Wednesday, March 31, 2010

लघु कथा (व्यंग्य) - पिछला टायर !


वित्तीय बर्ष की समाप्ति और ३१ मार्च को अधिकाँश बैंको में खाते समापने कार्य के तहत सार्वजनिक लेनदेन न होने की वजह से ३० मार्च को ही वेतन बाँट दिया गया था ! इसलिए सेलरी की रकम हाथ में होने की वजह से हमेशा पुराना और उपयोग किया हुआ मोबिल आयल पीने वाले जनाब टायर खान ने भी कल उच्चस्तरीय, बढ़िया किस्म की खरीदकर कुछ ज्यादा ही चढ़ा ली थी! परिणामस्वरुप पिछले टायर को इन्हें स्टैंड (बिस्तर) तक पहुंचाने में ठेल-ठेल कर ले जाना पडा और काफी मशक्कत करनी पडी ! जानकारी के लिए बता दूं कि ये जनाव टायर खान चुकि गाडी के अग्रभाग के टायर है, इसलिए काफी गुरूर इनके अन्दर भरा हुआ है ! पिए में लडखडाती जुबान से अपनी शेखी बघारते हुए और पिछले टायर पर धौंस जमाते हुए कह रहे थे कि मैं तो अपनी मर्जी का मालिक हूँ! जो जिधर मर्जी आयेगी, उधर जाऊँगा और तुम्हे भी मेरा अनुशरण करते हुए मेरे ही पीछे-पीछे आना होगा! तुम्हारी अपनी कोई मर्जी नहीं हो सकती, तुम तो यूँ समझो कि मेरे पैर की जूती हो, तुम्हे तो मेरी ही आज्ञां का पालन करना पडेगा ! जनाव खान की बाते सुन-सुनकर हैंडल महोदय ऊपर से मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे, और खुद में ही बडबडा रहे थे, कि बेटा, बड़ी धौंस जमा रहा है उस बेचारे पिछले टायर पर ! मगर यह नहीं सोच रहा कि अगर पिछला टायर भी साथ में चलने से इनकार कर दे, तो यह खुद कहीं नहीं जा सकता ! जब पिछला टायर मेहनत से जोर लगाकर ठेलता है, तब जाके तो यह आगे बढता है, और अपने को तीस मारखां समझ रहा है! साथ ही यह भी भूल रहा है कि ऊपर मैं भी हूँ, मैंने अगर इसे किसी गटर की तरफ घुमा दिया तो जाएगा सीधे जहन्नुम में !

पिछ्ला टायर सहमा सा उसे आहिस्ता-आहिस्ता अभी भी ठेले जा रहा था, और टायर खान उसे गालियाँ देते हुए धौंस जमाते हुए कहे जा रहा था कि तू इस घमंड में मत रहा कर कि तू मुझे ठेलती है, मुझे सहारा देती है! देख लेना, मैं तेरे से भी बढ़कर तीन और टायर अपने पीछे लगाउंगा, तब देखना तू ! अब पिछले टायर के सब्र का भी बांध टूट चुका था, उसने गुस्से में झटके से रुकते हुए वहीं जमीन पर अपने पैर पटके तो जनाव टायर खान जमीन से दो फिट ऊपर हवा में लटक गए ! पिछला टायर बोला, मिंयाँ ये भी मत भूलो कि अगर घर में ज्यादा बिल्लियाँ हो जाए तो फिर एक भी चूहा नहीं मार पाती ! एक टायर तो ठीक से संभलता नहीं, और बड़े ख्वाब देख रहा है चार-चार टायर लगाने के !
पिछले टायर की बात सुन ऊपर से हैंडल मुस्कुरा दिया और गुनगुनाने लगा ;
अपनी तो बस एक ही जान है भाई ,
उसकी हर अदा पर, हम कुर्बान हैं भाई ,
तबसे ही महका है मेरा आँगन,
जबसे उसने थामा है मेरा दामन,
मैंने तो चंद पैसे कमाकर इक मकां बनाया,
अपनी खूबियों से उसने उसे आशियाँ बनाया,
बस एक माली, एक बगिया और दो फूल,
बस यही तो है सुखमय जीवन का असूल,
मैंने तो बस वही गीत गुनगुनाया,
मेरी जान ने जो तराना बनाया,
वह मेरी आन-बान और शान है भाई,
अपनी तो बस एक ही जान है भाई !!!

14 comments:

  1. क्षमा सहित लिख रही हूँ कि यह लघुकथा के सांचे में नहीं है हाँ अलबत्ता व्‍यंग्‍य जरूर है।

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  2. शुक्रिया, डाक्टर अजीत जी , आपने सही कहा कि यह लघु कथा नहीं है , व्यंग्य है , मैं भी पहले शीर्षक में व्यंग्य ही लिखना चाह रहा था लेकिन एक ख़ास वजह से उसे कथा नुमा अंदाज में पेश किया !

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  3. अच्छा व्यंग....जब तक पिछला टायर साथ ना दे तो आगे वाला भी आगे नहीं बढ़ पाता

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  4. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  5. GODIYAAL SIR
    PLZ VIST

    http://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html

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  6. बहुत सही बात कह दी.

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  7. bahut satik vyangya..........samajik vyavastha bina sahyog ke nahi chalti.

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  8. आज का अंदाज़ आपका मस्त रहा गोदियाल भाई ! शुभकामनायें !

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  9. बस एक माली, एक बगिया और दो फूल,
    बस यही तो है सुखमय जीवन का असूल,

    पते की बात कही है , गोदियाल जी।

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

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  11. अरे वाह!
    आपका यह संस्मरण हो या व्यंग्य!
    पर है बहुत रोचक!
    बधाई!

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  12. पी.सी.गोदियाल जी आप का यह व्यंग्य बहुत सुंदर लगा

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  13. अच्छा लाजवाब व्यंग है .. सही सिक्षा देता है ... मिल कर रहने में ही भलाई है ....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।