ब़ंद कबूतरखाने से जब, इक तोता निकला तो
सब के सब ने एक स्वर कहा, ये कैसे, ये कैंसे ?
एक ज्ञानी सज्जन, जो समीप ही खडे थे बोले,
राजशाही अस्तबल से, इक खोता निकला जैसे।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...
वाह
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसार्थक द्विपदी।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!बहुत सुंदर सर।
ReplyDeleteआप सभी का तहेदिल से आभार।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
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