Thursday, October 8, 2015

कुछ कर !




बाजुओं में अपनी, तू बल जगा ,
किसान का वंशज है, हल लगा। 
फटकने न दे तन्द्रा पास अपने,
आलस्य निज तन से पल भगा। 
किसान का वंशज है, हल लगा।। 



चिराग उपज का न कभी बुझे, 
पुकारती है खेत की माटी तुझे,
अंकुरित आशा का वो बीज हो, 
जिसे दे न पाये कभी जल दगा।
किसान का वंशज है, हल लगा।। 



समर्थ है शख्शियत,ये सिद्ध कर ,
परिश्रम से खुद को समृद्ध कर ,
तन नजर आये न मलीन झगा,
सीस पे चमके सदा शीतल पगा , 
किसान का वंशज है, हल लगा।।



जोत का ध्येय दिल में पाले रख, 
अन्न-कण श्रेष्ट को संभाले रख, 
कर बंजरों में भी वो प्रजननक्षम, 
बने जो तेरा खुद वसुधा तल सगा। 
किसान का वंशज है, हल लगा।।

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 09 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया , सकारात्मक रचना।

    ReplyDelete
  3. भावपूर्ण और प्रभावी रचना
    बहुत सुंदर

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    सादर

    ReplyDelete

  4. गांव की याद दिलाती सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार!

    ReplyDelete
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-10-2015) को "पतंजलि तो खुश हो रहे होंगे" (चर्चा अंक-2126) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  6. उत्कृष्ट प्रस्तुति

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।