Sunday, March 13, 2011

सबक !
























उन्नति के मुद्दे पर
हमारा मन चाहे कितना भी सच्चा है,
किन्तु , ये न भूलें 
कि कुदरत 
एक आतंक परस्त, बिगडैल बच्चा है।  

यूं तो हर कोई 
नजदीकिया 
बढाना चाहता है सुन्दर सलोनो से,
मगर खुद ही देख लो, जब कोई 
बिगडैल बच्चा जिद पर आता है तो
किस तरह खेलता है मासूम खिलोनो से।  

18 comments:

  1. सार्थक सन्देश देती रचना ....अब भी इंसान सबक सीख ले ..

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  2. संकेतों से समझाती है प्रकृति।

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  3. सटीक रचना !

    via- http://www.blogprahari.com

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  4. कुदरत से अच्छा कौन समझा सकता है।

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. सही चेतावनी, गोदियाल साहब।

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  8. बहुत सही कहा आपने.

    रामराम

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  9. गोंदियल साहब आपने प्रकृति को एक नए नजरिये से देखा है. तस्वीर देख कर तो ऐसा ही लगता है की किसी शैतान बच्चे ने खिलोनों को तहस नहस कर दिया हो.

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  10. क़ुदरत का कहर , हम सब वेबस , सबक तो लेना ही पड़ेगा

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  11. कुदरत के खेल में सभी मूक दर्शक है!

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  12. कुदरत से कोई नहीं बचा फिर भी कुछ लोग धर्म के नाम पर मारते रहते हैं...

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  13. होनहार नहीं समय होत बलवान॥

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  14. कुदरत को चुनौती देना हर दम इंसान को भारी पड़ता है। लेकिन मद में चूर इंसान इसे तब तक नहीं समझ पाता जब तक कुदरत को छेडऩे की कीमत न चुका दे......... ईश्वर जापानी भाईयों को इस मुसीबत से उबरने की ताकत दे।

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  15. प्राकृति के प्रकोप के सारे कोई कुछ नही कर सकता ... प्राकृति कुछ न कुछ बताती ही रहती है इशारे इशारो में ....... इंसान बस ऊपर वाले से दुआ ही हो सकती है ...

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  16. अब भी समय है हमें सबक लेना चाहिए....

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  17. गोदियाल जी
    सबक तो लेना ही पड़ेगा

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  18. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।