Wednesday, August 20, 2025

लघुकथा-पहाड़ी लूना !

पहाड़ी प्रदेश , प्राइमरी स्कूल था दिगोली, चौंरा। गांव से करीब  दो किलोमीटर दूर। अपने गांव से पहाड़ी पगडंडी पर पैदल चलते हुए जब तीसरी कक्षा का नन्हा सा छात्र पल्सर दिगोली गांव  होते हुए सुबह-सवेरे 'चौंरा' स्कूल को निकलता था तो अक्सर उसकी भेंट दिगोली गांव की लूना की मां, जोकि सुबह-सवेरे गाय-भैंस के गोबर का तसला सिर पर उठाए 'मौऴेकी मरास' की तरफ जा रही होती थी, से अक्सर हो जाया करती थी।

राह में उसे देखकर लूना की मां उसे पुचकारते हुए गढ़वाली लहजे में कुछ यूं कहती, "अरे मेरा बच्चा, इस ठंड में ठंडी ओंस में चप्पलों में सुकूल जा रहा है।"...... यह लगभग रोजाने का ही क्रम था। गर्मी की छुट्टियां खत्म होने के बाद जुलाई के प्रथम सप्ताह में आज जब वह चौथे दर्जे में प्रवेश हेतु घर से निकला था तो बीच में फिर लूना की मां से मुलाकात हो गई। उसने चिरपरिचित अंदाज में फिर उसे पुचकारते हुए सम्बोधित किया, "बच्चा, आज मैं भी अपनी लूना को सुकूल में भर्ती करा रही हूं, कल से तू उसे भी अपने साथ लेते हुए सुकूल जाना। पल्सर ने भी हां में अपनी मुंडी हिला दी थी।

तब से शुरू हुआ साथ-साथ  स्कूल जाने का  पल्सर और लूना का यह क्रम लगभग दो साल चला, जब तक कि पल्सर छठी कक्षा में माध्यमिक स्कूल धद्दी घंडियाल न चला गया। तीन साल बाद पांचवीं उत्तीर्ण करने के उपरांत लूना के पिता उसे और उसके परिवार के साथ रोहिणी, दिल्ली शिफ्ट गये थे।

बर्ष गुजरे, उम्र गुज़री, जब लूना २७ की हुई तो मां को उसकी शादी का ध्यान आते ही पल्सर का भी ख्याल आया। और मां ने अपने गांव दिगोली के एक रिश्तेदार के जरिए पल्सर के परिवार से सम्पर्क कर उसका बायोडाटा और जन्मपत्री मंगवा ली थी। लूना पढ़ने में होनहार थी, आइआइएमटी यूनिवर्सिटी से एमटेक करने के बाद उसे एक मल्टी नेशनल कंपनी में २६ लाख बार्षिक सेलरी पैकेज पर पुणे में नौकरी भी मिल गई थी।

लूना के पिता ने पल्सर का बायोडाटा लूना को दिखाते हुए उससे पूछा कि इस लड़के को जानती हो, तेरे लिए यह रिश्ता कैसा रहेगा? लूना ने नाक-भौंह सिकोड़ते हुए जबाब दिया, यार पापा आप कैसी बात करते हो, उसका सालाना सेलरी पैकेज देख रहे हो, मेरे से आधे से भी एक लाख कम हैं। आप सोच भी कैसे सकते हो कि मैं इस लड़के से शादी के लिए मान जाऊंगी? मां ने भी बीच में लूना को टोकते हुए कहा, सेलरी ही तो तेरे से कम है उसकी, बाक़ी तो लड़का सब तरह से ठीक है। मैं तो कुछ नहीं कमाती, तो क्या तेरे पापा और मैंने घर नहीं चलाया, तुम्हें नहीं पढ़ाया -लिखाया?

मगर लूना कहां मानने वाली थी, मां-बाप की भी एक न चली। उधर साल-छह महिने बाद पल्सर का रिश्ता भी गांव की एक भोली-भाली लड़की, स्कूटी से पक्का हो गया था। वक्त अपनी रफ़्तार से चलता रहा, लूना के मां बाप ने सेंकड़ों रिश्ते तलाशें मगर लूना किसी मे ये कमी, किसी मे वो कभी निकालती रही। और जब लूना ३७ की हुई तो रिश्ते आने ही बंद हो गये।

अब जब वह इक्तालीसवें साल में पहुंची तो एक उमेर नाम का व्यक्ति जिससे उसकी मुलाकात अक्सर शाम को एक कैफ़े में हो जाया करती थी और जिसने उसे खुद का परिचय एक बिजनेसमैन के तौर पर दिया था, और असल मे था वह कबाड़ का व्यापारी, लूना उसे दिल दे बैठी थी। और फिर दोनों ने ही मिलकर शादी का दिन भी तय कर लिया था।

 बात बूढ़े मां-बाप के पास घर तक पहुंची तो दोनों सुनकर सन्न रह गये। 'मैं बोलती थी न तुमको कि मत पढ़ाओ इसे इतना, मत दो इतनी छूट.....' लूना की मां फफक-फफककर रोने लगी थी। कश्मकश भरा वक्त भारी पड़ने लगा था, शादी (निकाह) का दिन नजदीक आ गया था, बूढ़े मां-बाप पुणे पहुंच चुके थे। शादी से ठीक एक दिन पहले पिता ने बाजार से सैमसंग का ६५३लीटर का ₹८०००० का फ्रीज और एक ₹१३००० का बड़ा सा नैभिगो का सूटकेस खरीदा और अपने साथ उसे विवाह स्थल पर ले आए , लूना की विदाई के वक्त उसे उपहार स्वरूप भेंट में देने के लिए।

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