Sunday, December 13, 2020

वादा रहा..

 व्यग्र,व्याकुल इस जिंदगी को, 

मिल जाएगा निसाब जिस दिन,

ऐ मेरी अतृप्त ख्वाहिशों, 

कर दूंगा तुम्हारा भी हिसाब उस दिन।

7 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-12-20) को "कुहरा पसरा आज चमन में" (चर्चा अंक 3916) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. आह...
    क्या बात है।

    नई रचना- समानता

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  3. पूरा जीवन कह द‍िया अतृप्त ख्वाहिशों के ज़़र‍िए ...वाह परचेत जी

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  4. आप सबका तहेदिल ही आभार व्यक्त करता हूं।🙏

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मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...