जहां एक ओर जापान की इस ताजा भयंकर और दुखद प्राकृतिक आपदा ने समस्त प्राणी-जगत को एक सन्देश साफ़तौर पर दे डाला है कि मनुष्य अपनी कौशलता और सफलता के जितने मर्जी परचम लहराने का दावा कर ले, मगर उसका तथा धरा पर मौजूद अन्य प्राणियों का जीवन विकास प्रकृति की कृपा पर पूर्णतया निर्भर है, और रहेगा! जो लोग ये सोचते है कि वे इस धरा पर जितनी मर्जी मानव-बस्तियां बसा सकते है, जितने मर्जी जीवित रहने के वैकल्पिक स्रोत पैदा कर सकते है, इंसान को अमर बना सकते है, वे सरासर किसी गलतफहमी का शिकार है! वहीं दूसरी ओर प्रकृति ने मानव सभ्यता को यह भी चेताया है कि आपस में कोलेबोरेशन और सांठ-गाँठ न सिर्फ मनुष्य को ही अपितु प्रकृति को भी करना आता है, और वह मानव द्वारा खुद के लिए खोदी गई खाई के साथ मिलकर किसतरह अपनी विनाश लीला का सर्वांगीण विकास कर सकता है, जापान उसका जीता जागता उदाहरण है !
परसों और कल जहां एक तरह जापान ने दो-दो प्राकृतिक आपदाओं यानि ८.९ तीव्रता के भूकंप और प्रशांत महासागर में उठी तेज ३० फिट ऊँची सूनामी लहरों ( मुझे तो इसके नाम पर भी आपत्ति है, पता नहीं किस बेवकूफ ने इसका नाम सूनामी रखा जबकि इसका सही नाम कूनामी होना चाहिए था ) का तांडव झेला, वही तीसरी आपदा के रूप में परमाणु बिजली प्राप्त करने हेतु जापान द्वारा लगाए गए पांच परमाणु रिएक्टरों और दो परमाणु बिजलीघरों को भूकंप के तेज झटकों की वजह से तुरंत बंद कर दिया गया था, लेकिन फुकुशिमा स्थित एक रिएक्टर के पप्पिंग प्लांट में भारतीय समय के अनुसार दोपहर करीब बारह बजे जबरदस्त विस्फोट हो जाने की वजह से अफरातफरी का माहौल बन गया! हालांकि अभी तक की ख़बरों के मुताविक स्थिति बहुत ज्यादा चिंतनीय नहीं है मगर वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यधिक तापमान के कारण रिएक्टर के पिघलने और विकिरण का ख़तरा बना हुआ है ! और इसे हम दो प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव निर्मित आपदा के साथ सांठ-गाँठ की संज्ञा दे सकते है!
एक ओर चाहे वह चीन और उत्तरकोरिया से बढ़ता परमाणु ख़तरा ही क्यों न हो, मगर इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि जापान हमेशा से एक तीव्र भूकंप प्रभावित और संभावित क्षेत्र रहा है ! वहीं दूसरी ओर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोहरी परमाणु मार झेल चुका यह देश कैसे अपने यहाँ इतना प्लूटोनियम इक्कट्ठा करके रखने की हिमाकत कर सकता है? वह बम तो सिर्फ ५ किलो प्लूटोनियम का था जबकि आज जापान खुद के तकरीबन ४५ टन प्लूटोनियम के ढेर पर बैठा है! यह जानते हुए भी कि कभी भी ऐसी सूनामी आ सकती है, कैसे यह देश अपने समुद्री तटों पर अमेरिकी परमाणु पोतो को आमंत्रित कर सकता है, जापान की हुकूमत को इस पर गंभीर चिंतन की जरुरत है! हम भगवान् से तो यही प्रार्थना करते है कि विकिरण कम से कम हो, मगर यह कहानी अभी यहीं ख़त्म नहीं हुई, ख़बरों के मुताविक जब यह विस्फोट हुआ और आपात परिस्थितियों में आस-पास की आवादी को वहाँ की सरकार ने इलाके को खाली करने के आदेश दिए तो उस इलाके से दूर भागते लोग सड़कों पर फँस गए है, क्योंकि हर कोई अपना वाहन लेकर वहाँ से दूर चले जाने को सड़क पर आ गया, और परिणामस्वरूप सड़कों पर लम्बे जाम लग गए है ! यानि कुल मिलाकर स्थिति यह है कि लोग चाहकर भी बचने का प्रयास नहीं कर सकते !
आइये अब इन सब बातों का विश्लेषण हम भारतीय परिपेक्ष में करने की कोशिश करे ! जापान एक कम आवादी वाला छोटा सा देश है, तब भी अभी तक करीब १६०० लोगो के मारे जाने और दस हजार के लापता होने की पुष्ठि हुई है, भगवान् न करे लेकिन कल्पना कीजिये कि यह अगर हमारे यहाँ हुआ होता तो मंजर क्या होता ? २६ दिसंबर २००४ की सूनामी की विनाशलीला अभी बहुत पुरानी बात नहीं हुई! खैर, जहां हम प्रकृति के इस हथियार के आगे वेबश है, वहीं हमें भी इस घटना के बाद कुछ गंभीर चिंतन की आवश्यकता आन पडी है! ज्यादा दूर न जाकर मैं दिल्ली और एनसीआर की ही बात करूंगा, जहां चार करोड़ से ज्यादा की आवादी निवास करती है! और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नरोरा स्थित परमाणु प्लांट बहुत दूर नहीं है! अगर कुछ ऐसी अनहोनी हो गई तो कहाँ जायेंगे, जब भागने के लिए सड़क ही नहीं मिलेगी ? पाकिस्तान हमारे बहुत करीब पंजाब प्रांत में अपना चौथा रिएक्टर लगा रहा है, जिस देश में कुछ भी नियंत्रण में नहीं रहता ', सोचिये कि कभी उनके जिहादियों ने उस रिएक्टर को उड़ाने की कोशिश की तो क्या उसके विकिरण से हम बच पायेंगे ? इन घटनाओं से इस मानव सभ्यता को कुछ सबक तो अवश्य ही लेने होंगे वरना ऊपर वाला ही मालिक है !
परसों और कल जहां एक तरह जापान ने दो-दो प्राकृतिक आपदाओं यानि ८.९ तीव्रता के भूकंप और प्रशांत महासागर में उठी तेज ३० फिट ऊँची सूनामी लहरों ( मुझे तो इसके नाम पर भी आपत्ति है, पता नहीं किस बेवकूफ ने इसका नाम सूनामी रखा जबकि इसका सही नाम कूनामी होना चाहिए था ) का तांडव झेला, वही तीसरी आपदा के रूप में परमाणु बिजली प्राप्त करने हेतु जापान द्वारा लगाए गए पांच परमाणु रिएक्टरों और दो परमाणु बिजलीघरों को भूकंप के तेज झटकों की वजह से तुरंत बंद कर दिया गया था, लेकिन फुकुशिमा स्थित एक रिएक्टर के पप्पिंग प्लांट में भारतीय समय के अनुसार दोपहर करीब बारह बजे जबरदस्त विस्फोट हो जाने की वजह से अफरातफरी का माहौल बन गया! हालांकि अभी तक की ख़बरों के मुताविक स्थिति बहुत ज्यादा चिंतनीय नहीं है मगर वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यधिक तापमान के कारण रिएक्टर के पिघलने और विकिरण का ख़तरा बना हुआ है ! और इसे हम दो प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव निर्मित आपदा के साथ सांठ-गाँठ की संज्ञा दे सकते है!
एक ओर चाहे वह चीन और उत्तरकोरिया से बढ़ता परमाणु ख़तरा ही क्यों न हो, मगर इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि जापान हमेशा से एक तीव्र भूकंप प्रभावित और संभावित क्षेत्र रहा है ! वहीं दूसरी ओर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोहरी परमाणु मार झेल चुका यह देश कैसे अपने यहाँ इतना प्लूटोनियम इक्कट्ठा करके रखने की हिमाकत कर सकता है? वह बम तो सिर्फ ५ किलो प्लूटोनियम का था जबकि आज जापान खुद के तकरीबन ४५ टन प्लूटोनियम के ढेर पर बैठा है! यह जानते हुए भी कि कभी भी ऐसी सूनामी आ सकती है, कैसे यह देश अपने समुद्री तटों पर अमेरिकी परमाणु पोतो को आमंत्रित कर सकता है, जापान की हुकूमत को इस पर गंभीर चिंतन की जरुरत है! हम भगवान् से तो यही प्रार्थना करते है कि विकिरण कम से कम हो, मगर यह कहानी अभी यहीं ख़त्म नहीं हुई, ख़बरों के मुताविक जब यह विस्फोट हुआ और आपात परिस्थितियों में आस-पास की आवादी को वहाँ की सरकार ने इलाके को खाली करने के आदेश दिए तो उस इलाके से दूर भागते लोग सड़कों पर फँस गए है, क्योंकि हर कोई अपना वाहन लेकर वहाँ से दूर चले जाने को सड़क पर आ गया, और परिणामस्वरूप सड़कों पर लम्बे जाम लग गए है ! यानि कुल मिलाकर स्थिति यह है कि लोग चाहकर भी बचने का प्रयास नहीं कर सकते !
आइये अब इन सब बातों का विश्लेषण हम भारतीय परिपेक्ष में करने की कोशिश करे ! जापान एक कम आवादी वाला छोटा सा देश है, तब भी अभी तक करीब १६०० लोगो के मारे जाने और दस हजार के लापता होने की पुष्ठि हुई है, भगवान् न करे लेकिन कल्पना कीजिये कि यह अगर हमारे यहाँ हुआ होता तो मंजर क्या होता ? २६ दिसंबर २००४ की सूनामी की विनाशलीला अभी बहुत पुरानी बात नहीं हुई! खैर, जहां हम प्रकृति के इस हथियार के आगे वेबश है, वहीं हमें भी इस घटना के बाद कुछ गंभीर चिंतन की आवश्यकता आन पडी है! ज्यादा दूर न जाकर मैं दिल्ली और एनसीआर की ही बात करूंगा, जहां चार करोड़ से ज्यादा की आवादी निवास करती है! और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नरोरा स्थित परमाणु प्लांट बहुत दूर नहीं है! अगर कुछ ऐसी अनहोनी हो गई तो कहाँ जायेंगे, जब भागने के लिए सड़क ही नहीं मिलेगी ? पाकिस्तान हमारे बहुत करीब पंजाब प्रांत में अपना चौथा रिएक्टर लगा रहा है, जिस देश में कुछ भी नियंत्रण में नहीं रहता ', सोचिये कि कभी उनके जिहादियों ने उस रिएक्टर को उड़ाने की कोशिश की तो क्या उसके विकिरण से हम बच पायेंगे ? इन घटनाओं से इस मानव सभ्यता को कुछ सबक तो अवश्य ही लेने होंगे वरना ऊपर वाला ही मालिक है !
sahi kaha aapne ham is tarah prakrati se khibad karte rahi to upar vala bhi mana kar dega
ReplyDeleteजबरदस्त विश्लेषण किया है गोदियाल साहब, लेकिन सोचने की फ़ुर्सत किसे है...
ReplyDeleteगोदियाल साहब आप ने अपने इस लेख मे बहुत सुंदर बाते लिखी मे एक एक बात से सहमत हुं, अब पुरे युरोप ओर कनाडा अमेरिका मे परमाणु प्लांट धीरे धीरे बंद हो रहे हे, हमारे जर्मन मे कई परमाणु प्लांट बंद हो चुके हे, बाकी लोग सरकार के पीछे पडे हे बंद करने के लिये, बिजली हम हवा से, पानी से ओर भी बहुत से तरीके हे प्राप्त कर सकते हे, लेकिन हमारी सरकार ने अमेरिका से परमाणु प्लांट का समझोता कर के उन का कुडा करकट इकट्ठा कर के जनता के लिये क्या अच्छा किया हे?यह बात कई बार दिमाग मे उठती हे, लेकिन आज आप का यह सुंदर विश्लेषण देख कर अपने को रोक नही पाया.... अगर कभी हमारे यहां ऎसा हो जाये तो क्या सरकार जनता का हित कर पायेगी? या भोपाल कांड जेसे लोगो को मरने तडपने के लिये छोड देगी, इस से दुर भागने के लिये क्या हमारी सरकार सडके, बसे, ओर रेल गाडिया मोजूद करा सकेगी?...
ReplyDeleteएक दम सहमत कि हमारे यहां तो ऊपर वाला ही मालिक है
ReplyDeleteएकदम सार्थक बात कही....कुछ सबक ले लें तो ही बेहतर!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक और संवेदनशील विषय पर बात की है आपने..... हमारे यहाँ शायद ही कोई चेते ......
ReplyDeleteबेशक हम परमाणु रुपी बारूद के ढेर पर बैठे हैं ।
ReplyDeleteइन्सान ने अपने विध्वंश का सामान खुद ही जुटा रखा है ।
शायद एक दिन महाप्रलय इसी तरह से आयेगी ।
गोदियाल सा:सुनामी शब्द जापानी भाषा का है जिसका अर्थ है=वायु वेग से उठी पानी की लहरें जो वास्तव में हैं ही अतः नाम बिलकुल सही है.
ReplyDeleteआपकी मानवीय संवेदनाएं सराहनीय हैं.हम सब को सचेत होकर प्रकृति से ताल-मेल और इंसानों का आपस में मेल-जोल बैठना चाहिए.
सार्थक प्रश्न उकेरती पोस्ट
ReplyDeleteप्रकृति से तालमेल की कमी ही इन महाविनाशकारी आपदाओं का कारण है
इतनी अधिक तीव्रता का भूकंप यदि हमारे यहाँ आता तो लाखों में क्षति होती।
ReplyDeleteहिंदुस्तान का तो उप्पर वाला ही मालिक है| धन्यवाद|
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बिल्कुल सटीक बात, कुछ भी संदेह नही है.
ReplyDeleteरामराम.
आम भारतीय तो आज भी भगवान भरोसे ही जी रहा है।
ReplyDeleteप्रणाम
कुछ सबक तो अवश्य ही लेने होंगे ...
ReplyDeleteसार्थक ... विचारोत्तेजक आलेख ....
सार्थक बात कही
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