Thursday, February 25, 2010

सचिन निसंदेह एक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी है मगर....

सर्वप्रथम सचिन को इस उपलब्धि के लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ! निश्चित तौर पर उनकी इस उपलब्धि से क्रीडा के क्षेत्र में देश गौरवान्वित हुआ है । मगर एक बात अपने देश के मीडिया और उन क्रिकेटान्ध से कहना चाहूँगा कि सचिन भगवान् नहीं है भाई ! कल शाम को मैं अपने टीवी सेट पर खबरे सुनने बैठा, सचिन भगवान् है.... सचिन ये है... सचिन वो है.... उफ़, इन खबरिया चैनलों की बकवास सुनकर मुझे मजबूरन कुछ देर बाद सी एन एन का सहारा लेना पडा, अगर मैं बहुत अमीर होता तो शायद कल हाथ में पकडे रिमोट को स्क्रीन पर मारकर टीवी सेट को भी तोड़ देता। हद होती है किसी भी चीज की । आज एक ब्लोगर सज्जन का सुबह-सुबह लेख पढ़ा शहीदों का सम्मान तो दिल को बड़ा दुःख हुआ कि जिनकी कुर्बानियों की वजह से ये मीडिया और क्रिकेटान्ध खूब मनोरंजन और पैसे कमा / बटोर रहे है, उनकी सहादत की खबर देने और सुनने की इनके पास फुरसत नहीं।

ये हमारे कुछ क्रिकेटान्ध भले ही यह सुनना पसंद न करे, लेकिन अपनी तो भाई खरी-खरी कहने की ही आदत है ;
१. सचिन निश्चित तौर पर बस एक श्रेष्ठ क्रिकेटर है, और कुछ नहीं।

२.सचिन ने यह रिकॉर्ड अपने नाम ३७वे साल में खेलते हुए बनाया, जबकि जिम्बाब्वे के चार्ल्स कोवेंट्री ने २५वे साल में २००९ में बांग्लादेश के खिलाफ सईद अनवर की बराबरी की थी और पाकिस्तान के सईद अनवर ने १९९७ में चेन्नई में २८ साल की उम्र में (१९४ रन ) बनाया था।

३.ये मत भूलिए कि १२० करोड़ की आवादी वाले देश में किसी और योग्य खिलाड़ी का हक़ मारकर आप किसी एक को ४०-४५ साल तक खिलाते ही रहोगे तो वह कुछ तो रिकॉर्ड बनाएगा ही। जबकि दुसरे देशो के खिलाड़ी ३०-३२ की उम्र में रिटायरमेंट ले लेते है।

४. इस क्रिकेट के खेल ने इस देश के अन्य सभी खेलो को निगल लिया है! यही वजह थी कि अभी हाल में हॉकी के खिलाड़ियों को वह सब करना पडा जो वे भी नहीं चाहते थे। ओलंपिक चैम्पियन बिंद्रा का किस्सा अभी ताजा-ताजा ही है, अगर देश के सम्मान की इतनी ही चिंता करते तो अभी सितबर में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलो में देश के लिए ढेर सारे मेडल दिलवाने की बात सोचते ।

इसलिए मेरे भाइयों, सचिन को इंसान ही रहने दो उसे भगवान् मत बनाओ ! बाहरी लोग तभी तो हमें दोगला कहते है क्योंकि एक तरफ हम अपने प्राचीन भगवानों ( श्री कृष्ण, श्री राम इत्यादि) को तो सेक्युलरिज्म की दुहाई देकर नहीं मानते और दूसरी तरफ वही सेक्युलर एक जीते जागते इंसान को भगवान् मान रहे है।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।