Sunday, December 6, 2020

साल एक और गुजरा....






हैं चहुं ओर चर्चा मे अदाएँ,

कोरोना दिखा रहा मुजरा,

उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,

इधर, साल एक और गुजरा।


कभी थोक मे बढी मुश्किलें,

कभी जीवन हुआ खुदरा,

कुछ तो सफर ही मे गुजरे,

जीना हुआ दुभर, दुभरा।


बेताब है, आगोश मे आने को,

है जब से ये नया दुश्मन उभरा,

आसपास ही छुपा बैठा है कहीं,

ऐ नादांं, सम्भल के रह तू जरा।


टूटी कई ख्वाहिशे, बिखरे सपने,

है सहमी-सहमी लगती यूं धरा,

उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,

इधर, साल एक और गुजरा।




8 comments:

मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...