ऐ जिंदगी,
तू मेरे घर मत आना...
अकेला ही रहता हूँ,
हर गम अकेले ही सहता हूँ,
दिनभर दौड-धूप का मारा,
दुनियांं से थका हारा,
साफ-सफाई का मोहताज.....
पसंद नहीं आएगा तुझको,
ये मेरा कबाड़खाना।
ऐ जिंदगी,
तू मेरे घर मत आना...
यही काफी है मेरे लिए
कि मैं तुझसे प्यार करता हूँ,
हर गम-ओ-खुशी
तेरे दरमियाँ से गुजरता हूँ,
मगर रूठे जो तू कभी...
तो फिर मनाने को ,
दे न पाऊंगा तुझको
मैं दिल का कोई नज़राना ।
ऐ जिंदगी,
तू मेरे घर मत आना...
अकेले रहने की व्यथा उभर कर आई है । भावपूर्ण रचना ।
ReplyDelete'दी', आपका आभार।🙏
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को <a href="https://charchamanch.blogspot.com/2021/03/3995.html”> चर्चा मंच </a> पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
शुक्रिया, विर्क सहाब।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteअकेलापन.....!
ReplyDeleteआंतरिक पीड़ा को उजागर करती
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
वाह
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार
आभार, आप सभी का🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!
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