Tuesday, February 2, 2021

सच का सामना।











ये वह बांंध है, जो  

गढ-हिमालय के टिहरी मे

पवित्र भागीरथी की लहरों पे लेटे है,

यौवन के अपने इस 

बुलंद शिखर पर,

स्व:वदन, दिव्य छटा लपेटे है,

ऐ जहां वाले, 

भागीरथी के इस द्वारपाल  को

कभी उम्रदराज न होने देना

क्योंकि, वह अपने अंदर उफनते 

समन्दर की सी, गहराइयां समेटे है।



No comments:

Post a Comment

वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...