प्रश्न विकट है, समय निकट है,
देह-ईमान किधर दफना़ऊ?
चहूंओर, गिद्ध हैं, गीदड़ हैं।
डाल-डाल से, ताल-ताल से,
हैं नज़र गढा़ए निष्ठा-भक्षी,
शठ,लुच्चे-लफंगे, लीचड़ हैं।
गजब येह भंवरधारा,'परचेत',
कुटिल, कपटमय कीचड़ हैं,
पतितता के आकंठ मे डूबे,
जहां भ्रष्टाचार के बीहड़ हैं।।
बहुत सुन्दर और सटीक।
ReplyDeleteयथार्थवादी विचारोत्तेजक गीत... बधाई
ReplyDeleteये बीहड़ कब कटे
ReplyDeleteदेखो।
सुंदर रचना
आभार, आप सभी का🙏
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