है कहीं अमीरी का गूम़ां
तो कहीं गरीबी का तूफ़ां,
ये आ़बोहवा, मेरे शहऱ की,
कुछ गरम है, कुछ नरम है।
कहीं तरुणाई का योवनवदन
छलकते जाम, हाथों मे रम है,
कहीं उ़म्रदराज़ हुई जो काया,
मुख़ पे झलकता बुढापे का गम है।
है कहीं पर तो फुरसत ही फुरसत
तो पास किसी के वक्त बहुत कम है,
फ़लसफ़ा जिन्दगी का अज़ब 'परचेत',
यथार्थ गायब, बस भरम ही भरम है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआज के परिदृष्य पर सटीक, सुंदर, यथार्थवादी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार, आप सभी का🙏
ReplyDeleteHindi Story
ReplyDeletemeri baate
Bhoot Ki kahani
Akabar Birbal
MPPSC