Wednesday, May 14, 2025

मज़ाक

 

ऐ दीवान-ए-हज़रत-ए-'ग़ालिब, 

तुम क्या नाप-जोख करोगे 
हमारी बेरोजगारी का,
अब तो हम जब कभी
कब्रिस्तान से भी होकर गुजरते हैं,
मुर्दे उठ खड़े होकर पूछते हैं, लगी कहीं?

1 comment:

उलझनें

 थोडी सी बेरुखी से  हमसे जो उन्होंने पूछा था कि वफा क्या है, हंसकर हमने भी कह दिया कि मुक्तसर सी जिंदगी मे रखा क्या है!!