कलत्र अदभुत तुम हमारे ,
सार ऐह, श्रीयांश तुम हो ।
हम श्रमसाध्य वृहद निबंध,
निबंध का सारांश तुम हो।।
नव नर-नारायण चेतना के,
दिव्य जग, दिव्यांश तुम हो।
विशिष्टता के बाहुल्य भर्ता,
शब्द-शब्द, शब्दांश तुम हो।।
उपकृत सदा ही हम तुम्हारे,
कृतज्ञता के प्रियांश तुम हो।
दिप्तिमय क्षण जीवन सफर,
हर लम्हे के पूर्वांश तुम हो।।
कंचन अदब ऐह भव हमारा,
इस मुकाम के श्रेयांश तुम हो।
उम्मीद जिसपे जीवन थमा हो,
उस आस के अल्पांश तुम हो।।
हुई रेखांकित तकदीर जिसमे,
वह सारगर्भित गद्यांश तुम हो।
पद्य,जिक्र जिसका जग करें,
उस काव्य के काव्यांश तुम हो।।
...'परचेत'
बहुत सुन्दर और भावपूर्णँ।
ReplyDeleteआभार आपका, सर।
Deleteआभार, सर।
ReplyDeleteमहोदय, क्या आप हमे “अयांश” और “अव्यांश” का अर्थ बता सकते है? हमे यह दोनो शब्द बहोत पसंद आये है और हमारे पुत्र का नाम इन में से एक रखना चाहते है।
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