Sunday, May 31, 2020

पैरोडी

फिल्म तीसरी कसम मे स्व. राजकपूर सहाब पर फिल्माया एक प्यारा सा गीत है; दुनिया बनाने बाले क्या तेरे मन मे समाई.....।
उसी की पैरोडी:-😂

कोरोना बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई,
तूने काहे को ये व्याधि बनाई, तूने काहे को ये व्याधि बनाई   - २

काहे बनाए तूने चमगादड़ चुचले,
धरती ये प्यारी प्यारी मुखड़े ये उजले
काहे बनाया तूने चाइना का खेला - २
जिसमें लगाया वायरस का मेला
गुप-चुप तमाशा देखे, वाह रे तेरी खुदाई
तूने काहे को व्याधि बनाई, तूने काहे को ये व्याधि बनाई  ...

तू भी तो तड़पा होगा कोविड बनाकर,
तूफ़ां ये सर्वनाश का मन में छुपाकर,
कोई छवि तो होगी आँखों में तेरी  - २
आँसू भी छलके होंगे पलकों से तेरी
बोल क्या सूझी तुझको, काहेको पीर जगाई
तूने काहेको ये व्याधि बनाई, तूने काहेको ये व्याधि बनाई  ...

क्वारनटाइन करवाके तूने जीना सिखाया, हंसना सिखाया,
रोना सिखाया
जीवन के पथ पर लॉकडाउन करवाए  - २
लॉकडाउन करवाके तूने सपने जगाए
सपने जगाके तूने, काहे को दे दी जुदाई
तूने काहेको ये व्याधि बनाई, तूने काहेको ये व्याधि बनाई  ...
कोरोना बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई.....।

Thursday, May 28, 2020

उम्मीद।


हौंसला बनाए रख, ऐ जिंदगी, 
'कोरोना' की अवश्य हार होगी,
सूखे दरिया, फिर बुलंदियां चूमेंगे 
और तू, फिर से गुलजार होगी।

कौन जानता था कि किसी रोज
रुग्णों की हरतरफ कतार होगी,
स्व:जनों के बीच मे रहकर भी,
मिल-जुल पाने से लाचार होगी।

कभी सोचा न था कि जीवन नैया,
डगमगाती यूं बंदी के मझधार होगी,
मगर हौंसला बना के रख,ऐ जिंदगी, 
दिन आएगा,जब कोरोना की हार होगी।।




Monday, May 25, 2020

ऐ कोविड जिंदगी !


कभी यह सोचा न था, ऐ जिंदगी,
तू इक रोज, इतनी भी 'Fine' होगी।
स्व:जनों संग, इक्ठ्ठठे रहकर भी,
एकही घर मे 'Quarantine' होगी।।

कोई शुभचिंतक घर मिलने आएगा
तो मेजबान उससे दूरी बनाएगा,
मंदिर प्रवेश बर्जिता 'Divine' होगी।
और कतारों मे बिकती 'Wine' होगी।।
कभी यह सोचा न था, ऐ जिंदगी,
तू इक रोज, इसकदर भी 'Fine' होगी....।।

Sunday, May 24, 2020

अयांश और अव्यांश तुम हो।












कलत्र अदभुत तुम हमारे ,
सार ऐह, श्रीयांश तुम हो ।
हम श्रमसाध्य वृहद निबंध,
निबंध का सारांश तुम हो।।

नव नर-नारायण चेतना के,
दिव्य जग, दिव्यांश तुम हो।
विशिष्टता के बाहुल्य भर्ता,
शब्द-शब्द, शब्दांश तुम हो।।

उपकृत सदा ही हम तुम्हारे,
कृतज्ञता के प्रियांश तुम हो।
दिप्तिमय क्षण जीवन सफर,
हर लम्हे के पूर्वांश तुम हो।।

कंचन अदब ऐह भव हमारा,
इस मुकाम के श्रेयांश तुम हो।
उम्मीद जिसपे जीवन थमा हो,
उस आस के अल्पांश तुम हो।।

हुई रेखांकित तकदीर जिसमे,
वह सारगर्भित गद्यांश तुम हो।
पद्य,जिक्र जिसका जग करें,
उस काव्य के काव्यांश तुम हो।।
                  ...'परचेत'






Monday, May 11, 2020

डियर कोरोना ! ये मेरा इंडिया...

चुपचाप निकल पडे अकेले ही डगर अपनी,
कलंकित न होने दी, देशभक्ति मगर अपनी।

सब सहा, न किसी पर पत्थर फेंका,न थूका,
न किसी की गाड़ी जलाई, ना ही घर फूका।

कर सकते थे वो, जिद पे आते अगर अपनी,
कलंकित होने न दी, देशभक्ति मगर अपनी।

मैं न तो कमिनस्ट हूँ और न ही देश की विद्यामान तुच्छ राजनीति, वो चाहे सत्ता पक्ष की हो दोयम विपक्ष की, का समर्थक हूँ। हां, कोई संजीदा मोदीभक्त अगर यहां ब्लॉग पर मौजूद हो और बुरा न माने  तो, सविनम्र 🙏 एक सवाल जो हफ्तों से मेरे जहन को उद्द्वेलित कर रहा है, पूछना था;  लॉकडाउन की शुरुआती घोषणा के वक्त जिन रेल गाडियों को सजा धजाकर चीन से भी बडा कोरोना हास्पिटल बनाये जाने की बात चल रही थी, उनमे इस वक्त कितने कोरोना मरीजों का ईलाज चल रहा है?
Corona is ugly dark and deep,
but we  have promises to keep.
And miles to go before we sleep,
and miles to go before we sleep.



प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।