जापान में ९ तीव्रता के भूकंप से शुरू हुई त्रासदी थमने का नाम ही नहीं ले रही है ! फुकुशिमा के सोमा स्थित तीसरे परमाणु सयंत्र में विस्फोट के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिकों और प्रकृति प्रेमियों के माथे पर बल पड़ने शुरू हो गए है! जापान की सरकार और परमाणु प्रतिष्ठानों की देख-रेख करने वाली एजेंसिया जहां अब तक सबकुछ नियंत्रण में होने का दावा कर रहे थे, वो भी अब सकते में आ गए है, और यह स्वीकार कर रहे है कि वहाँ परमाणु विकिरण या प्रसारण चिंताजनक स्थित में पहुच गया है !
अब सवाल यह उठता है कि यह परमाणु विकिरण क्या है, और प्रसारण के किस स्तर के बाद परमाणु विकिरण खतरनाक हो सकता है ? इसे संक्षेप में जानने के लिए मैं यह कहूंगा कि परमाणु विकिरण वह अवस्था है जब परमाणु रिसाव के बाद अस्थिर नाभिक कण वातावरण में घुलकर जैविक सामग्री जैसे जीवित उत्तकों के स्पर्श में आकर शारीरिक अंगो को जला देते है, और शरीर में कैंसर तथा मौत का कारण बनते है!
भौंतिक विज्ञान अथवा चिकित्सा जगत में विकिरण खुराक को रेम (REM =roentgen equivalent in man ) में मापते है ! यूँ तो 25 rems की खुराक से ही खून में परिवर्तन नजर आने लगते है किन्तु यह माना जाता है कि 100 rems तक की खुराक शरीर को ख़ास नुकशान नहीं पहुंचाती ! किन्त यदि खुराक का स्तर 100 rems से ऊपर जाता है तो विकिरण बीमारियों जैसे मतली या उबकाई ,उल्टी, सरदर्द और सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की क्षति के लक्षण नजर आने लगते है ! जापान में अभी तक जो तीन विस्फोट हुए है उसके आधार पर वैज्ञानिकों का मत है कि वहाँ का परमाणु विकिरण जोखिम स्तर इस वक्त १००० rems से भी अधिक है, जबकि अमेरिका में एक परमाणु संयंत्र पर काम करने वाले मजदूर के लिए अधिकतम विकिरण जोखिम सीमा सिर्फ ५ rems रखी गई है! इसी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जापान के लोगो के लिए स्थिति कितनी भयावह है !
जापान अपने औद्योगिक उत्पादन और तकनीकी कुशलता की वजह से एक विकसित राष्ट्र बना! मगर विकसित बनने की होड़ में इंसान अपने को कहाँ तक दांव पर लगा देता है, यह भी हमें जापान से ही सीखना होगा ! यह एक आम बात है कि जहां अगर आप औद्योगिक आधार पर विकसित होने का सपना देख रहे हो, वहाँ निश्चिततौर पर आपको पहली जरुरत बिजली की है ! और जापान जैसा देश जो हमारे मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ (५ लाख वर्ग किलोमीटर ) से भी बहुत कम क्षेत्रफल वाला देश है (३७८००० वर्ग किलोमीटर) , वहाँ इस वक्त कुल ५५ परमाणु रिएक्टर लगे है जबकि भारत जैसे विशाल देश के पास अभी भी कुल २० रिएक्टर है और भविष्य में अमेरिका के साथ हुई परमाणु संधि के आधार पर २२ नए रिएक्टर लगाने की योजना है!
जापान की इस त्रासदी ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें किस स्तर तक विकसित होना चाहिए और इस विकसित होने की प्रक्रिया में अपने पास मौजूद किन साधनों का उपयोग अथवा दोहन करना चाहिए? जापान से हम सबक ले सकते है कि बजाये परमाणु रिएक्टरों की भरमार के हम अपने प्राकृतिक जल स्रोतों का उपयोग कर अपनी बिजली जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर सकते है ! जिसके लिए ईमानदार प्रयासों की जरुरत है न कि तथाकथित "मिस्टर ग्रीन" और उनके वे पर्यावरण विरादर जो सिर्फ खोखले संरक्षक बनने का दावा करते है, उनकी गैरजिम्मेदाराना और अदूरदर्शी नीतियों की, जिसकी वजह से उत्तराखंड और अन्य पहाडी इलाकों की अनेक महत्वाकांक्षी जलविद्युत परियोजनाए अधर में लटकी पडी है! हर बात का अगर इमानदारी और सोच-समझकर ध्यान रखा जाये तो पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ अपनी विद्युत जरूरतों की भी आपूर्ति की जा सकती है ! अत: जरुरत है यह देखने की कि हम विकसित बनकर अपनी भावी पीढ़ियों के लिए फूलों के बीज संरक्षित करे न कि कांटे !
अब सवाल यह उठता है कि यह परमाणु विकिरण क्या है, और प्रसारण के किस स्तर के बाद परमाणु विकिरण खतरनाक हो सकता है ? इसे संक्षेप में जानने के लिए मैं यह कहूंगा कि परमाणु विकिरण वह अवस्था है जब परमाणु रिसाव के बाद अस्थिर नाभिक कण वातावरण में घुलकर जैविक सामग्री जैसे जीवित उत्तकों के स्पर्श में आकर शारीरिक अंगो को जला देते है, और शरीर में कैंसर तथा मौत का कारण बनते है!
भौंतिक विज्ञान अथवा चिकित्सा जगत में विकिरण खुराक को रेम (REM =roentgen equivalent in man ) में मापते है ! यूँ तो 25 rems की खुराक से ही खून में परिवर्तन नजर आने लगते है किन्तु यह माना जाता है कि 100 rems तक की खुराक शरीर को ख़ास नुकशान नहीं पहुंचाती ! किन्त यदि खुराक का स्तर 100 rems से ऊपर जाता है तो विकिरण बीमारियों जैसे मतली या उबकाई ,उल्टी, सरदर्द और सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की क्षति के लक्षण नजर आने लगते है ! जापान में अभी तक जो तीन विस्फोट हुए है उसके आधार पर वैज्ञानिकों का मत है कि वहाँ का परमाणु विकिरण जोखिम स्तर इस वक्त १००० rems से भी अधिक है, जबकि अमेरिका में एक परमाणु संयंत्र पर काम करने वाले मजदूर के लिए अधिकतम विकिरण जोखिम सीमा सिर्फ ५ rems रखी गई है! इसी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जापान के लोगो के लिए स्थिति कितनी भयावह है !
जापान अपने औद्योगिक उत्पादन और तकनीकी कुशलता की वजह से एक विकसित राष्ट्र बना! मगर विकसित बनने की होड़ में इंसान अपने को कहाँ तक दांव पर लगा देता है, यह भी हमें जापान से ही सीखना होगा ! यह एक आम बात है कि जहां अगर आप औद्योगिक आधार पर विकसित होने का सपना देख रहे हो, वहाँ निश्चिततौर पर आपको पहली जरुरत बिजली की है ! और जापान जैसा देश जो हमारे मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ (५ लाख वर्ग किलोमीटर ) से भी बहुत कम क्षेत्रफल वाला देश है (३७८००० वर्ग किलोमीटर) , वहाँ इस वक्त कुल ५५ परमाणु रिएक्टर लगे है जबकि भारत जैसे विशाल देश के पास अभी भी कुल २० रिएक्टर है और भविष्य में अमेरिका के साथ हुई परमाणु संधि के आधार पर २२ नए रिएक्टर लगाने की योजना है!
जापान की इस त्रासदी ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें किस स्तर तक विकसित होना चाहिए और इस विकसित होने की प्रक्रिया में अपने पास मौजूद किन साधनों का उपयोग अथवा दोहन करना चाहिए? जापान से हम सबक ले सकते है कि बजाये परमाणु रिएक्टरों की भरमार के हम अपने प्राकृतिक जल स्रोतों का उपयोग कर अपनी बिजली जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर सकते है ! जिसके लिए ईमानदार प्रयासों की जरुरत है न कि तथाकथित "मिस्टर ग्रीन" और उनके वे पर्यावरण विरादर जो सिर्फ खोखले संरक्षक बनने का दावा करते है, उनकी गैरजिम्मेदाराना और अदूरदर्शी नीतियों की, जिसकी वजह से उत्तराखंड और अन्य पहाडी इलाकों की अनेक महत्वाकांक्षी जलविद्युत परियोजनाए अधर में लटकी पडी है! हर बात का अगर इमानदारी और सोच-समझकर ध्यान रखा जाये तो पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ अपनी विद्युत जरूरतों की भी आपूर्ति की जा सकती है ! अत: जरुरत है यह देखने की कि हम विकसित बनकर अपनी भावी पीढ़ियों के लिए फूलों के बीज संरक्षित करे न कि कांटे !
आनुवांशिक प्रभाव छोड़ती है रेडियोधर्मिता।
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही बात कही है।विचारपरक आलेख्।
ReplyDeleteमानव कितना भी असंतुलन पैदा करे, प्रकृति खुद को संतुलित कर लेती है।
ReplyDeleteप्रणाम
सामान्यजन के लिये जापान में वर्तमान स्थिति की भयावहता का आपने पर्याप्त सरलीकरण के द्वारा चित्रण किया है । आभार...
ReplyDeleteटिप्पणीपुराण और विवाह व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.
बिल्कुल सही बात कही
ReplyDeleteआपका निष्कर्ष स्वागत योग्य है .सरकारों को इस पर ठोस अमल करना चाहिए.
ReplyDeleteपरमाणु शक्ति भी एक दोधारी तलवार है ।
ReplyDeleteअत्यंत सावधानी की ज़रुरत है ।
कुछ तो अपनी करनी ने दिखला दिया कुछ प्रकृति ने जतला दिया :(
ReplyDeleteविचार करने योग्य लेख ...
ReplyDeleteसौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा एक अच्छा विकल्प है, यदि अपनाया जाये तो. और हां आबादी पर नियन्त्रण तो परमावश्यक है.
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट जानकारी से भरी स्वागत योग्य
ReplyDeleteआप की बात से सहमत हे , बिजली बनाने के ओर भी बहुत से साधन हे, ओर भारत मे तो सब साधन बहुत अच्छी तरह से चल सकते हे पानी से, हवा से, धुप से अब हमे क्या बाकी दुनिया को भी जापान से सबक लेना चाहिये, भगवान अब वहां के नागरिको को ओर जपान को सुक्षित रखे,मेरी यह प्राथना हे, मेरे भगवान से
ReplyDeleteविचारणीय आलेख.
ReplyDeleteप्रकृति का सन्तुलन ही कहूँगा मैं तो इसे!
ReplyDeleteबहुत ही विचारनीय आलेख . सच विकास की कीमत जापान के नागरिकों को चुकानी पड़ रही है.
ReplyDeleteलघुकथा --आखिरी मुलाकात
विचारणीय हैं आपकी बातें ... सच है ये सब हमें ही मिलकर तय करना है ... पर आज के भारत में क्या ये संभव है ....
ReplyDelete.......... परमाणु विकीरण जापान क्यों पूरी मानवता के लिए खतरा है, ....... ईश्वर न करे, आज नहीं तो कल हमारे देश को इस स्थिति से रू-ब-रू होना पड़ सकता है....... पनबिजली ही सबसे सुरक्षित साधन है. आपने सही कहा है - "यदि प्रयास ईमानदारी से हो"...... टिहरी बाँध की स्थिति आपसे छुपी नहीं है. पर्यावरण/पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हुए किन्तु कितना पौधारोपण हुआ? टिहरी झील के चारों और नज़र दौडाए तो सूखे पहाड़ नज़र आते हैं. जो थोड़ी बहुत हरियाली है वह गाँव वालों का अपना प्रयास है. इससे अधिक तो अकेले दम पर जगत सिंह चौधरी 'जंगली', विश्वेश्वर दत्त सकलानी, सच्चिदानन्द भारती, कल्याण सिंह रावत 'मैती' पर्यावरण क्षेत्र में क्रांति लाये है बजाय उनके जो पर्यावरण के नाम पर अपने रिश्तेदारों के बलबूते अख़बारों में छाये रहते हैं और बड़े बड़े पुरस्कार झटकने में कामयाब हो गए........ बहरहाल....... आपकी रचनात्मकता व निरंतर सक्रियता को नमन !
ReplyDelete