शर्मो -हया गायब हुई,
आंख,नाक,गालों से,
गौरवान्वित हो रहा,
अब देश घोटालो से ।
विदुर ने संभाला है,
अभिनय शकुनि का,
हस्तिनापुर परेशां है,
गांधारी की चालों से ॥
द्यूत क्रीड़ा चल रही,
घर,दरवार,जेल मे,
पांसे खुद जुट गए,
शह-मात के खेल मे ।
इन्द्र-प्रस्थ पटा पडा,
कुटिल दलालों से,
हस्तिनापुर परेशां है,
गांधारी की चालों से ॥
एकलव्य का अंगूठा,
बहुमूल्य हो गया,
सुदूर दक्षिण का इक
रंक-ए-राजा तुल्य हो गया ।
रंक-ए-राजा तुल्य हो गया ।
यक्ष भी हैरान है,
करुणाजनित जालों से,
हस्तिनापुर परेशां है,
गांधारी की चालों से ॥
गरीब-प्रजा से भी,
लगान जुटाने के बाद,
सफ़ाई के नाम पे,
अरबों लुटाने के बाद ।
गंगा-जमुना मजबूर है,
बहने को नालों से,
हस्तिनापुर परेशां है,
गांधारी की चालों से ॥
युवराज दुर्योधन है,
ताक मे सिंहासन के,
चीरहरण को आतुर है,
हाथ दू:शासन के ।
बेइज्जत हो रही द्रोपदी,
खाप-चौपालों से,
हस्तिनापुर परेशां है,
गांधारी की चालों से ॥
कहीं ढूढना न फ़िर,
अर्जुन-कान्हा पड़े,
इतिहास महाभारत का
न कहीं दुहराना पड़े।
कुरुक्षेत्र लहुलुहान न हो,
बाण-भालों से,
हस्तिनापुर परेशां है,
गांधारी की चालों से ॥
छवि गुगुल से साभार
vaaah......bahut badhiya kavita......vyavastha ki pol khol di hai......
ReplyDeleteजब अत्याचार,अनाचार की पराकाष्ठा होगी,ढोंग-पाखण्ड का प्रचार होगा तो महाभारत के लिए भी तैयार रहना ही होगा.
ReplyDeleteछिन्न भिन्न कर डाला देश का स्थायित्व।
ReplyDeleteबहुत सार्थक चिंतन ....
ReplyDeleteएक गुज़ारिश .... विधुर कि जगह विदुर कर लें ...
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना
त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए आपका आभार संगीता जी ! और सच कहूँ तो मुझे ऐसी सार्थक टिप्पणिया बहुत पसंद है !
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर और अलग अंदाज!
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
हस्तिनापुर परेशां है,
ReplyDeleteगांधारी की चालों से ॥
पर बात अब गंधार से आगे की निकल रही है :)
देश त्रस्त, अफसर-नेता-व्यापारी मस्त..
ReplyDeleteइस रचना की चर्चा सब दूर होनी चाहिए...
ReplyDeleteकलयुगी महाभारत !!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ।
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteबहुत सही आकलन प्रस्तुत किया है आपने!
ReplyDeleteरचना भी बहुत अच्छी बन गई है!
रचना बहुत अच्छी है!
ReplyDeleteवाकई ! सार्थक चित्रण कलियुगी महाभारत का.
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखा है गोदियाल साहब। आनंद आ गया।
ReplyDeleteसार्थक चिंतन ... इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है नये नये पात्रों में ....
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