ऐ दीवान-ए-हज़रत-ए-'ग़ालिब,
तुम क्या नाप-जोख करोगे
हमारी बेरोजगारी का,
अब तो हम जब कभी
कब्रिस्तान से भी होकर गुजरते हैं,
मुर्दे उठ खड़े होकर पूछते हैं, लगी कहीं?
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
हमेशा झूमते रहो सुबह से शाम तक, बोतल के नीचे के आखिरी जाम तक, खाली हो जाए तो भी जीभ टक-टका, तब तलक जीभाएं, हलक आराम तक। झूमती जिंदगी, तुम क्...
हा हा
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