Monday, March 28, 2011

कुरुर पुनरावृति !





शर्मो -हया गायब हुई,

आंख,नाक,गालों से,

गौरवान्वित हो रहा,

अब देश घोटालो से ।


विदुर ने संभाला है,

अभिनय शकुनि का,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


द्यूत क्रीड़ा चल रही,

घर,दरवार,जेल मे,

पांसे खुद जुट गए,

शह-मात के खेल मे ।


इन्द्र-प्रस्थ पटा पडा,

कुटिल दलालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


एकलव्य का अंगूठा,

बहुमूल्य हो गया,

सुदूर दक्षिण का इक 
रंक-ए-राजा तुल्य हो गया ।


यक्ष भी हैरान है,

करुणाजनित जालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


गरीब-प्रजा से भी,

लगान जुटाने के बाद,

सफ़ाई के नाम पे,

अरबों लुटाने के बाद ।


गंगा-जमुना मजबूर है,

बहने को नालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


युवराज दुर्योधन है,

ताक मे सिंहासन के,

चीरहरण को आतुर है,

हाथ दू:शासन के ।


बेइज्जत हो रही द्रोपदी,

खाप-चौपालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


कहीं ढूढना न फ़िर,

अर्जुन-कान्हा पड़े,

इतिहास महाभारत का

न कहीं दुहराना पड़े।


कुरुक्षेत्र लहुलुहान न हो,

बाण-भालों से,

हस्तिनापुर परेशां है,

गांधारी की चालों से ॥


छवि गुगुल से साभार

18 comments:

  1. vaaah......bahut badhiya kavita......vyavastha ki pol khol di hai......

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  2. जब अत्याचार,अनाचार की पराकाष्ठा होगी,ढोंग-पाखण्ड का प्रचार होगा तो महाभारत के लिए भी तैयार रहना ही होगा.

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  3. छिन्न भिन्न कर डाला देश का स्थायित्व।

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  4. बहुत सार्थक चिंतन ....

    एक गुज़ारिश .... विधुर कि जगह विदुर कर लें ...

    बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना

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  5. त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए आपका आभार संगीता जी ! और सच कहूँ तो मुझे ऐसी सार्थक टिप्पणिया बहुत पसंद है !

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  6. वाह! बहुत सुन्दर और अलग अंदाज!

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  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. हस्तिनापुर परेशां है,

    गांधारी की चालों से ॥


    पर बात अब गंधार से आगे की निकल रही है :)

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  9. देश त्रस्त, अफसर-नेता-व्यापारी मस्त..

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  10. इस रचना की चर्चा सब दूर होनी चाहिए...

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  11. कलयुगी महाभारत !!
    सुन्दर प्रस्तुति ।

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  12. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  13. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  14. बहुत सही आकलन प्रस्तुत किया है आपने!
    रचना भी बहुत अच्छी बन गई है!

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  15. वाकई ! सार्थक चित्रण कलियुगी महाभारत का.

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  16. बहुत शानदार लिखा है गोदियाल साहब। आनंद आ गया।

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  17. सार्थक चिंतन ... इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है नये नये पात्रों में ....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।