Sunday, February 21, 2021

तलब

 बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ, 

मेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ।

हुआ अनुरक्त जबसेे मैं,तेरी हाला का,ऐ साकी,
तलब-ऐ-शाम ढलने का,मैं इन्त्तिजार करता हूँ।


नहीं अच्छा हद से कुछ,कहते लोग हैं मुुुझसे,
मगर तेरे इस़रार पर,मैंं हर हद पार करता हूँ।


खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,मैं इक़रार करता हूँ।


ईशाद तेेरा कुछ ऐसा,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,

जाम-ऐ-शराब-ऐ-मोहब्बत,मैं कब इंकार करता हूँ।

कहे'परचेत',ऐ साकी,है कहने को न कुछ बाकी,
कुछ तो बात है तुझमे,तेरी मधु से प्यार करता हूँ।

18 comments:

  1. बहुत खूब , अच्छी ग़ज़ल ।
    उर्दू के शब्दों के साथ अनुग्रह शब्द थोड़ा भिन्न लगा । इसरार शब्द मुझे ज्यादा अच्छा लग रहा ।
    आपके ब्लॉग पर बहुत दिन बाद आना हुआ ।
    खूबसूरती से उकेरे मन के भावों को पढ़ आनंद आया ।

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  2. संगीता जी, आभार आपका इस हौंसला अफजाई और पथ पर्दर्शन हेतु🙏 अनुग्रह शब्द को रिपलेस कर दिया है।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. Please hamaare blog ko ek baar dekh lijiye

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  5. बहुत ही खूबसूरत पंक्ति

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  6. उम्दा/ ग़ज़ल हर शेर लाजवाब।

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  7. आभार, आप सभी स्नेही जनों का।🙏

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  8. शानदार ग़ज़ल...वाह

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  9. ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
    वाह !!!

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  10. बहुत सुन्दर शानदार गजल

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  11. बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,

    मेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ।
    .....

    हमेशा की तरह लाजवाब ।
    वाह!वाह!वाह! सादर नमन।

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  12. बहुत -बहुत आभार, आप सब का।🙏

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  13. बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,
    मेरी नादानियां कह लो,जो मैं हरबार करता हूँ। बढ़िया , प्रभावी ग़ज़ल परचेत जी |

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