अजनबियों पर यूं न इसतरह, सब कुछ वारा-न्यारा करों,
दुनिया रंग-रंगीली है पगली, कनखियों से न निहारा करो।
प्यार करना जिन्हें आता नहीं, प्रेम भी उनको भाता नहीं,
छज्जे में आकर, पल्लू हिलाकर, हर वक्त न इशारा करो।
जो हम तुम्हें देखें न देखे, तुम रहो सदा बेपरवाह होकर,
शीशे को ही आशिक समझकर, गेसुयें तुम सवारा करों।
तन्हाई में ख़्वाबों में खोकर,यादों में न दिल पिघलाओ,
ख्याल बुनते हुए ऐसे उनींदी न ही रतियन गुजारा करो.
दुनिया रंग-रंगीली है पगली.... !
दुनिया रंग-रंगीली है पगली, कनखियों से न निहारा करो।
प्यार करना जिन्हें आता नहीं, प्रेम भी उनको भाता नहीं,
छज्जे में आकर, पल्लू हिलाकर, हर वक्त न इशारा करो।
जो हम तुम्हें देखें न देखे, तुम रहो सदा बेपरवाह होकर,
शीशे को ही आशिक समझकर, गेसुयें तुम सवारा करों।
तन्हाई में ख़्वाबों में खोकर,यादों में न दिल पिघलाओ,
ख्याल बुनते हुए ऐसे उनींदी न ही रतियन गुजारा करो.
दुनिया रंग-रंगीली है पगली.... !
आज तो बहुत प्यारा गीत लगाया है!
ReplyDeleteपढ़कर आनन्द आ गया!
प्यार क्या है, किसी को आता नहीं,
ReplyDeleteबेवफ़ा जहां को तो प्रेम भाता नहीं,
बहरा नहीं कोई तेरे इस शहर में,
नाम लेकर तुम यूं न पुकारा करो..
अजनबियों पर यूं न इस तरह तुम....!
वाह बहुत ही शानदार, शुभकामनाएं.
रामराम.
न जाने किस अजनबी के द्वार पर,
ReplyDeleteप्यार का उद्दाम सा सागर छिपा है।
अजनबियों पर यूं न इस तरह तुम,
ReplyDeleteअपना सब कुछ वारा-न्यारा करों,
दुनिया बड़ी रंग-रंगीली है पगली,
इसे कनखियों से न निहारा करो.
अजनबियों पर यूं न इस तरह तुम....
हमें तो यह पसंद आया बहुत खूब वाह वाह ..
सुन्दर प्यार भरा गीत ।
ReplyDeleteवाह जी बहुत सुंदर
ReplyDeletemaujan hi maujan...
ReplyDeleteप्यार क्या है, किसी को आता नहीं,
ReplyDeleteबेवफ़ा जहां को तो प्रेम भाता नहीं,
बहरा नहीं कोई तेरे इस शहर में,
नाम लेकर तुम यूं न पुकारा करो..
अजनबियों पर यूं न इस तरह तुम....!
सच है जी दुनिया को प्रेम की भाषा आती कहॉ है।
a very beautiful song.
ReplyDeleteसमझाईश से परिपूर्ण आनन्ददायक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, ओर सत्य एक पंजाबी का गीत याद आ गया... जी करदा ऎ ऎस दुनिया नूं मे हट के ठोकर मार देया...धन्यवाद
ReplyDeleteगोदियाल साहब, अगर ऐसा हो गया तो हम जैसों का क्या होगा जो पूरा दिन उन्हीं के पीछे पीछे गुजार देते हैं। मेरा भी तो फिक्र किया होता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत, महाराज!!
ReplyDeleteअजनबियों पर यूँ न वारा न्यारा करो ...
ReplyDeleteमगर पहली बार तो सभी अजनबी ही होते हैं ...
अच्छा गीत !
अक्सर ही घर के छज्जे में आकर,
ReplyDeleteदुपट्टे का पल्लू हौले-हौले हिलाकर,
शीशे को तसदीका आशिक बनाकर,
यूँ न गेसुओं को अपनी सवारा करों....
बहुत खूब ... क्या कहने हैं ... मजा अ गया ...
एक दिन में दो पोस्ट -एक आग और एक बर्फ ?
ReplyDeleteअजीब शर्त है बुनियाद-ए-दोस्ति के लिए
ReplyDeleteकि एक अजनबी की ज़रूरत है अजनबी के लिए :)
बहुत प्यारा गीत...अंतस को छू गया..
ReplyDeleteachchhi kavita
ReplyDeletehttp://kavyana.blogspot.com/2011/03/blog-post_31.html