Thursday, December 31, 2020

ऐ गुजरने वाले साल...।












ऐ गुजरने वाले साल, तेरे रहते मैंने,

'गुड' की जगह, 'बैड' फ्राइडे देखा,

बारहमास, कोई पर्व मनाया न गया,

किसी भी शहर न कोई 'हाईडे' देखा,

किसकदर भारी हो सकता है बुरा वक्त,

एक-दो नही,पूरे पैंतालीस 'ड्राइडे' देखा।😀



सभी स्नेही मित्रों को नूतनबर्ष 2021 की मंगलमय कामनाएं।🙏

Tuesday, December 29, 2020

कटु सत्य।

लगे हैं जो मेरे शब्द तुमको अप्रिय, 

निकले न मेरे मुंह से होते,

ऐ प्रिये, जबरन जो मेरे मुंह मे 

अपने शब्द, तुमने न ठूंसे होते।

Sunday, December 27, 2020

ऐ साल 2020 !

 











असहज छटपटाहट, 

नकाबी हितस्वार्थ, 

अहंवादी हठता और 

प्रतिद्वंद्विता की शठता, 

शाश्वत चीखती रह गई

कुछ सर्द सी आजमाइशें।

है फैला चहुंओर, 

इक तिजा़रती शोर,

बेचैन दिल के अंतस मे ही

कहींं दफ्ऩ होकर के रह गई ,

कुछ कुत्ती सी ख्वाहिशें।


दिल मे बची है तो बस,
लॉकडाउन की खलिश
और राहबंदी की टीस,
तूने छाप ऐसी छोडी
तु याद रहेगा सदा,
अलविदा,
ऐ साल, दो हजार बीस।

Tuesday, December 15, 2020

तार्किक..

ब़ंद कबूतरखाने से जब, इक तोता निकला तो

सब के सब ने एक स्वर कहा, ये कैसे, ये कैंसे ?

एक ज्ञानी सज्जन, जो समीप ही खडे थे बोले,

राजशाही अस्तबल से, इक खोता निकला जैसे।

Sunday, December 13, 2020

वादा रहा..

 व्यग्र,व्याकुल इस जिंदगी को, 

मिल जाएगा निसाब जिस दिन,

ऐ मेरी अतृप्त ख्वाहिशों, 

कर दूंगा तुम्हारा भी हिसाब उस दिन।

Monday, December 7, 2020

अतृप्त मन...

इन आवारा चक्षुओं ने,

छुप-छुप के ताकी हैं,

मेरी, वो ख्वाहिश,

जो अभी भी बाकी हैं।

दिल की हर तमन्ना

सिर्फ,नशेमन ने हाकी है,

गोया, अतृप्त हैं ख्वाहिश,

जो अभी भी बाकी हैं।


xxxxxxx


तेरी हर परेशानी, रंज और ग़म 

बेहिचक वो मुझको दे दे, 

उससे हरव़क्त यही गुजा़रिश करता हूंं ,

ऐ दोस्त, मुझे जब भी कभी ,

देव-दर्शन होते हैं , सिर्फ़  और सिर्फ़,

तेरी खुश़हाल जिंदगी की शिफारिश़ करता हूँ।





Sunday, December 6, 2020

साल एक और गुजरा....






हैं चहुं ओर चर्चा मे अदाएँ,

कोरोना दिखा रहा मुजरा,

उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,

इधर, साल एक और गुजरा।


कभी थोक मे बढी मुश्किलें,

कभी जीवन हुआ खुदरा,

कुछ तो सफर ही मे गुजरे,

जीना हुआ दुभर, दुभरा।


बेताब है, आगोश मे आने को,

है जब से ये नया दुश्मन उभरा,

आसपास ही छुपा बैठा है कहीं,

ऐ नादांं, सम्भल के रह तू जरा।


टूटी कई ख्वाहिशे, बिखरे सपने,

है सहमी-सहमी लगती यूं धरा,

उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,

इधर, साल एक और गुजरा।




प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।