Wednesday, March 3, 2021

ऐ जिंदगी...

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...

अकेला ही रहता हूँ,

हर गम अकेले ही सहता हूँ,

दिनभर दौड-धूप का मारा, 

दुनियांं से थका हारा,

साफ-सफाई का मोहताज.....

पसंद नहीं आएगा तुझको,

ये मेरा कबाड़खाना।

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...


यही काफी है मेरे लिए

कि मैं तुझसे प्यार करता हूँ,

हर गम-ओ-खुशी

तेरे दरमियाँ से गुजरता हूँ,

मगर रूठे जो तू कभी...

तो फिर मनाने को ,

दे न पाऊंगा तुझको

मैं दिल का कोई नज़राना ।

ऐ जिंदगी,

तू मेरे घर मत आना...



13 comments:

  1. अकेले रहने की व्यथा उभर कर आई है । भावपूर्ण रचना ।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को <a href="https://charchamanch.blogspot.com/2021/03/3995.html”> चर्चा मंच </a> पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  4. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. बहुत सुंदर सृजन।

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  7. आंतरिक पीड़ा को उजागर करती
    बहुत सुंदर रचना
    वाह

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    आभार

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  8. बहुत सुन्दर,बेहतरीन भाव!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।