वैसे तो इस निकृष्ट, मलीन और दूसरों का खून चूसने वाले प्राणि को कौन नहीं जानता और कौन इससे आज दुखी नहीं है, मगर शायद ही बहुत कम लोग जानते होंगे कि साल में एक दिवस इस दुष्ट प्राणि के नाम पर भी मनाया जाता है, और वह दिवस है, २० अगस्त ! आइये इस विश्व मच्छर दिवस पर एक पल के लिए, किसी अन्य जीव से अधिक मानवीय पीड़ा का कारण बनने वाले इस कलंकित रोगवाहक प्राणि के बारे में थोड़ा मनन करें !
सन १८९७ में लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ. रोनाल्ड रॉस द्वारा इसका श्रीगणेश किया गया था, और न्यू जर्सी स्थित अलाभकारी संस्था अमेरिकी मच्छर कंट्रोल एसोसिएशन ने मलेरिया के संचरण की खोज का पूरा श्रेय उन्हें ही दिया! इस उपलब्धि की बदौलत उन्हें सन 1902 में चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था ! हालांकि हमारे अन्ना की ही भांति उनका भी प्रारम्भिक उद्देश्य इस दोयम दर्जे के भ्रष्ट और अराजक प्राणि की कारगुजारियों से उत्पन्न होने वाले सामाजिक विकारों और जन-धन के नुक्शान के बारे में जनता को जागरूक करना और इनके द्वारा फैलाए जाने वाली नैतिकपतनलेरिया,डेंगू और चरित्रगुनिया जैसी बीमारियों पर प्रभावी लोकपाल लगाना था, मगर हर चीज इतनी आसान कहाँ होती है ! बुरी चीजें अच्छी चीजों के मुकाबले अधिक तीव्र गति से फैलती है, इन बुराइयों का साथ देने के लिए देश, दुनिया में इन्ही की नस्ल के और भी बहुत से परजीवी मौजूद होते है जिन्हें भले और बुरे प्राणि में फ़र्क़ करने की कसौटी बताते-बताते थक जाओगे मगर वे समझना ही नहीं चाहते,क्योंकि उनके खून में भी वही गंदगी मौजूद है! अत: इनपर लगाम कसने की तमाम कोशिशों के बावजूद भी आज ये सभ्य समाज के लिए नासूर बन गए है! इसके चलते हर साल विश्व में तकरीबन दस लाख लोग, जिनमे अधिकाँश युवा और बच्चे होते है, असामायिक मौत का ग्रास बन जाते है!
एक बात ध्यान रखने योग्य है कि सरल प्राणि जब अपने न्यायपूर्ण हितों के लिए सत्य के सहारे आगे बढ़ता है तो वह किसी को दुःख न पहुंचाने का हर संभव प्रयास करने के बावजूद भी जंगे मैदान में प्रत्यक्ष तौर पर सक्रीय होने की वजह से कईयों की नाराजगी भी मोल ले लेता है और उसे बहुत-सी अनचाही परेशानियां उठानी पड़ती है ! जबकि निकृष्ट जीव अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए अनेकों चालबाजिया और प्रपंच खड़े करता है तथा अनगिनत तुच्छ और छद्म-तरीके अपनाकर खुद को भला और ईमानदार प्राणि दर्शाने के लिए परदे के पीछे छिपे रहकर अपने काले कारनामों को अंजाम देने की कोशिश करता है! प्राणि समाज के लिए घातक इस जीव ने आज हर तरफ अपना जाल फैलाकर एकछत्र राज स्थापित कर लिया है, जिसको चुनौती देना ही एक बड़ी चुनौती बन गई है! आज हमारे समक्ष इस मौस्क्वीटो मीनेस से निपटने के सीमित उपाय ही मौजूद रह गए है ! जंगलराज के विधान आज आम आदमी के दरवाजे, खिडकियों की जालियों और मच्छरदानियों को धराशाही कर इनके लिए ऐसी अराजक भूमि तैयार करने में लगे है, जहां ये बिना रोक-टोक किसी का भी खून चूस सकें !
यह बात अब सर्वविदित है कि पिछले कुछ दशकों में भारत-भूमि इन मच्छरों के लिए एक सर्वो-उपयुक्त जगह बनकर उभरी है! अपनी रणनीति के हिसाब से यह दुष्ट जीव अलग-अलग पालियों (दिन, शाम,रात ) में भ्रमित कर, मौक़ा देख अन्य प्राणियों का न सिर्फ खून चूसता है बल्कि उन्हें घातक बीमारियाँ भी दे जाता है! इसमें से एक ख़ास नश्ल का खतरनाक मच्छर तो पिछले ६० से भी अधिक सालों से अपना कुलीन राज चला रहा है और हाल ही में इनके सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग ने शोषित प्राणि समाज का खून चूसने में अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले है! आज मलेरिया फैलाने के लिए जिम्मेदार मादा मच्छर समूचे अभिजात वर्ग पर हावी है, वह इसलिए नहीं कि वह इतनी सक्षम है बल्कि इसलिए कि उनके इर्द-गिर्द मौजूद पट्ठों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि राजवंश की आड़ में वे आम-आदमी का खून बेशर्मी से पी सकते है !
इसी की परिणिति का फल है कि आज जीवन के हर कोने से विरोध की चिंगारी सुलगने लगी है, जिसे ये मोटी चमड़ी के स्वार्थी और धोखेबाज मलीन जीव देखकर भी अनदेखा कर रहे है! अब वक्त आ गया है कि इस घृणित प्राणि के काले कारनामों पर प्रभावी रोक लगाईं जाये ! इनके प्रभुत्व वाले क्षेत्र में इनके प्रजनन पर ठोस नियंत्रण रखा जाए, ताकि इनकी भावी पीढ़िया भी अपनी घटिया खानदानी परम्पराओं को आगे भी इसीतरह क्रमबद्ध तरीके से चलाकर समाज को दूषित न कर सके! इसके लिए एक कारगर तरीका यह भी है कि अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते वक्त हम यह सुनिश्चित करे कि राजवंश तकनीक DDT (damn dynasty techniques ) पर लानत भेजी जाए और हर पहलू का गंभीरता से मूल्यांकन किया जाए ! याद रखिये कि एक भोला-भाला सा दिखने वाला मच्छर मरियल सडियल ( एम्एम्एस ) भी समूचे क्षेत्र के प्राणियों को हिंजड़ा बना सकता है !