हौंसला बनाए रख, ऐ जिंदगी,
'कोरोना' की अवश्य हार होगी,
सूखे दरिया, फिर बुलंदियां चूमेंगे
और तू, फिर से गुलजार होगी।
कौन जानता था कि किसी रोज
रुग्णों की हरतरफ कतार होगी,
स्व:जनों के बीच मे रहकर भी,
मिल-जुल पाने से लाचार होगी।
कभी सोचा न था कि जीवन नैया,
डगमगाती यूं बंदी के मझधार होगी,
मगर हौंसला बना के रख,ऐ जिंदगी,
दिन आएगा,जब कोरोना की हार होगी।।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(३०-०५-२०२०) को 'आँचल की खुशबू' (चर्चा अंक-३७१७) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सही।
ReplyDeleteआशा का संचार करती सुन्दर प्रस्तुति।
कोरोना काल में उम्मीद की किरण दिखाती कविता।
ReplyDeleteआभार, राकेश जी।
ReplyDeleteउम्मीद है तो दुनिया है नहीं तो सबकुछ बेकार
ReplyDeleteसही कहा, कविता जी।
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