Sunday, May 2, 2010

अरमां अपने पास जगा।

जीना है तो आस जगा, 
दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है, 

मन में यह विश्वास जगा।

हलक उतरता जाम न हो, 

मय कैसे बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, 

पीना है तो प्यास जगा।

हमदर्द कोई दिल तोड़ न दे , 

कहीं राह अकेला छोड़ न  दे ,
हो हमराही जन्म-जन्म का , 
ये तीरे-जिगर अभिलाष जगा।  

छूटे का अफ़सोस न कर, 
किस्मत का दोष न कर,
मायूसी में  आशाओं के 
अरमां अपने पास जगा।  

21 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद

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  2. वाह जी, गोदियाल साहब।
    जगा कर ही छोड़ोगे।

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  3. आयेगा फिर हमराही बनकर, तीरे-जिगर अभिलाष जगा!
    अभिलाषा की ताकत का सही आकलन
    सुन्दर

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  4. bhaav achhe hain ...par

    जीना है तो आश जगा, दिल में इक अहसास जगा,
    हर दरिया को तर सकता है, मन में यह विश्वाश जगा!

    हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
    तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!


    in do ashaar ke baad lay kaheen kho si gayi .. baharhal ek achhi rachna

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
    निराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा!

    शानदार प्रस्तुति ....मान गए जनाब

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  7. वाह वाह!! हर शेर लाजबाब!!

    बहुत उम्दा!

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  8. भाव बड़े अच्छे थे.. अतः लोभ सम्वरण न कर पाया इनको अपनी छोटी समझ से एक बहर में लाने की... लयबद्धता आ गई है... धृष्टता के लिए क्षमा चाहूँगा..

    जीना है तो आस जगा, दिल में इक अहसास जगा,
    हर दरिया तर सकता है तू, मन में यह विश्वास जगा!

    हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
    तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!

    बेदर्दी दिल तोड़ गया जो, बीच राह में छोड़ गया जो,
    फिर हमराही बनकर आए, तीरे-जिगर अभिलाष जगा!

    दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूंढने वाला सुखी नहीं,
    तम काट निराशा के, आशा के दायरे अपने पास जगा.

    कुछ छूट गया अफ़सोस न कर, किस्मत का अपने दोष न कर,
    चित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा!

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  9. अंधियारे को रौशन कर दे ...दीप बेहद ख़ास जगा ...
    आस जगा ...
    उत्साह से लबरेज सुन्दर कविता ....

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  10. गोदियाल जी !
    मन में आशाओं का संचार करते शानदार अशआरों के लिए आपको बधाई!

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  11. गोदियाल जी,
    हमारा तो हर पैग ही पहला होता है
    जब तक खतम नही हो जाती बोतल।

    सभी शेर सवासेर हैं, बधाई

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  12. @ स्वप्निल कुमार जी एवं @संवेदनाओं के स्वर जी ,
    आपका शुक्रिया , कुछ संशोधन कर लिए है !

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  13. पीछे छूटे का अफ़सोस न कर, किस्मत का दोष न कर,
    चित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा

    bahut acha godiyaal ji
    aise hi likhtge raho
    hum h na padhne ke liye

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  14. बहुत सुन्दर संदेश देते शेर्।

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  15. हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
    तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा
    वाह!भावनाओं के हर छोर को छूती पंक्तियाँ!अब तक तो प्यास बुझाने के लिए ही मारे-मारे फिरे थे,अब प्यास जगाने की भी सोचेंगे....

    कुंवर जी,

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  16. ... बेहद प्रभावशाली

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  17. हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
    तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!

    वाह क्या खूब ! लाजवाब !
    बस ये शेर अपने नेता लोगों के कान तक न पहुंचे ... वैसे ही वे खून के प्यासे रहते हैं :)

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  18. दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
    निराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा ..

    सुंदर रचना है ... बहुत ही लाजवाब ....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।