व्यग्र,व्याकुल इस जिंदगी को,
मिल जाएगा निसाब जिस दिन,
ऐ मेरी अतृप्त ख्वाहिशों,
कर दूंगा तुम्हारा भी हिसाब उस दिन।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-12-20) को "कुहरा पसरा आज चमन में" (चर्चा अंक 3916) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
आह...
ReplyDeleteक्या बात है।
नई रचना- समानता
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteपूरा जीवन कह दिया अतृप्त ख्वाहिशों के ज़़रिए ...वाह परचेत जी
ReplyDeleteआप सबका तहेदिल ही आभार व्यक्त करता हूं।🙏
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
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