी नियंत्रण में नहीं रहता ', सोचिये कि कभी उनके जिहादियों ने उस रिएक्टर को उड़ाने की कोशिश की तो क्या उसके विकिरण से हम बच पायेंगे ? इन घटनाओं से इस मानव सभ्यता को कुछ सबक तो अवश्य ही लेने होंगे वरना ऊपर वाला ही मालिक है !

Monday, March 7, 2011

खोखली मूछों के आगे बेवश नारी !

हर साल की भांति इस साल भी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने की तैयारियां जोरो पर है। कल यानि ८ मार्च को यह अन्तर्राष्ट्रीय नारी मुक्ति आन्दोलन अपना १०१वां जन्मदिन मनायेगा। इस अवसर पर एक बार फिर देश के भ्रष्ठ नेतागण, अफ़सरशाह और चंद समाज के ठेकेदार जनता के पैंसो पर फ्री की दावत उडाने हेतु जगह-जगह पंचतारा होटलों, सरकारी गेस्ट हाउसों और सामुदायिक भवनों मे एकत्रित होकर ''विशाल महिला सम्मेलनों'' का आयोजन कर, देश मे बढते महिलाओं के उत्पीडन पर मोटे-मोटे घडियाली आंसू बहायेंगे। भारत में महिलाओं की महत्ता को दिखाने के लिए बडी-बडी छोडेंगे, प्रतिनिधित्व मे महिलाओं को आरक्षण के मुद्दे पर संसद और राज्यों की विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाने की प्रतिबद्धता को पिछ्ले पन्द्रह वर्षों की ही भांति इस वर्ष भी ताल ठोककर दोहरायेगे। और दावत उडाने के बाद अन्त मे एक बडे से बैनर के आगे वहां सम्मिलित उन तमाम नेताओ, नौकरशाहों और समाज सुधारकों के संग आयी उनकी पारिवारिक हसीन सुन्दरियॊं के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मुस्कुराते हुए एक फोटो सेशन चलेगा, जो अगले दिन के समाचार-पत्रों की शोभा बनेगा। बस, हो गया नारी मुक्ति आन्दोलन सफ़ल, फिर रात गई, बात गई।

अफ़सोस कि इस देश के लोग फिर भी अपनी खोखली मूछों का स्वांग भरने से कभी पीछे नही रहते। वे यह भूल जाते है कि मूछों की गरिमा और खोखलेपन मे ठीक वैसा ही रिश्ता है, जैसा कि हाल के कौमन-वेल्थ खेलों और दिल्ली की चमक-दमक का। डाई की हुई मूछें रौबदार चेहेरों पर ठीक वैसी ही जंचती है, जैसी कौमन-वेल्थ खेलों के उपलक्ष मे दिल्ली सजी-धजी। अन्दर का खोखलापन कौन देखता है? बस, बाहर से लुक इम्प्रेसिव होना चाहिये। भले ही उसके कुछ हफ़्तों बाद ही सडक पर बिछाई गई कोलतार एक हल्की सी बारिश मे ही क्यों न धुलकर कहीं बह जाये। पूछने वाला कौन है, कि जबाब देही किसकी बनती है ? हमे तो बस यही संतुष्ठी प्रफूलित किये जाती है कि कुछ ही समय के लिये सही, मगर हमारी मूछों ने दुनियां पर रौब तो डाला।

शहरों और कस्बों के घर-घर की कहानी का अध्ययन करें तो वहां भी बस एक ही सवाल हर घर को खाये जा रहा है, और वह है मूछों का सवाल। ऐसे बहुत से श्रीमान मूछधारी हर गली मोह्ल्ले मे मिल जायेंगे जो दुनियां की देखा-देखी, अभी हाल मे कार खरीद तो लाये है अपने घर, मगर साथ ही अपनी श्रीमती जी को हिदायत भी दे रहे है कि ये बच्चे अब बडे हो गये है, इनको दूध नही, चाय दिया करों। बच्चों की तरफ़ से अगर विरोध के स्वर उठने लगे तो मूंछधारी महाशय उन्हें यह कहकर झिडक देते है कि गाडी की किश्त चुकता करने के लिये दूध के बिल मे कटौती जरूरी है। और फिर बच्चो का विरोध भी घर की महिला को ही झेलना पड्ता है। बच्चे जब विरोध मे यहां तक कहने लगे कि क्या पापा, गाडी घर के बाहर खडी करने के लिये बेफ़ालतू लाये, घुमाने ले तो कहीं जाते नही हो। मूंछधारी महाशय का तत्काल जबाब होता है कि पैट्रोल देख रहे हो कितना मंहगा हो गया। दूध की मात्रा अचानक आधी से भी कम कर देने पर जब दूधवाला आश्चर्य से सवाल करे, तो महाशय मूछधारी का जबाब देखिये, “आजकल तुम दूध सही नही ला रहे, बच्चे पी नही रहे है, उन्हे स्मैल सी लगती है इसमे।“

जैसा कि सर्वविदित है कि हमारा यह समाज हमेशा से एक पुरुष प्रधान समाज रहा है, और अधिकांशत: यह भी एक कटुसत्य है कि यह पुरुष प्रधान समाज निहायत ही स्वार्थी किस्म का है। कभी कुछ करने की सोचेगा भी तो सिर्फ़ अपनी आवश्यकताओं को केन्द्र बिन्दु बनाकर। कुछ निर्माण कार्य करना हो तो सिर्फ़ अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप, अपने ही दायरे मे। इसलिये हमेशा से ही महिलाओं की आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं और सुविधाओं की अन्देखी होती रही है। मगर तब कभी-कभार यह देखकर आश्चर्य और अफ़सोस भी होता है कि जिन महिलाओं को समाज मे आगे बढने का सुअवसर प्राप्त होता भी है तो उनकी मानसिकता भी पुरुष वर्ग से ज्यादा भिन्न नही होती। वे भी उस महिला समाज की घोर अनदेखी करने लगती है, जिसका वे खुद एक अंग है।

अभी हम सभी ने देखा कि कौमन वेल्थ के नाम पर किस हद तक इस देश के धन की लूट मची। यहां तक कि सौन्दर्यीकरण के नाम पर दिल्ली की सड्कों पर पहले से लगे दिशा सूचक होर्डिंग्स, लाईटों, बिजली के खम्बों और फुटपाथ पर लगी टाइलों को हटाकर सब कुछ नया लगाया गया। ये बात और है कि अभी इस आयोजन को हुए चार महिने ही गुजरे है कि सब कुछ उखड्ने लगा है, या फिर धीरे-धीरे उखाडा जा रहा है। सड्के फिर से गड्डों मे तब्दील हो गई है और आरटीआई से यह खुलासा भी हुआ कि दो सप्ताह के इस आयोजन मे कुल चौदह करोड रुपये सिर्फ़ विदेशी मेहमानों की मेडिकल सेवाऒं पर ही उडा दिये गये। हसीं आती है कि ये विदेशी मेहमान यहां खेलने आये थे या फिर अपना उपचार कराने।

यह सब बताने का आशय यह है कि खर्च करने के मामले मे मूंछधारियों का यह देश किस कदर दिलदार है। मगर जब नारी सशक्तिकरण की बात आती है तो हमारे बजट हमे अनुमति नही देते, खजाने खाली-खाली से नजर आने लगते है। देश के ग्रामींण क्षेत्रो मे जहां आज भी महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत औसतन दस से भी कम है, जहां आज भी महिलाऒं को मजबूरन सिर्फ़ इसलिये भोर-अंधेरे मे ही जागना पड्ता है कि शौच के लिये खुले मे जाना है। वहां के चाचा-ताऊओं की मूछों की तो खैर, बात ही छोडिये, बात मैं यहां देश की राजधानी जैसी जगहों की करुंगा, जहां आज के इस युग मे, यहां की कुल महिला आवादी की १० प्रतिशत से भी अधिक महिलायें नौकरी-पेशे के सिलसिले मे अमूमन रोज ही घर से बाहर निकलती है।

करीब साल-दो साल पहले भी मैने यह बात अपने ब्लोग पर एक लेख मे उठाई थी, और मुझे उम्मीद थी कि राष्ट्र-मण्डल खेलों की तैयारी के दौरान इस विषय पर हमारे नीति निर्धारक अवश्य विचार करेंगे कि बडे शहरो मे सार्वजनिक जीवन मे बढ्ती महिलाओं की सह्भागिता को ध्यान मे रखते हुए वे उनके लिये शहरो की मुख्य सडकों, बाजारो, बस स्टोपो इत्यादि मे ऐसी बुनियादी जरुरतों का प्रावधान रखेगे, जो काम के सिलसिले में घर से बाहर निकली महिलाओं को, घंटो बस-स्टोपो पर इन्तजार करते हुए जरूरी है। लेकिन इन कर्ता-धर्ताओं के लिए तो अपनी कमाई की चिंता इससे भी अहम बात थी, इसलिये सारे बिजली के खम्बों, फुटपाथ की टाईलों इत्यादि को बदलने के लिये तो इनके पास ढेर सारा पैसा उपलब्ध था, मगर महिलाओं के लिये शौचालयों के निर्माण के लिये कुछ नही बचा था। और वह भी तब जब दिल्ली और पडोसी राज्य उत्तरप्रदेश मे दो महिला मुख्यमंत्रियो का राज था।

मैं समझता हूं कि शायद हमारा मूंछधारी पुरुष प्रधान समाज अपने को शौच के तरीके पर श्वान-प्रजाति से जरूर थोड़ा निकृष्ट समझता होगा, लेकिन क्या कभी इस मूछ्धारी समाज ने यह सोचा कि एक महिला जो घर से बाहर निकलती है, उसे किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? सच कहूँ तो मुझे अपने इस खोखले मूछ्धारी समाज पर उस समय अत्यंत क्रोध और लज्जा आती है, जब इस इक्कीसवीं सदी में भी मैं अपने घर की महिलाओं को कडाके की सर्दी में भी इस वजह से कि अभी घर से बाहर सफ़र में जाना है, इसलिए टायलेट की दिक्कत होगी, एक कप चाय या कॉफ़ी का पीने से मना करते सुनता हूँ। घर से बाहर निकलने की इन चिंताओं की वजह से महिलाओं द्वारा पानी का उचित सेवन न करना और शौच को बहुत देर तक रोके रखना, उदर की अनेकों बीमारियाँ और वक्त से पहले बुढापे को दावत देता है। हमने कभी सोचा कि एक महिला ट्रैफिक पोलिस जिसकी दिल्ली के भीड़ भरे चौराहे पर ड्यूटी लगी है, या वह कामकाजी महिला जिसे अचानक घर से बाहर कोई उदर-समस्या हो जाए जैसे दस्त की शिकायत , शहर में शौचालयों की उचित व्यवस्था न होने की वजह से वे किन परिस्थितियों से गुजरती होगी ? जितने में ये दुनियाभर के पुराने खम्बे और फुटपाथ की टाईले बदली गई, उतने में पूरी दिल्ली में हर बस स्टॉप के पास टोइलेट का निर्माण किया जा सकता था लेकिन इन मूछवालों ने तो श्वानो से काफी कुछ सीख रखा है, इसलिए इन्हें इसकी जरुरत कभी महसूस ही नहीं हुई।

ऑल इंडिया लवर्स पार्टी !


ज़रा यहाँ झांकिए और फिर सोचिये कि अगर यह पार्टी देश में सत्ता में आ जाये तो देश के तो वारे-न्यारे ही हो जायेंगे, संसद और विधान सभाओ में फुल अटेंन्ड़ेंस रहेगी ! हा-हा-हा......
मेरी तो इनके लिए बस यही शुभकामनाये है कि ;

गुल खिलेंगे, चमन गुलजार होगा,
ख़त्म यह तमाम भ्रष्टाचार होगा।
न दिलों में मैल, न राग-द्वेष होगा,
देश में हर ओर अमन,प्यार होगा।
न मुल्ला , मुथालिक न खाप होगा,
हुश्न और इश्क सबका बाप होगा।
संसद, असेम्बली के गलियारों में,
हर सत्र में तब मौसमे-बहार होगा।
गुल खिलेंगे, चमन गुलजार होगा,

देश में हर ओर अमन, प्यार होगा।।

Saturday, March 5, 2011

अजनबियों पर यूं न इस तरह तुम !




अजनबियों पर यूं न इसतरह, सब कुछ वारा-न्यारा करों,
दुनिया रंग-रंगीली है पगली, कनखियों से न निहारा करो।  

प्यार करना जिन्हें आता नहीं, प्रेम भी उनको भाता नहीं,
छज्जे में आकर, पल्लू हिलाकर, हर वक्त न इशारा करो।    

जो हम तुम्हें देखें न देखे, तुम रहो सदा बेपरवाह होकर,  
शीशे को ही आशिक समझकर, गेसुयें तुम सवारा करों।  

तन्हाई में ख़्वाबों में खोकर,यादों में न दिल पिघलाओ,
ख्याल बुनते हुए ऐसे उनींदी न ही रतियन गुजारा करो. 

दुनिया रंग-रंगीली है पगली....         !

सावधान ! यह ब्लॉग्गिंग और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के 'पर' कतरने की तैयारी हो सकती है !

ब्लॉग्गिंग को आज के दौर में अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम माना जाता रहा है ! १९४७ में ब्रिटिश औपनिवेश से स्वतंत्रता के बाद भले ही इस देश के आम आदमी ने प्रत्यक्ष तौर पर ख़ास कुछ स्वतंत्रता का रसपान कभी न किया हो, मगर मैं सोचता था कि शायद अंतरजाल एक ऐसा अप्रत्यक्ष माध्यम हाल के वर्षों में इस देश के आम इंसान को मिला है, जिसमे हर कोई बेहिचक अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र है! लेकिन हमारी वर्तमान सरकार दुनिया के इस दूसरे बड़े लोकतांत्रिक देश में आमजन की इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से कुछ ज्यादा ही घबरा गई है, ऐसा प्रतीत होता है!

आज पूरे देश को जहां एक ओर गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्ठाचार और बुनियादी सुविधाओं के अभाव से रोज दो-चार होना पड़ रहा है, वही दूसरी ओर इस बाबत कोई ठोस कदम उठाने की बजाये हमारी ये सरकारें उन गैर-जरूरी कामों की ओर ज्यादा सक्रिय नजर आती है जिसमे ये उस आम इंसान की आवाज दबा सके, जो इसे चुनकर संसद में भेजता है ! इससे तो यही प्रतीत होता है कि वह यह नहीं चाहती कि कोई इनके घोटालों की चर्चा अपने ब्लोगों पर करे, शायद वह यह भी नहीं चाहती कि कोई नेताओं और अफसर शाहों की गैर-कानूनी और अनैतिक गतिविधियों का पर्दाफाश कर इसे आम जनता के बीच पहुंचाए !

भारत के सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम २००८ को अंतिम रूप दिया जा रहा है और पूरक नियमों को इसमें शामिल किया जा रहा है, जिसमे अप्रतयक्ष रूप से भारत सरकार को यह अधिकार होगा कि वह इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री को अपने ढंग से नियंत्रित कर सके और ब्लोगों को ब्लोंक कर सके ! फरवरी के तीसरे सफ्ताह में सीआईआई कॉन्टेंट शिखर सम्मेलन में तीन सरकारी हस्तियों - सूचना एवं प्रसारण (आई एंड बी) मंत्री अंबिका सोनी, ट्राई के मुखिया जे एस सरमा और सूचना एवं प्रसारण सचिव रघु मेनन ने भी इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के बारे अपनी चिंता का उल्लेख किया, ये बात और है कि वहाँ उन लोगो ने इस सामग्री के विनियमन की किसी कोशिश को फिलहाल नकारा हो किन्तु ऐसी अपुष्ट खबरे है कि उसके बाद सरकार ने टाईपपैड, मोबैंगो किलकाटेल: स्क्रीन शॉट्स को ब्लोंक भी कर दिया है विस्तृत जानकारी आप इस लिंक How The Indian Government Plans To Regulate Online Content & Blogs
पर देख सकते है!

इसमें कोई संदेह नहीं कि न सिर्फ सरकार अपितु हमारा आमजन भी उपलब्ध सुविधाओं का दुरुपयोग करने में माहिर है! और एक संवेदनशील व जिम्मेदार सरकार और नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह ऐसी कोई आपत्तिजनक सामग्री सार्वजनिक मंचों पर प्रकाशित न करे या होने से रोके, जिसका समाज पर दुष्प्रभाव पड़ता हो, मगर लाख टके की बात यह है कि सरकार इन प्रावधानों से दुनियाभर में फैले अंतरजाल पर तो रोक नहीं लगा सकती है, फिर ऐसे नियम- कानूनों का क्या सदुपयोग अथवा दुरुपयोग होगा, यह आने वाले समय में देखने वाली बात होगी ! अभी तो बस यही आशंका लगती है कि एक तरफ जहां अमेरिका अपने नागरिकों के लिए इंटरनेट को फ्री-सेवा के रूप में तब्दील करने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ कहीं हम अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए अपने नागरिकों का मुह बंद करने का प्रयास तो नहीं कर रहे?

Tuesday, March 1, 2011

साकी को न जब तलक,इस बात का मलाल होगा !


मुर्गे की मौत का न जबतलक,साकी को मलाल होगा,   
तबतलक मयखाने पे हर मुर्गा, बेक़सूर हलाल  होगा।  


 तृप्ति  भला क्यों  मिलेगी , अतृप्त किसी पियक्कड़ को,
हलक उसके घुटन होगी  और दिल बद्दतर हाल होगा।  

सोचा न होगा  मुर्गे ने भी कभी कि पैमानों की भीड़ में,
छलकते जाम पे किसी रोज उसका, यूं  इस्तेमाल होगा।  


चौराहा तबेले में तब्दील होगा, टुन्न आवारा पशुओं से,
अंग -अंग उनके लिए उसका, इज्जत का सवाल होगा।  

बोटी -बोटीकर चबाई जायेगी, मय के प्याले भर-भरके,

खर्चेगा  कोई अपनी जेब से तो कोई बाप का माल होगा।  



शामे-गम कट जाए अगर 'परचेत', बिना कॉकटेल के ,
तेरे मयकदे की कसम साकी ,वो नजारा बेमिसाल होगा।  

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।