Wednesday, February 3, 2010

यही द्वन्द होने लगा है !


दिल का धैर्य 
मंद होने लगा है ,
झंकृत भावनाओं का  
हर छंद होने लगा है,
है यहाँ अब कोई 
अपना  भी चाहने वाला ,
मन को ऐसा  ही कुछ 
द्वंद  होने लगा है। 

12 comments:

  1. रह-रहे थे अभी तक जिस शहर में,
    वाशिंदा वहां फिकरमंद होने लगा है,
    शहर के हालात जब अनुकूल न हों तो वाशिन्दे का फिकरमन्द होना लाज़िमी है
    सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर। परन्तु जीवन की यही विशेषता है कि जब लगता है कि स्वप्न बचे ही नहीं तभी जीवन का सबसे सुन्दर स्वप्न जन्म लेता है और हम उसके पीछे चल पड़ते हैं।
    घुघूती बासूती

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  3. मन में यही द्व्न्द्व होने लगा!
    मिलन-द्वार अब बन्द होने लगा है!

    सुन्दर रचना!

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  4. उम्मीद दामन छुडाने को बेताब है,
    धैर्य दिल का भी मंद होने लगा है,
    तन्हाइयां कुरेदने लगी है जख्मो को,
    असंतुलित भावो का छंद होने लगा है ....

    उदासी भरी है आज आपकी नज़्म कुछ ........ पर गहरी बात कहती है ........

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  5. द्वन्‍द्व को स्‍थान मत दीजिए। दृष्टि एक ही रखिए।

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  6. वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।

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  7. उम्मीद दामन छुडाने को बेताब है,
    धैर्य दिल का भी मंद होने लगा है,
    तन्हाइयां कुरेदने लगी है जख्मो को,
    असंतुलित भावो का छंद होने लगा है !


    बहुत बेहतरीन, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. बेहतरीन रचना..आनन्द आ गया.

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  9. अच्‍छी लगी यह कविता । शब्‍दों को बहुत ही बढी समायोजित किया है । पढने में लयबद्धता आती है ।

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  10. प्रतिकूल हालात में उपजे द्वन्‍द्व को अच्छी तरह से प्रस्तुत किया आपने ।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।