Thursday, March 4, 2010

कुछ पल तो जी लिए !


सिकवे जुबाँ पे आये जब, हम ओंठों को सी लिए ,
दिल से निकले जो अश्क थे, वो आँखों ने पी लिए।  


जुल्म-ए-सितम छुपाये न ही अपने गम दिखाए,
हर बात सह गए किसी इक बात का यकीं लिए।  


खुशियों के कारवां  निकल गए बीच राह छोड़कर,
हम अकेले ही  चलते रहे  अपनी  बदनशीं लिए। 


यूं ,आसान है गले लगाना मुसीबत में मौत को ,
गफलत में  ही सही, चलो, कुछ पल तो जी लिए। 

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मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है, ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है, कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान...