Saturday, March 27, 2010

कुरुक्षेत्र से एक रिपोर्ट !

धर्म पर अधर्म की विजय के लिए कुरुक्षेत्र में घमासान जारी है! बढ़ती महंगाई, अराजकता और भ्रष्टाचार से देश की बदहाली को न देखने की कसम खा, गांधारी ने भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली है! मामा शकुनी का अपना अमर मोहरा जब से थाली का वैंगन बना इधर से उधर लुडक रहा है, तभी से मामा शकुनी ने सीटी बजाना शुरू कर दिया है! पांचाली का माया मोह अपनी सारी हदे तोड़ चुका है! धृतराष्ट्र का प्रतिनिधि बूढा होकर खुद इतना असहाय सा हो गया है कि खुजली होने पर दरवारियों को कहता है कि थोड़ा खुजला दो! इस पूरे युद्ध का गहराई से निरीक्षण करने से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि देश को कृष्ण की कमी हर जगह हर वक्त खल रही है, उनकी गैर-मौजूदगी से युद्ध दिशाहीन सा हो गया है ! भीष्मपितामह मृत्यु शय्या पर लेटे-लेटे चुपचाप तमाशा देख रहे है ! निकट भविष्य में सिंहासन को युधिष्टर मिलने की भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है! खैर,जो भी है मगर शनै:-शनै: धर्म पर अधर्म द्वारा विजय प्राप्त करने की यह लड़ाई एक दिलचस्प मोड़ ले रही है !

एक तरफ जहां सब लोग अपना ध्यान कुरुक्षेत्र पर ही केन्द्रित किये बैठे है, वही दूसरी तरफ देश में क़ानून और न्याय व्यवस्था इतनी कमजोर और सत्ता स्वामिभक्त हो गई है कि १८ साल बाद भी बाबरी का जिन्न जब तब सिर उठाकर खडा हो जाता है! अपनी सहूलियत के हिसाब से १८ साल बाद गवाह से गवाही दिलवाकर मुद्दे को ज़िंदा रखने का भरसक प्रयास किया जाता है! जब-जब ५- ६ दिसम्बर आएगा, देश में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की जायेगी ! इसलिए नही कि इसी दिन पर यूनियन कार्बाईड के प्लांट से गैस रिश्ने से हजारो मर गए थे ! ऐसे आलतू-फालतू तो मरते ही रहते है, मगर वह इसलिए कि इस दिन बाबरी मस्जिद का वह जर्जर ढांचा गिराया गया था ! जो कि इस देश के मुस्लिमो के आस्था का प्रतीक था ! आस्था बड़ी होती है, देश तो चलता रहता है! जब तक हमारा सेकुर्लरिज्म रहेगा, हमारे मुसलमान भाई यूँ ही सडको पर ०६ दिसम्बर को प्रदर्शन करते रहेंगे! इसलिए नहीं कि उनके आस्था के प्रतीक को गिरा दिया गया बल्कि इसलिए क्योंकि इसी से तो युवा मुस्लिमो में अपने धर्म के प्रति कुर्वानी का जोश और जज्वा पैदा होता है! और वे दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, बैंगलोर और मुंबई जैसी कार्यवाही को अंजाम देने में सक्षम हो पाते है ! अफसोस कि एक जागरूक और शिक्षित मुस्लिम भी वास्तविक धरातल को समझने, तुलनात्मक और वक्त की नजाकत के हिसाब से व्यवहार करने में दिलचस्पी नही रखता ! अपने उस ज़न्नत जाने और ७२ वर्जिन को पाने की जिद में बस दार-उल-हद और डर-उल-ब्रांड के दर्शन कर इसे पवित्र युद्ध ( जेहाद) की संज्ञा देने से नही हिचकिचाता ! जेहादी संस्थानों ने भी सिर्फ़ यही सिखाया कि जब दुनिया देखती है तो हमेशा शिकायती लहजे(whine) में बात करो, और जब दुनिया सोती है तो चोट (hit) करो !

अंत में यही कहूँगा कि आज के समय में इस देश में कौरवो और पांडवो में से कोई भी पक्ष ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह नही कर रहा, सब के सब केवल वोट बैंक की राजनीति तक सिमट कर रह गए है! अपनी कमज़ोरी छुपाने के लिए दूसरों की बुराई करना, बस यही इस धर्म युद्ध का मकसद रह गया है ! बूढ़े योधाओ के सिर में "भेजा" नहीं है,! किसी ने ठीक ही कहा है कि ;
"खुजली इनके ख़ुद को है, पर पब्लिक को नोच रहे हैं,
धूल जमी इनके चेहरे पर, और ये दर्पण को पोंछ रहे है "
देश की प्रमुख समस्या वह नहीं है जो हम देख रहे है, बल्कि भ्रष्ट और बूढ़ा नेतृत्व है। जब तक योग्य और शिक्षित युवाओं के हाथ में इस युद्ध का नेतृत्व नही चला जाता, तब तक देश नपुंसक की भांति यह उम्मीद करता रहेगा कि अमेरिका हमारे विरोधी पक्ष पर सैनिक कार्यवाही करके हमें हमारी समस्या से मुक्त करा देगा !

5 comments:

  1. धर्म के जानकार लोगों से माफी सहित ....
    धर्म के बारे में लिखने ..एवं ..टिप्पणी करने बाले.. तोता-रटंत.. के बारे में यह पोस्ट ....मेरा कॉमन कमेन्ट है....
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html

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  2. "खुजली इनके ख़ुद को है, पर पब्लिक को नोच रहे हैं,
    धूल जमी इनके चेहरे पर, और ये दर्पण को पोंछ रहे है "
    वाह.

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  3. सवाल ये नहीं कि सत्ता किसके हाथो में है?

    एक विचारणीय प्रशन ये भी तो है कि सरकार जिसके लिए है वो "जनता-जनार्दन" कभी ये सोचती भी है या नहीं कि उन्होंने जिस मकसद से सरकार को चुना था वो उस मकसद को पूरा करती नजर आ भी रही है या नहीं?यदि नहीं पूरा कर रही है तो क्यों?उसकी मजबूरी माफ़ी के काबिल है भी या नहीं?चुनाव हमारा है,जिम्मेवारी भी हमारी ही है,होनी ही चाहिए!एक बार गलती हो सकती है,बार-बार क्यों?कब तक हम एक-आध "अपनों" के चक्कर में देश का नुक्सान करते रहेंगे?टिप्पणी है इसीलिए ज्यादा नहीं.........

    कुंवर जी,

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  4. बदलाव जल्द आयेगा..

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।