Monday, March 8, 2021

खलिश..

जब वो,

दर्द-ऐ-दिल अपना, 

शब्दों मे न समेट पाया

तो कमबख़्त,

आंसू बनके

उसकी आँखों से छलक आया।

5 comments:

  1. मार्मिक और हृदय स्पर्शी रचना।

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  2. जब वो,

    दर्द-ऐ-दिल अपना,

    शब्दों मे न समेट पाया

    तो कमबख़्त,

    आंसू बनके

    उसकी आँखों से छलक आया।

    बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने ब्लॉग में आपने। इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। Visit Our Blog Zee Talwara

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।