बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,
मेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ।
हुआ अनुरक्त जबसेे मैं,तेरी हाला का,ऐ साकी,
तलब-ऐ-शाम ढलने का,मैं इन्त्तिजार करता हूँ।
नहीं अच्छा हद से कुछ,कहते लोग हैं मुुुझसे,
मगर तेरे इस़रार पर,मैंं हर हद पार करता हूँ।
खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,मैं इक़रार करता हूँ।
ईशाद तेेरा कुछ ऐसा,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,
जाम-ऐ-शराब-ऐ-मोहब्बत,मैं कब इंकार करता हूँ।
हुआ अनुरक्त जबसेे मैं,तेरी हाला का,ऐ साकी,
तलब-ऐ-शाम ढलने का,मैं इन्त्तिजार करता हूँ।
नहीं अच्छा हद से कुछ,कहते लोग हैं मुुुझसे,
मगर तेरे इस़रार पर,मैंं हर हद पार करता हूँ।
खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,मैं इक़रार करता हूँ।
ईशाद तेेरा कुछ ऐसा,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,
जाम-ऐ-शराब-ऐ-मोहब्बत,मैं कब इंकार करता हूँ।
कहे'परचेत',ऐ साकी,है कहने को न कुछ बाकी,
कुछ तो बात है तुझमे,तेरी मधु से प्यार करता हूँ।
कुछ तो बात है तुझमे,तेरी मधु से प्यार करता हूँ।
बेहतरीन।
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeletePlease hamaare blog ko ek baar dekh lijiye
Deleteबहुत खूब , अच्छी ग़ज़ल ।
ReplyDeleteउर्दू के शब्दों के साथ अनुग्रह शब्द थोड़ा भिन्न लगा । इसरार शब्द मुझे ज्यादा अच्छा लग रहा ।
आपके ब्लॉग पर बहुत दिन बाद आना हुआ ।
खूबसूरती से उकेरे मन के भावों को पढ़ आनंद आया ।
संगीता जी, आभार आपका इस हौंसला अफजाई और पथ पर्दर्शन हेतु🙏 अनुग्रह शब्द को रिपलेस कर दिया है।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-2-21) को 'धारयति इति धर्मः'- (चर्चा अंक- 3986) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeletePlease hamaare blog ko ek baar dekh lijiye
Deleteवाह !
ReplyDeleteअच्छी गज़ल ।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत पंक्ति
ReplyDeleteउम्दा/ ग़ज़ल हर शेर लाजवाब।
ReplyDeleteआभार, आप सभी स्नेही जनों का।🙏
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल...वाह
ReplyDeleteख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteवाह !!!
बहुत सुन्दर शानदार गजल
ReplyDeleteवाह!बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,
ReplyDeleteमेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ।
.....
हमेशा की तरह लाजवाब ।
वाह!वाह!वाह! सादर नमन।
बहुत -बहुत आभार, आप सब का।🙏
ReplyDeleteबयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,
ReplyDeleteमेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ। बढ़िया , प्रभावी ग़ज़ल परचेत जी |