तू डाल-डाल,मैं पात-पात,नहले पे दहले ठन गए,
जबसे यहाँ कुछ अपने मुह मिंया मिट्ठू बन गए।
ताव मे आकर हमने भी कुछ तरकस के तीर दागे,
बडी-बडी छोडने वाले, सर पर पैर रखकर भागे ।
अक्ल पे पत्थर पड गये क्या, आग मे घी मत डालो,
दूसरों पर पत्थर फेकना छोडो, अपना घर संभालो।
समझदार नहीं धर्म की आंच पर रोटियाँ सेका करते,
कांच के घरों में रहने वाले, पत्थर नहीं फेंका करते।
हमेशा एक ही लकडी से हांकना ठीक सचमुच नहीं ,
मिंया, मुल्ले की दौड मस्जिद तक बाकी कुछ नहीं ।
आंखों मे धूल झोंक,खुद को तीस मारखा बताते हो,
चोर-चोर मौसेरे भाई हो,खिचडी अगल पकाते हो।
अपुन तो सौ सुनार की, एक लोहार की पे चलते है,
चिराग तले अन्धेरा है आपके, काहे फालतू में जलते है।
हम सब जानते है कि दूर के ढोल सुहाने होते है,
नहीं समझदार लोग बहती गंगा में हाथ धोते है।
"अपुन तो सौ सुनार की, एक लोहार की पे चलते है,"
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने!
मुहावरे पढने में अच्छे लगते हैं भाषा भी सुन्दरता प्राप्त करती है , अच्छा लगा, बधाई. नए मुहावरों पर मेरी पोस्ट "दाज्यू मुस्कान देखनी हो तो भैंस की देखो" जरुर पढ़ें. धन्यवाद.
ReplyDelete"मिंया, मुल्ले की दौड मस्जिद तक बाकी कुछ नहीं"
ReplyDeleteअब तो मस्जिद छोड के ब्लाग तक दौड लग रही है :-)
वैसे लगता है आजकल अवधिया जी की संगत का असर होने लगा है :-)
muhavron ka ye roop bhi kafi achcha laga.
ReplyDeleteसमझदार नहीं धर्म की आंच पर रोटियाँ सेका करते,
ReplyDeleteकांच के घरों में रहने वाले, पत्थर नहीं फेंका करते।
सुन्दर है
आपने बहुत अच्छा लिखा परन्तु हमारे मित्र भी बहुत अच्छा लिखते हैं और वाकई बढिया लिखते हैं विश्वास न हो तो पढें
ReplyDeleteक्यों चीर डाला अवध्य बाबू का जबड़ा खिलाड़ी ब्लॉगर्स की मीटिंग में गिरी जैसे semi scholar ने, पान के देश में ? और क्या कहा वकील साहब ने ...?
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/semi-scholar.html
बहुत अच्छा लगा ...खुशी हुयी....
ReplyDeleteमुहावरों और कहावतों पर मैंने भी चार पोस्ट अपने ब्लॉग पर डाले थे.....
..इंजीनियरिंग की नौकरी के दौरान आज भी मैं इनमे मैनेजमेंट के सूत्र खोजता रहता हूँ.....
यह मेरा प्रिय विषय है...मेरा शोध इन कहावतों पर है.........
लिंक दे रहा हूँ.....चार भाग हैं....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_14.html
खिचडी अगल पकाते हो।
ReplyDeleteदेखो जी यह संस्कार का मामला है, आप इस पर कुछ न कहो. हमने तो अपना अलग एग्रीगेटर भी बना लिया है. समंवय से हमें परहेज है.
मुहावरों पर जोरदार लिख दिया... खूब.
श्रीमान अनाम जी की टिप्पणी को ही हमारी टिप्पणी मान लीजिए..क्यों कि हम भी यही कहने वाले थे :-)
ReplyDeleteश्री गणेश हुआ
ReplyDeleteआँखें मिली
आँखें चार हुई
रातों की नींद हराम हुई
दिल आसमान में उड़ने लगा
दिल लगा लिया
दिल बल्लियों उछल गया
दिल चोरी हो गया
होश गुम हुए
दिल का कँवल खिल गया
प्रेम की पींगें बढ़ी
प्यार परवान चढा
दिल पर हाथ रख कर
कसमें खाने लगे
चाँद सितारे तोड़ कर लाने लगे
चौदहवी का चाँद हुए
कभी ईद का चाँद,
कभी पूनम का चाँद नज़र आये
सपनों के महल बनने लगे
फिर एक दिन
शहनाई बजी
हाथ पीले हुए,
डोली चढ़ गए
घोडी चढ़ गए
घर बसाया
घी के दीये जलाये
दो बदन एक जान हुए
दिन में होली रात दिवाली हुई
दिन हवा हुए,
प्रेम के सागर में डूबे उतराए
दसों उंगली घी में हो गए
दरवाज़े पर हाथी झूमने लगे
फिर धीरे-धीरे
दिल बैठने लगा
नानी याद आने लगी
नमक तेल का भावः समझ में आया
नून-तेल लकड़ी जुटाने में जुट गए
रात-दिन एक कर दिया
दीमाग लड़ाने लगे
कभी दाल नहीं गली
दिन को दिन रात को रात नहीं समझा
समय की चक्की में पिस गए
पाँव भारी हुए
आँख के तारे आये
कई टुकडों में बँट गए
पाँव में पत्थर बंध गए
काठ की हांडी बार-बार चढाने लगे
बच्चे सर खाने लगे
आँखें पथराने लगी
दिन में तारे नज़र आने लगे
दांतों चने चबाने लगे
दाँत से कौडी दबाने लगे
कभी दाँत निपोरा
तो कभी दाँत दिखाने लगे
कुछ ऐसे मिले
जिनके मुंह में राम बगल में छूरी थी
मुफलिसी में आटा भी गीला हुआ
मुसीबत अकेली नहीं आई
दर-दर की ठोकर खाने लगे
दिल खट्टा होने लगा
दाई से पेट छुपाने लगे
दाँव पे दाँव चलाने लगे
दलदल में फँस गए
दरिया तक जाते हैं और प्यासे लौट आते हैं
दिल का गुब्बार निकालने लगे
दामन बचाने लगे
तीन-पांच बहुत किया
जाने कब दिन फिरेंगे
अब तो लगता है
दिल कड़ा करना पड़ेगा
पीछा छुड़ाना पड़ेगा
कहीं खो जायेंगे
काफूर हो जायेंगे
लगता है
नौ-दो ग्यारह हो जाएँ
अनुपम एवं अनूठा प्रयोग!
ReplyDeletegaagar men saagar bhar diyaa hai aapne .muhaavaron ki kavitaa nayaa pryog..
ReplyDeleteमुहावरों से रची अनुपम रचना....बधाई
ReplyDeleteऔर अदा जी का कमाल...
बहुत ज़बरदस्त रहा .
bahut badhiya
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रयोग किया है जी मुहावरों का
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
अदा जी की टिप्पणी भी लाजवाब है
ReplyDeleteप्रणाम
भाई नये अर्थोंमें ढाल दिया इन मुहावरों को ... ये अंदाज़ लाजवाब है गौदियाल जी ....
ReplyDeleteसब के सब मुहावरे लाजवाबी से इस्तेमाल किए हैं ...
bahut sunderta se aapne in mushavro ka prayog kiya.
ReplyDeleteaapke ise blog ka aaj hee pata chala ......
Der aae durust aae...............:)