असहज छटपटाहट,
नकाबी हितस्वार्थ,
अहंवादी हठता और
प्रतिद्वंद्विता की शठता,
शाश्वत चीखती रह गई
कुछ सर्द सी आजमाइशें।
है फैला चहुंओर,
इक तिजा़रती शोर,
बेचैन दिल के अंतस मे ही
कहींं दफ्ऩ होकर के रह गई ,
कुछ कुत्ती सी ख्वाहिशें।
दिल मे बची है तो बस,
लॉकडाउन की खलिश
और राहबंदी की टीस,
तूने छाप ऐसी छोडी
तु याद रहेगा सदा,
अलविदा,
ऐ साल, दो हजार बीस।
सही कहा आपने सर... यह साल हमेशा याद रहने वाला है.....सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteकुत्ती सी। क्या बात है :)
ReplyDelete🙏
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteजाते हुए साल को प्रणाम।
🙏
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