कभी यह सोचा न था, ऐ जिंदगी,
तू इक रोज, इतनी भी 'Fine' होगी।
स्व:जनों संग, इक्ठ्ठठे रहकर भी,
एकही घर मे 'Quarantine' होगी।।
कोई शुभचिंतक घर मिलने आएगा
तो मेजबान उससे दूरी बनाएगा,
मंदिर प्रवेश बर्जिता 'Divine' होगी।
और कतारों मे बिकती 'Wine' होगी।।
कभी यह सोचा न था, ऐ जिंदगी,
तू इक रोज, इसकदर भी 'Fine' होगी....।।
वर्तमान हालात को चरितार्थ करती सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है" (चर्चा अंक-3714) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteआभार आपका।
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