Sunday, January 31, 2021

प्रश्न

फिरकापरस्ती एंव सियासी चाल के

जहां असंख्य मुरीद हों ऐसे,

गणतंत्र किसान ट्रैक्टर परेड की आढ मे

लालकिले के दीद हों ऐसे,

फिर तो सोचते ही रहो 'परचेत' कि

देश-हित के फैसले मुफी़द हों कैसे।

Tuesday, January 26, 2021

गणतंत्रपर्व का हर्ष और विसाथद..

वैरियों से जुडे हों जिनके तार ऐसे,

कृषक भेष मे लुंठक, बटमार ऐसे,

कापुरुष किसान परेड की आड मे,

कर रहे है, देश-छवि शर्मशार ऐसे।


इधर ये, वीरों के शौर्य को सलाम करके 

लोग करते गणतंत्र पर्व को साकार ऐसे ,

उधर वो, लालकिले को  रौंदने मे लगे हैं,

कुछ फसादी, तुच्छ-स्वार्थी मक्कार ऐसे।


नेताओं की महत्वाकांक्षा ने कर रखा

सम्पूर्ण व्यवस्था के तंत्र को लाचार ऐसे,

कापुरुष किसान परेड की आड मे,

कर रहे है, वतन-छवि शर्मशार ऐसे।


सभी ब्लॉग मित्रों  को  गणतंत्र दिवस की 

हार्दिक शुभकामनाएं।🙏










Friday, January 22, 2021

आग्रह..

वक्त की कीमत, हमेंं 

मत समझा ऐ दोस्त, 

समय अपना व्यतीत के,

हमारा तो पीछा ही 

नहीं छोडते ये कमबख़्त, 

कुछ पछतावे अतीत के।


Thursday, January 21, 2021

टीस..

बीच तुम्हारे-हमारे ये रिश्ते, 

यूं न इसतरह नासाज़ होते, 

फक़त,इसकदर दूरियों मे 

सिमटे हुए न हम आज़ होते,

तुम्हारी सौगंध, हम 

हर लम्हे को बाहों मे समेटे रखते,

थोडा जो अगर तुम्हारे,

मर्यादा मे रखे अलफाज़ होते।

Wednesday, January 20, 2021

जिह्व-स्वाद।

 ना ही कोई बंदिश, ना ही कोई परहेज़,

 मैं अपने ही उदर पर कहर ढाता रहा।

 लजीज़ हरइक पकवान वो परोस्ते गये

और स्वाद का शौकीन, मैं खाता  रहा।।

Tuesday, January 19, 2021

विचलन..

टलोलता ही फिर रहा हूँ उम्र को, 

तभी से मैं हर इक दराज़ मे,

जबसे, कुछ अजीज ये कह गये कि

'परचेत' तू अब, उम्रदराज़ हो गया।


Sunday, January 17, 2021

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ..







अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।


हो क़दरदान तुम बहुत, 

गुल़रुखों के नगमा-ए-साज के,

तारों भरी रात, 

नयनोँ मे बरसात, 

धुन कौन सी बजाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


अजीबोग़रीब अफ़साने हैं, 

इस मुक्त़सर सी जिंदगी के,

लबों पे कबतक लिए फिरूँ, 

क्यों न कागज़ पर उतर जाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


थे अबतक हम भी खामोश

तेरी खामोशी को देखकर,

हमें महफिलों की शान नहीं बनना,

सिर्फ़ बात तुम्हें दिल की बता पाऊँ।

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।।



Thursday, January 14, 2021

नश्तर..

उधर सामने खडे थे संस्कार,

बनकर के मेरे पहरेदार,

संकुचायी सी मैं कुछ बोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


तुम्हारे जैसे बहुतेरे मिले हमको,

जिंदगी की राह मे मन डुलाने वाले,

किन्तु, फिर भी कभी मैं डोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


शक्ल से भले ही कोई बांके लगे हो,

बेकार है, बांकी जो अगर उसकी,  

अपनी  खुद की भाषा-बोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


अरे वो तमाम पैमानों के पैरवीकारो,

नापने से कद कभी बढता नहीं, गर

मनसाही जो कभी अपनी तोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


Sunday, January 10, 2021

बिम्बसार

तुम न कभी अश्क बहाना, ऐ दोस्त,

क्यूंकि तुम बे'गम' हो,

ये तुम्हारा धुर्त 'शो'हर तो,

यूं ही, मजे लेने के खातिर रो लेता  हैं।

खलिश..

मंजिल के करीब पहुंचने ही वाली थी

जब यह सफ़र-ए-जिन्दगी, ऐ दोस्त!

तुमने नींद मे खलल डालकर, 

स्वप्न विच्छेदन कर दिया

Thursday, January 7, 2021

अन्तरद्वंद







यारअब बता भी दो, 

छुपा रही हो जो हमसे, 

अपना वो दर्द जौन सा ।

कुछ तो बात होगी वरना, 

ये नजरें तुम्हारी  हमको,

यूं 'कातर ' न नजर आती।।


Tuesday, January 5, 2021

अजनबी तपन..

 दिल मे ही अटक गई , वो छोटी सी ख़लिश हूँ,

यकीनन, न तो मैं राघव हूँ और ना ही तपिश हूँ।

मुद्दत से,अकेला हूँ दूर बहुत, करीबियों से अपने,

मगर न जाने क्यों ऐ 'परचेत', इसी मे मैं खुश हूँ।

Sunday, January 3, 2021

उम्मीद कायम है...

 








उम्मीदों से भरा ये मिज़ाज अच्छा है, 

जश्न मनाने का ये रिवाज़ अच्छा है,

आगे चलके गुल जो भी खिलाये मगर,

 इस नये साल का आगाज़ अच्छा है।

Friday, January 1, 2021

Ambition


 











As cliché as 

this might sound, 

it is really true,

what goes around 

comes around.  

So, it would be 

appropriate always

that the flight of 

our wishes

should always match 

the reality of the ground .








प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।