पहाड़ों की खुशनुमा,
घुमावदार सडक किनारे,
ख्वाब,ख्वाहिश व लग्न का
मसाला मिलाकर,
'तमन्ना' राजमिस्त्री व 'मुस्कान'
मजदूरों के सहयोग से,
उसने वो जो घर बनाया था कभी,
सुना है कि आज, उस घर पर इंद्रदेव
इतने मुग्ध हुए कि उन्होंने
बादलों से जाकर कहा कि फटो
और उस मकां को बहाकर
मेरे पास ले आओ।
ओह, ये तो ज्यादती है इंद्रदेव की ।।
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteसभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
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आप सभी का आभार🙏
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