Tuesday, December 15, 2020

तार्किक..

ब़ंद कबूतरखाने से जब, इक तोता निकला तो

सब के सब ने एक स्वर कहा, ये कैसे, ये कैंसे ?

एक ज्ञानी सज्जन, जो समीप ही खडे थे बोले,

राजशाही अस्तबल से, इक खोता निकला जैसे।

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संशय !

मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है, ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है, कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान...