Tuesday, March 30, 2010

मुहावरे ही मुहावरे !


तू डाल-डाल,मैं पात-पात,नहले पे दहले ठन गए,
जबसे यहाँ कुछ अपने मुह मिंया मिट्ठू बन गए।

ताव मे आकर हमने भी कुछ तरकस के तीर दागे,
बडी-बडी छोडने वाले, सर पर पैर रखकर भागे

अक्ल पे पत्थर पड गये क्या, आग मे घी मत डालो,
दूसरों पर पत्थर फेकना छोडो, अपना घर संभालो

समझदार नहीं धर्म की आंच पर रोटियाँ सेका करते,
कांच के घरों में रहने वाले, पत्थर नहीं फेंका करते।

हमेशा एक ही लकडी से हांकना ठीक सचमुच नहीं ,
मिंया, मुल्ले की दौड मस्जिद तक बाकी कुछ नहीं ।

आंखों मे धूल झोंक,खुद को तीस मारखा बताते हो,
चोर-चोर मौसेरे भाई हो,खिचडी अगल पकाते हो।

अपुन तो सौ सुनार की, एक लोहार की पे चलते है,
चिराग तले अन्धेरा है आपके, काहे फालतू में जलते है।

हम सब जानते है कि दूर के ढोल सुहाने होते है,
नहीं समझदार लोग बहती गंगा में हाथ धोते है।

18 comments:

  1. "अपुन तो सौ सुनार की, एक लोहार की पे चलते है,"

    बिल्कुल सही कहा आपने!

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  2. मुहावरे पढने में अच्छे लगते हैं भाषा भी सुन्दरता प्राप्त करती है , अच्छा लगा, बधाई. नए मुहावरों पर मेरी पोस्ट "दाज्यू मुस्कान देखनी हो तो भैंस की देखो" जरुर पढ़ें. धन्यवाद.

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  3. "मिंया, मुल्ले की दौड मस्जिद तक बाकी कुछ नहीं"
    अब तो मस्जिद छोड के ब्लाग तक दौड लग रही है :-)

    वैसे लगता है आजकल अवधिया जी की संगत का असर होने लगा है :-)

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  4. muhavron ka ye roop bhi kafi achcha laga.

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  5. समझदार नहीं धर्म की आंच पर रोटियाँ सेका करते,
    कांच के घरों में रहने वाले, पत्थर नहीं फेंका करते।

    सुन्दर है

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  6. आपने बहुत अच्‍छा लिखा परन्‍तु हमारे मित्र भी बहुत अच्‍छा लिखते हैं और वाकई बढिया लिखते हैं विश्‍वास न हो तो पढें

    क्यों चीर डाला अवध्य बाबू का जबड़ा खिलाड़ी ब्लॉगर्स की मीटिंग में गिरी जैसे semi scholar ने, पान के देश में ? और क्या कहा वकील साहब ने ...?
    http://vedquran.blogspot.com/2010/03/semi-scholar.html

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  7. बहुत अच्छा लगा ...खुशी हुयी....
    मुहावरों और कहावतों पर मैंने भी चार पोस्ट अपने ब्लॉग पर डाले थे.....
    ..इंजीनियरिंग की नौकरी के दौरान आज भी मैं इनमे मैनेजमेंट के सूत्र खोजता रहता हूँ.....
    यह मेरा प्रिय विषय है...मेरा शोध इन कहावतों पर है.........
    लिंक दे रहा हूँ.....चार भाग हैं....
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_14.html

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  8. खिचडी अगल पकाते हो।

    देखो जी यह संस्कार का मामला है, आप इस पर कुछ न कहो. हमने तो अपना अलग एग्रीगेटर भी बना लिया है. समंवय से हमें परहेज है.

    मुहावरों पर जोरदार लिख दिया... खूब.

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  9. श्रीमान अनाम जी की टिप्पणी को ही हमारी टिप्पणी मान लीजिए..क्यों कि हम भी यही कहने वाले थे :-)

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  10. श्री गणेश हुआ
    आँखें मिली
    आँखें चार हुई
    रातों की नींद हराम हुई
    दिल आसमान में उड़ने लगा
    दिल लगा लिया
    दिल बल्लियों उछल गया
    दिल चोरी हो गया
    होश गुम हुए
    दिल का कँवल खिल गया
    प्रेम की पींगें बढ़ी
    प्यार परवान चढा
    दिल पर हाथ रख कर
    कसमें खाने लगे
    चाँद सितारे तोड़ कर लाने लगे
    चौदहवी का चाँद हुए
    कभी ईद का चाँद,
    कभी पूनम का चाँद नज़र आये
    सपनों के महल बनने लगे
    फिर एक दिन
    शहनाई बजी
    हाथ पीले हुए,
    डोली चढ़ गए
    घोडी चढ़ गए
    घर बसाया
    घी के दीये जलाये
    दो बदन एक जान हुए
    दिन में होली रात दिवाली हुई
    दिन हवा हुए,
    प्रेम के सागर में डूबे उतराए
    दसों उंगली घी में हो गए
    दरवाज़े पर हाथी झूमने लगे
    फिर धीरे-धीरे
    दिल बैठने लगा
    नानी याद आने लगी
    नमक तेल का भावः समझ में आया
    नून-तेल लकड़ी जुटाने में जुट गए
    रात-दिन एक कर दिया
    दीमाग लड़ाने लगे
    कभी दाल नहीं गली
    दिन को दिन रात को रात नहीं समझा
    समय की चक्की में पिस गए
    पाँव भारी हुए
    आँख के तारे आये
    कई टुकडों में बँट गए
    पाँव में पत्थर बंध गए
    काठ की हांडी बार-बार चढाने लगे
    बच्चे सर खाने लगे
    आँखें पथराने लगी
    दिन में तारे नज़र आने लगे
    दांतों चने चबाने लगे
    दाँत से कौडी दबाने लगे
    कभी दाँत निपोरा
    तो कभी दाँत दिखाने लगे
    कुछ ऐसे मिले
    जिनके मुंह में राम बगल में छूरी थी
    मुफलिसी में आटा भी गीला हुआ
    मुसीबत अकेली नहीं आई
    दर-दर की ठोकर खाने लगे
    दिल खट्टा होने लगा
    दाई से पेट छुपाने लगे
    दाँव पे दाँव चलाने लगे
    दलदल में फँस गए
    दरिया तक जाते हैं और प्यासे लौट आते हैं
    दिल का गुब्बार निकालने लगे
    दामन बचाने लगे
    तीन-पांच बहुत किया
    जाने कब दिन फिरेंगे
    अब तो लगता है
    दिल कड़ा करना पड़ेगा
    पीछा छुड़ाना पड़ेगा
    कहीं खो जायेंगे
    काफूर हो जायेंगे
    लगता है
    नौ-दो ग्यारह हो जाएँ

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  11. अनुपम एवं अनूठा प्रयोग!

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  12. gaagar men saagar bhar diyaa hai aapne .muhaavaron ki kavitaa nayaa pryog..

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  13. मुहावरों से रची अनुपम रचना....बधाई

    और अदा जी का कमाल...

    बहुत ज़बरदस्त रहा .

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  14. बहुत बढिया प्रयोग किया है जी मुहावरों का

    प्रणाम स्वीकार करें

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  15. अदा जी की टिप्पणी भी लाजवाब है
    प्रणाम

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  16. भाई नये अर्थोंमें ढाल दिया इन मुहावरों को ... ये अंदाज़ लाजवाब है गौदियाल जी ....
    सब के सब मुहावरे लाजवाबी से इस्तेमाल किए हैं ...

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  17. bahut sunderta se aapne in mushavro ka prayog kiya.
    aapke ise blog ka aaj hee pata chala ......
    Der aae durust aae...............:)

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।