Saturday, August 20, 2011

विश्व मच्छर दिवस (वर्ल्ड मोंसक्विटो डे ) !


वैसे तो इस निकृष्ट, मलीन और दूसरों का खून चूसने वाले प्राणि को कौन नहीं जानता और कौन इससे आज दुखी नहीं है, मगर शायद ही बहुत कम लोग जानते होंगे कि साल में एक दिवस इस दुष्ट प्राणि के नाम पर भी मनाया जाता है, और वह दिवस है, २० अगस्त ! आइये इस विश्व मच्छर दिवस पर एक पल के लिए, किसी अन्य जीव से अधिक मानवीय पीड़ा का कारण बनने वाले इस कलंकित रोगवाहक प्राणि के बारे में थोड़ा मनन करें !

सन १८९७ में लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ. रोनाल्ड रॉस द्वारा इसका श्रीगणेश किया गया था, और न्यू जर्सी स्थित अलाभकारी संस्था अमेरिकी मच्छर कंट्रोल एसोसिएशन ने मलेरिया के संचरण की खोज का पूरा श्रेय उन्हें ही दिया! इस उपलब्धि की बदौलत उन्हें सन 1902 में चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था ! हालांकि हमारे अन्ना की ही भांति उनका भी प्रारम्भिक उद्देश्य इस दोयम दर्जे के भ्रष्ट और अराजक प्राणि की कारगुजारियों से उत्पन्न होने वाले सामाजिक विकारों और जन-धन के नुक्शान के बारे में जनता को जागरूक करना और इनके द्वारा फैलाए जाने वाली नैतिकपतनलेरिया,डेंगू और चरित्रगुनिया जैसी बीमारियों पर प्रभावी लोकपाल लगाना था, मगर हर चीज इतनी आसान कहाँ होती है ! बुरी चीजें अच्छी चीजों के मुकाबले अधिक तीव्र गति से फैलती है, इन बुराइयों का साथ देने के लिए देश, दुनिया में इन्ही की नस्ल के और भी बहुत से परजीवी मौजूद होते है जिन्हें भले और बुरे प्राणि में फ़र्क़ करने की कसौटी बताते-बताते थक जाओगे मगर वे समझना ही नहीं चाहते,क्योंकि उनके खून में भी वही गंदगी मौजूद है! अत: इनपर लगाम कसने की तमाम कोशिशों के बावजूद भी आज ये सभ्य समाज के लिए नासूर बन गए है! इसके चलते हर साल विश्व में तकरीबन दस लाख लोग, जिनमे अधिकाँश युवा और बच्चे होते है, असामायिक मौत का ग्रास बन जाते है!


एक बात ध्यान रखने योग्य है कि सरल प्राणि जब अपने न्यायपूर्ण हितों के लिए सत्य के सहारे आगे बढ़ता है तो वह किसी को दुःख न पहुंचाने का हर संभव प्रयास करने के बावजूद भी जंगे मैदान में प्रत्यक्ष तौर पर सक्रीय होने की वजह से कईयों की नाराजगी भी मोल ले लेता है और उसे बहुत-सी अनचाही परेशानियां उठानी पड़ती है ! जबकि निकृष्ट जीव अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए अनेकों चालबाजिया और प्रपंच खड़े करता है तथा अनगिनत तुच्छ और छद्म-तरीके अपनाकर खुद को भला और ईमानदार प्राणि दर्शाने के लिए परदे के पीछे छिपे रहकर अपने काले कारनामों को अंजाम देने की कोशिश करता है! प्राणि समाज के लिए घातक इस जीव ने आज हर तरफ अपना जाल फैलाकर एकछत्र राज स्थापित कर लिया है, जिसको चुनौती देना ही एक बड़ी चुनौती बन गई है! आज हमारे समक्ष इस मौस्क्वीटो मीनेस से निपटने के सीमित उपाय ही मौजूद रह गए है ! जंगलराज के विधान आज आम आदमी के दरवाजे, खिडकियों की जालियों और मच्छरदानियों को धराशाही कर इनके लिए ऐसी अराजक भूमि तैयार करने में लगे है, जहां ये बिना रोक-टोक किसी का भी खून चूस सकें !


यह बात अब सर्वविदित है कि पिछले कुछ दशकों में भारत-भूमि इन मच्छरों के लिए एक सर्वो-उपयुक्त जगह बनकर उभरी है! अपनी रणनीति के हिसाब से यह दुष्ट जीव अलग-अलग पालियों (दिन, शाम,रात ) में भ्रमित कर, मौक़ा देख अन्य प्राणियों का न सिर्फ खून चूसता है बल्कि उन्हें घातक बीमारियाँ भी दे जाता है! इसमें से एक ख़ास नश्ल का खतरनाक मच्छर तो पिछले ६० से भी अधिक सालों से अपना कुलीन राज चला रहा है और हाल ही में इनके सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग ने शोषित प्राणि समाज का खून चूसने में अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले है! आज मलेरिया फैलाने के लिए जिम्मेदार मादा मच्छर समूचे अभिजात वर्ग पर हावी है, वह इसलिए नहीं कि वह इतनी सक्षम है बल्कि इसलिए कि उनके इर्द-गिर्द मौजूद पट्ठों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि राजवंश की आड़ में वे आम-आदमी का खून बेशर्मी से पी सकते है !


इसी की परिणिति का फल है कि आज जीवन के हर कोने से विरोध की चिंगारी सुलगने लगी है, जिसे ये मोटी चमड़ी के स्वार्थी और धोखेबाज मलीन जीव देखकर भी अनदेखा कर रहे है! अब वक्त आ गया है कि इस घृणित प्राणि के काले कारनामों पर प्रभावी रोक लगाईं जाये ! इनके प्रभुत्व वाले क्षेत्र में इनके प्रजनन पर ठोस नियंत्रण रखा जाए, ताकि इनकी भावी पीढ़िया भी अपनी घटिया खानदानी परम्पराओं को आगे भी इसीतरह क्रमबद्ध तरीके से चलाकर समाज को दूषित न कर सके! इसके लिए एक कारगर तरीका यह भी है कि अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते वक्त हम यह सुनिश्चित करे कि राजवंश तकनीक DDT (damn dynasty techniques ) पर लानत भेजी जाए और हर पहलू का गंभीरता से मूल्यांकन किया जाए ! याद रखिये कि एक भोला-भाला सा दिखने वाला मच्छर मरियल सडियल ( एम्एम्एस ) भी समूचे क्षेत्र के प्राणियों को हिंजड़ा बना सकता है ! 

Tuesday, August 16, 2011

कार्टून कुछ बोलता है-हसनअली को बेल, अन्ना को जेल !

                                                                                                  गोदियाल  
सौ जोड़ो तो हजार बनता है, हजार जोड़ो तो बनता है हजारे,
अन्ना आप ये न समझना आप अकेले हो, हम साथ है तुम्हारे !!



Sunday, August 14, 2011

आजादी का अत्यानंद !

पता नहीं क्यों, मगर मुझे बचपन से ही अपना वो तथाकथित गौरवशाली मद्ययुगीन इतिहास पढने में कभी भी ख़ास रुचि नहीं रही ! किन्तु हाँ, आज भी मुझे अपने विद्यार्थी जीवन की वह बात खूब याद है, जब एक ख़ास अवसर पर मैं अपने पाठ्यक्रम में मौजूद इतिहास की किताब के पन्ने पलटना नहीं भूलता था, और साल में वह एक ख़ास अवसर होता था, पंद्रह अगस्त अथवा २६ जनवरी की तैयारी ! इतिहास के पन्ने पलटने पर जब मुझे ज्ञात होता कि आजादी को हासिल करने के पीछे जो प्रमुख कारण रहे थे, वे थे भेदभाव, शोषण और क्रूरता, जिन्होंने मुस्लिम शासकों के खिलाफ अंग्रेजो को विविधता और जयचंदों से भरे इस देश में लोगों का समर्थन दिलवाया और अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आन्दोलन का बिगुल फूका ! और जब मेरा शरारती और विद्रोही बालमन इन कारकों पर मनन करने बैठता तो सहपाठियों के बीच होते हुए भी मैं खुद को असहज सा महसूस करने लगता था!



विचलित मन तब और असहज हो उठता, जब मैं देखता कि नौकरी-पेशा घर-परिवार के बड़े लोग तो स्वतंत्रता अथवा गणतंत्र दिवस की सरकारी छुट्टी होने की वजह से सुबह के ८-९ बजे तक तनकर सो रहे होते और हम बेचारे नन्हे नौनिहालों को स्कूल-प्रशासन उस दिनपर तडके पांच-साढ़े पांच बजे ही स्कूल के लिए प्रस्थान का तुगलकी फरमान सुना डालता था ! फिर तब मन और विचलित हो उठता जब कोमल शरीरों पर शोषण का दौर शुरू होता और पसीनेदार गर्मी अथवा कड़कती ठण्ड में चिलचिलाती धूप, कुहरे अथवा मुसलाधार वारिश के बीच भूखे-प्यासे नौनिहालों को सुबह सात से ग्यारह बजे तक मैदान में टांग दिया जाता ! और उस वक्त तो मानवता क्रूरता की सारी हदें ही तोड़ डालती थी, जब उजले खादी में लिपटी कुछ मुहफट दुरात्माओं की सड़ी जुबान से निकली बदबू पर भी हम नौनिहालों को ताली बजाने के लिए जबरन मजबूर किया जाता और जबरदस्ती उनकी जय बुलवाई जाती! और  अगर मैं गलत नहीं तो शायद यह भेदभाव, शोषण और क्रूरता का नंगा खेल इस देश में आज स्वतंत्रता के ६४ साल बाद भी बदस्तूर जारी है!

आज भी जब देश, समाज और अपने आस-पास घटित होने वाली हर उस घटना के परिदृश्य पर मनन करने बैठता हूँ, जिसमे राष्ट्र की सार्वभौमिकता और समाज की व्यक्तिगत आजादी पर कुठाराघात हो रहा हो तो अनायास ही मानसपटल पर यह सवाल कौंधता है कि क्या वाकई हम आजाद है? भारत माँ के माथे के कलंक अनेको भ्रष्ट, स्वार्थी और धन के लोभी भूखे-नंगों ने जिसतरह मंगोलों, मुगलों और अंग्रेज लुटेरों के लिए मेजबानी का काम किया, अपने ही घर में उनके लिए भेदी बने, और आखिरकार यह देश तीन-तीन बार लम्बी अवधि के लिए डाकुओं, अनैतिक और निर्मम लोगो के अधीनस्थ रहा, आज भी तो स्थित उससे भिन्न नजर नहीं आती ? तब और अब में फर्क सिर्फ इतना है कि वे विदेशी आये थे और विदेशी बनकर राज किया, मगर आज के ये शासक खुद को इसी देश का बताकर इसे लूट रहे है, मनमानी और लोगो पर अत्याचार कर रहे है, लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही कर रहे है ! सुरक्षा कारणों का हवाला देकर नियम कानूनों को खुद तो ताक पर रख मनमर्जी करते है, मगर दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने से नहीं चूकते ! हालांकि भ्रष्टता और बेईमानी आज क्या आम आदमी, क्या बाबा क्या महात्मा, ज्यादातर की रगों में दौडती है, मगर ताकतबर के लिए वह तब तक क्षम्य है, जबतक वह आपके खिलाप आवाज नहीं उठाता ! जिसदिन इन्हें लगने लगे कि वह इनके लिए ख़तरा बनने लगा है, सारा सरकारी महकमा ही उसके खिलाफ झोंक दिया जाता है! इनकी मनमानी की एक ख़ास वजह यह भी है कि देश जयचंदों से पटा पडा है! अगर कोई एक आगे आकर देशहित और समाज हित की बात करता भी है तो उसे ये लोग देश हित के परिपेक्ष में न देखकर सिर्फ दलगत राजनीति पर लाकर उसे हतोत्साहित करने में लग जाते है !



वैसे तो हम ज्यादातर हिन्दुस्तानियों के लिए यह दिवस महज एक दिन की छुट्टी से बढ़कर ख़ास कुछ नहीं, मगर किसी के लिए यह अगर इससे बढ़कर है भी, तो भी आज की तमाम परिस्थितियों के मद्धयनजर क्या हमारा इसे आजाद होना कहना उचित है ? दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अमेरिका भी अट्ठारवी सदी के प्रारंभ में अपने को ग्रेट ब्रिटेन से आजाद होने के उपलक्ष में थैंक्स गिविंग डे के तौर पर हर साल उस क्षण को याद करता है, क्योंकि उसने सचमुच आजादी पाई और उसे आजतक बरकरार रखा ! हमारा पढ़ोसी पाकिस्तान भी १४ अगस्त को हमसे हमारा एक बड़ा भूभाग छीनने और अलग देश बनाने के तौर पर अपना आजादी दिवस मनाता है, क्योंकि भू-भाग के तौर पर उसने भी कुछ हासिल किया ! लेकिन कुछ चोर-लुटेरों, भ्रष्ट-कातिलों के लिए स्वर्ग द्वार खोलने के सिवाए हमें क्या मिला ? हमने तो सिर्फ खोया और खोया ही है ! इसे मनाकर निश्चिततौर पर हम विश्व विरादरी और अपनी नई पीढी को यह सन्देश तो देते है कि हम इसदिन पर एक लम्बी गुलामी के बाद अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुए थे, मगर हम हिन्दुस्तानियों ने क्या कभी गंभीरता से इन सवालों पर भी विचार किया कि वे क्या वजहें थी, जिनकी वजह से हमारे देश ने तीन-तीन गुलामिया झेली ! क्या वे वजहें और परिस्थितियाँ आज की परिस्थितियों से भिन्न थी ? ६-७ महीने में सिर्फ एक दिन देश भक्ति के गीत गाकर और देश-प्रेम की बाते कर फिर से लूट-खसोट , छल-कपट, मारकाट और देश द्रोही कामों में जुट जाना, साल में सिर्फ दो दिन तिरंगा फहराकर फिर उसे अगले छह महीने तक तह लगा के रख देने से बेहतर क्या हमारे लिए यह नहीं था कि हम उसे रोज सुबह फहराते और यह संकल्प लेते कि इसे हम हमेशा इसी तरह फहराते रहेंगे, अपने देश को नीचा दिखाने की कोई हरकत नहीं करेंगे, देश की धन सम्पति चुराकर, देश से बाहर लेजाकर दूसरे देशों के हवाले करने की गद्दारी कभी नहीं करेंगे ! स्कूल के विद्यार्थियों के लिए तो हमने यह अनिवार्य किया हुआ है कि सुबह कक्षा में शिक्षा प्रारम्भ होने से पहले हम प्रार्थना में राष्ट्रीयगान गाए, मगर हमारे तमाम सरकारी कार्यालय, जहां देशभक्ति और नैतिकता की भावना जगाने की आज परम आवश्यकता है , वहा ऐसा करना कौन अनिवार्य करेगा ?


Jai Hind !!

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।