ब्लॉग्गिंग को आज के दौर में अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम माना जाता रहा है ! १९४७ में ब्रिटिश औपनिवेश से स्वतंत्रता के बाद भले ही इस देश के आम आदमी ने प्रत्यक्ष तौर पर ख़ास कुछ स्वतंत्रता का रसपान कभी न किया हो, मगर मैं सोचता था कि शायद अंतरजाल एक ऐसा अप्रत्यक्ष माध्यम हाल के वर्षों में इस देश के आम इंसान को मिला है, जिसमे हर कोई बेहिचक अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र है! लेकिन हमारी वर्तमान सरकार दुनिया के इस दूसरे बड़े लोकतांत्रिक देश में आमजन की इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से कुछ ज्यादा ही घबरा गई है, ऐसा प्रतीत होता है!
आज पूरे देश को जहां एक ओर गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्ठाचार और बुनियादी सुविधाओं के अभाव से रोज दो-चार होना पड़ रहा है, वही दूसरी ओर इस बाबत कोई ठोस कदम उठाने की बजाये हमारी ये सरकारें उन गैर-जरूरी कामों की ओर ज्यादा सक्रिय नजर आती है जिसमे ये उस आम इंसान की आवाज दबा सके, जो इसे चुनकर संसद में भेजता है ! इससे तो यही प्रतीत होता है कि वह यह नहीं चाहती कि कोई इनके घोटालों की चर्चा अपने ब्लोगों पर करे, शायद वह यह भी नहीं चाहती कि कोई नेताओं और अफसर शाहों की गैर-कानूनी और अनैतिक गतिविधियों का पर्दाफाश कर इसे आम जनता के बीच पहुंचाए !
भारत के सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम २००८ को अंतिम रूप दिया जा रहा है और पूरक नियमों को इसमें शामिल किया जा रहा है, जिसमे अप्रतयक्ष रूप से भारत सरकार को यह अधिकार होगा कि वह इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री को अपने ढंग से नियंत्रित कर सके और ब्लोगों को ब्लोंक कर सके ! फरवरी के तीसरे सफ्ताह में सीआईआई कॉन्टेंट शिखर सम्मेलन में तीन सरकारी हस्तियों - सूचना एवं प्रसारण (आई एंड बी) मंत्री अंबिका सोनी, ट्राई के मुखिया जे एस सरमा और सूचना एवं प्रसारण सचिव रघु मेनन ने भी इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के बारे अपनी चिंता का उल्लेख किया, ये बात और है कि वहाँ उन लोगो ने इस सामग्री के विनियमन की किसी कोशिश को फिलहाल नकारा हो किन्तु ऐसी अपुष्ट खबरे है कि उसके बाद सरकार ने टाईपपैड, मोबैंगो किलकाटेल: स्क्रीन शॉट्स को ब्लोंक भी कर दिया है विस्तृत जानकारी आप इस लिंक How The Indian Government Plans To Regulate Online Content & Blogs पर देख सकते है!
इसमें कोई संदेह नहीं कि न सिर्फ सरकार अपितु हमारा आमजन भी उपलब्ध सुविधाओं का दुरुपयोग करने में माहिर है! और एक संवेदनशील व जिम्मेदार सरकार और नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह ऐसी कोई आपत्तिजनक सामग्री सार्वजनिक मंचों पर प्रकाशित न करे या होने से रोके, जिसका समाज पर दुष्प्रभाव पड़ता हो, मगर लाख टके की बात यह है कि सरकार इन प्रावधानों से दुनियाभर में फैले अंतरजाल पर तो रोक नहीं लगा सकती है, फिर ऐसे नियम- कानूनों का क्या सदुपयोग अथवा दुरुपयोग होगा, यह आने वाले समय में देखने वाली बात होगी ! अभी तो बस यही आशंका लगती है कि एक तरफ जहां अमेरिका अपने नागरिकों के लिए इंटरनेट को फ्री-सेवा के रूप में तब्दील करने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ कहीं हम अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए अपने नागरिकों का मुह बंद करने का प्रयास तो नहीं कर रहे?
आज पूरे देश को जहां एक ओर गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्ठाचार और बुनियादी सुविधाओं के अभाव से रोज दो-चार होना पड़ रहा है, वही दूसरी ओर इस बाबत कोई ठोस कदम उठाने की बजाये हमारी ये सरकारें उन गैर-जरूरी कामों की ओर ज्यादा सक्रिय नजर आती है जिसमे ये उस आम इंसान की आवाज दबा सके, जो इसे चुनकर संसद में भेजता है ! इससे तो यही प्रतीत होता है कि वह यह नहीं चाहती कि कोई इनके घोटालों की चर्चा अपने ब्लोगों पर करे, शायद वह यह भी नहीं चाहती कि कोई नेताओं और अफसर शाहों की गैर-कानूनी और अनैतिक गतिविधियों का पर्दाफाश कर इसे आम जनता के बीच पहुंचाए !
भारत के सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम २००८ को अंतिम रूप दिया जा रहा है और पूरक नियमों को इसमें शामिल किया जा रहा है, जिसमे अप्रतयक्ष रूप से भारत सरकार को यह अधिकार होगा कि वह इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री को अपने ढंग से नियंत्रित कर सके और ब्लोगों को ब्लोंक कर सके ! फरवरी के तीसरे सफ्ताह में सीआईआई कॉन्टेंट शिखर सम्मेलन में तीन सरकारी हस्तियों - सूचना एवं प्रसारण (आई एंड बी) मंत्री अंबिका सोनी, ट्राई के मुखिया जे एस सरमा और सूचना एवं प्रसारण सचिव रघु मेनन ने भी इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के बारे अपनी चिंता का उल्लेख किया, ये बात और है कि वहाँ उन लोगो ने इस सामग्री के विनियमन की किसी कोशिश को फिलहाल नकारा हो किन्तु ऐसी अपुष्ट खबरे है कि उसके बाद सरकार ने टाईपपैड, मोबैंगो किलकाटेल: स्क्रीन शॉट्स को ब्लोंक भी कर दिया है विस्तृत जानकारी आप इस लिंक How The Indian Government Plans To Regulate Online Content & Blogs पर देख सकते है!
इसमें कोई संदेह नहीं कि न सिर्फ सरकार अपितु हमारा आमजन भी उपलब्ध सुविधाओं का दुरुपयोग करने में माहिर है! और एक संवेदनशील व जिम्मेदार सरकार और नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह ऐसी कोई आपत्तिजनक सामग्री सार्वजनिक मंचों पर प्रकाशित न करे या होने से रोके, जिसका समाज पर दुष्प्रभाव पड़ता हो, मगर लाख टके की बात यह है कि सरकार इन प्रावधानों से दुनियाभर में फैले अंतरजाल पर तो रोक नहीं लगा सकती है, फिर ऐसे नियम- कानूनों का क्या सदुपयोग अथवा दुरुपयोग होगा, यह आने वाले समय में देखने वाली बात होगी ! अभी तो बस यही आशंका लगती है कि एक तरफ जहां अमेरिका अपने नागरिकों के लिए इंटरनेट को फ्री-सेवा के रूप में तब्दील करने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ कहीं हम अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए अपने नागरिकों का मुह बंद करने का प्रयास तो नहीं कर रहे?
ओह :(
ReplyDeleteऑनलाइन कंटेंट पर वैसे तो रोक लगाने के लिए तमाम देशों में कानून हैं, मगर उन पर प्रभावी तरीके से रोक कभी भी लगाई नहीं जा सकती क्योंकि उसका तोड़ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है.
ReplyDeleteअलबत्ता पूरे इंटरनेट के इस्तेमाल पर ही प्रतिबंध लगा दिया जाए तो बात अलग है.
शुक्रिया रवि रतलामी साहब इस जानकारी के लिए ! और मेरा कहने का उद्देश भी यही है कि जब सरकार इन्टरनेट कॉन्टेंटस कर प्रभावी रोक लगा ही नहीं सकती है, तो फिर इस तरह के प्रावधानों का उद्देश्य क्या हो सकता है? सिर्फ उन ब्लोगों , साइटों पर नकेल कसना जो इनके खिलाफ लिखे ?
ReplyDeleteरोकने के प्रयास उतने सफल नहीं होते दिखते हैं, धारा अपना रास्ता खोज ही लेती है।
ReplyDeleteबहुत सार्थक और विचारणीय पोस्ट...
ReplyDeleteडरता कौन है.
ReplyDeleteये भी कर के देख लें.
कोई चीन से सबक़ नहीं ले तो कोई क्या करे.
godiyal जी , हम तो पहले से ही सेल्फ सेंसर्ड होकर लिखते हैं । क्या करें , मजबूरी है ।
ReplyDeleteकुर्सी छोड़ना कौन चाहता है,हुस्नी मुबारक ,गद्दाफी के उदहारण सामने हैं.जहाँ तक संभव हो जन-असंतोष को दबाने की कोशिश है.१९७५ के आपात काल से भी सबक न लें तो उनकी बुद्धी को ही लानत है.आपात काल के दमन से इंदिरा जी को ही नहीं पता चला जनता कितनी आक्रोशित थी जो वह खुद ही चुनाव हार गयीं. अच्छा होगा जो सरकारी दमन बढेगा तभी तो आप क्रान्ति करेंगे.
ReplyDeleteमहाराज सब से पहले तो बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ ले लीजिये ... वो हम से डर रहे है इस लिए ही तो हमारी आवाज दबाना चाहते है !
ReplyDeleteबहती हवा ओर पानी को कोई नही रोक सका, ओर जनता के विचार भी इसी के समान हे जो हक के लिये उठते हे.... कितना ही जोर लगा ले, जनता ओर रास्ता तलाश कर लेगी
ReplyDeleteशिवम् मिश्र जी से सहमत क्या हमारी आवाज में इतना जोर है की उसे दबाया जाये ? अगर है तो सभी व्लागर को बधाई
ReplyDeleteजिस चीज़ को जितना दबाने की को्शिश की जाती है वो उतना ही उग्र रूप धारण कर लेती है ये शायद अभी सरकार को नही पता……………
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है पर माननिय रवि रतलामी जी की बात पढकर कुछ आराम मिल गया है.
ReplyDeleteरामराम
सही कहा है आपने कि हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम ऐसी कोई आपत्तिजनक सामग्री सार्वजनिक मंचों पर प्रकाशित न करें या होने से रोकें, जिसका समाज पर दुष्प्रभाव पड़ता हो!
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है किन्तु रवि रतलामी जी ने जो कहा है वह भी बिल्कुल सही है।
ReplyDeleteनियमन की सोच और प्रयास अगर दिलो-दिमाग खुला रख कर हो तो हर्ज क्या.
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ReplyDeleteसरकार जो चाहेगी वो करेगी ... ऐसे क़ानून बन भी जायेंगे और उनकी मनमर्जी भी चलेगी ..
ReplyDeleteGovt proposal to muzzle bloggers sparks outcry
ReplyDeleteNEW DELHI: A government proposal seeking to police blogs has come in for severe criticism from legal experts and outraged the online community. The draft rules, drawn up by the government under the Information Technology Amendment Act, 2008, deal with due diligence to be observed by an intermediary.
Under the Act, an 'intermediary' is defined as any entity which on behalf of another receives, stores or transmits any electronic record. Hence, telecom networks, web-hosting and internet service providers, search engines, online payment and auction sites as well as cyber cafes are identified as intermediaries. The draft has strangely included bloggers in the category of intermediaries, setting off the online outcry.
Blogs are clubbed with network service providers as most of them facilitate comment and online discussion and preserve the traffic as an electronic record, but equating them with other intermediaries is like comparing apples with oranges, says Pavan Duggal, advocate in the Supreme Court and an eminent cyber law expert.
'This will curtail the freedom of expression of individual bloggers because as an intermediary they will become responsible for the readers' comments. It technically means that any comment or a reader-posted link on a blog which according to the government is threatening, abusive, objectionable, defamatory, vulgar, racial, among other omnibus categories, will now be considered as the legal responsibility of the blogger," he explains.
Even Google, the host of Blogger, among India's most popular blogging sites, expressed displeasure at the proposal. "Blogs are platforms that empower people to communicate with one another, and we don't believe that an internet middlemen should be held unreasonably liable for content posted by users," a spokesperson told TOI.
Curtsy-Times of India
मुझे नहीं लगता कि कुछ होना जाना है.
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