Friday, February 12, 2021

असमंजस

प्रश्न विकट है, समय निकट है,

देह-ईमान किधर दफना़ऊ? 

चहूंओर, गिद्ध हैं, गीदड़ हैं। 

डाल-डाल से, ताल-ताल से,

हैं नज़र गढा़ए निष्ठा-भक्षी, 

शठ,लुच्चे-लफंगे, लीचड़ हैं। 

गजब येह भंवरधारा,'परचेत',

कुटिल, कपटमय कीचड़ हैं,

पतितता के आकंठ मे डूबे, 

जहां भ्रष्टाचार के बीहड़ हैं।।

4 comments:

  1. यथार्थवादी विचारोत्तेजक गीत... बधाई

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  2. ये बीहड़ कब कटे
    देखो।
    सुंदर रचना

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।