Sunday, December 27, 2020

ऐ साल 2020 !

 











असहज छटपटाहट, 

नकाबी हितस्वार्थ, 

अहंवादी हठता और 

प्रतिद्वंद्विता की शठता, 

शाश्वत चीखती रह गई

कुछ सर्द सी आजमाइशें।

है फैला चहुंओर, 

इक तिजा़रती शोर,

बेचैन दिल के अंतस मे ही

कहींं दफ्ऩ होकर के रह गई ,

कुछ कुत्ती सी ख्वाहिशें।


दिल मे बची है तो बस,
लॉकडाउन की खलिश
और राहबंदी की टीस,
तूने छाप ऐसी छोडी
तु याद रहेगा सदा,
अलविदा,
ऐ साल, दो हजार बीस।

5 comments:

प्रलय जारी

चहुॅं ओर काली स्याह रात, मेघ गर्जना, झमाझम बरसात, जीने को मजबूर हैं इन्सान, पहाड़ों पर पहाड़ सी जिंदगी, फटते बादल, डरावना मंजर, कलयुग का यह ...