दिल का धैर्य
मंद होने लगा है ,
झंकृत भावनाओं का
हर छंद होने लगा है,
है यहाँ अब कोई
अपना भी चाहने वाला ,
मन को ऐसा ही कुछ
द्वंद होने लगा है।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।
रह-रहे थे अभी तक जिस शहर में,
ReplyDeleteवाशिंदा वहां फिकरमंद होने लगा है,
शहर के हालात जब अनुकूल न हों तो वाशिन्दे का फिकरमन्द होना लाज़िमी है
सुन्दर
बहुत सुन्दर। परन्तु जीवन की यही विशेषता है कि जब लगता है कि स्वप्न बचे ही नहीं तभी जीवन का सबसे सुन्दर स्वप्न जन्म लेता है और हम उसके पीछे चल पड़ते हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मन में यही द्व्न्द्व होने लगा!
ReplyDeleteमिलन-द्वार अब बन्द होने लगा है!
सुन्दर रचना!
उम्मीद दामन छुडाने को बेताब है,
ReplyDeleteधैर्य दिल का भी मंद होने लगा है,
तन्हाइयां कुरेदने लगी है जख्मो को,
असंतुलित भावो का छंद होने लगा है ....
उदासी भरी है आज आपकी नज़्म कुछ ........ पर गहरी बात कहती है ........
द्वन्द्व को स्थान मत दीजिए। दृष्टि एक ही रखिए।
ReplyDeleteअद्भुत रचना।
ReplyDeleteवैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
ReplyDeleteउम्मीद दामन छुडाने को बेताब है,
ReplyDeleteधैर्य दिल का भी मंद होने लगा है,
तन्हाइयां कुरेदने लगी है जख्मो को,
असंतुलित भावो का छंद होने लगा है !
बहुत बेहतरीन, शुभकामनाएं.
रामराम.
बेहतरीन रचना..आनन्द आ गया.
ReplyDeleteअच्छी लगी यह कविता । शब्दों को बहुत ही बढी समायोजित किया है । पढने में लयबद्धता आती है ।
ReplyDeleteप्रतिकूल हालात में उपजे द्वन्द्व को अच्छी तरह से प्रस्तुत किया आपने ।
ReplyDeletebahut hi sundar rachna.
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