हैं चहुं ओर चर्चा मे अदाएँ,
कोरोना दिखा रहा मुजरा,
उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,
इधर, साल एक और गुजरा।
कभी थोक मे बढी मुश्किलें,
कभी जीवन हुआ खुदरा,
कुछ तो सफर ही मे गुजरे,
जीना हुआ दुभर, दुभरा।
बेताब है, आगोश मे आने को,
है जब से ये नया दुश्मन उभरा,
आसपास ही छुपा बैठा है कहीं,
ऐ नादांं, सम्भल के रह तू जरा।
टूटी कई ख्वाहिशे, बिखरे सपने,
है सहमी-सहमी लगती यूं धरा,
उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,
इधर, साल एक और गुजरा।
वाह
ReplyDeleteआभार, सर जी।
Deleteआभार, आपका।
ReplyDeleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteआभार शास्त्री जी🙏
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteसुंदर समसामयिक रचना..।
ReplyDeleteबहुत आभार, आप सभी स्नेहजनों का 🙏
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