जीना है तो आस जगा,
दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है,
मन में यह विश्वास जगा।
हलक उतरता जाम न हो,
मय कैसे बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है,
पीना है तो प्यास जगा।
हमदर्द कोई दिल तोड़ न दे ,
कहीं राह अकेला छोड़ न दे ,
हो हमराही जन्म-जन्म का ,
ये तीरे-जिगर अभिलाष जगा।
छूटे का अफ़सोस न कर,
किस्मत का दोष न कर,
मायूसी में आशाओं के
अरमां अपने पास जगा।
दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है,
मन में यह विश्वास जगा।
हलक उतरता जाम न हो,
मय कैसे बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है,
पीना है तो प्यास जगा।
हमदर्द कोई दिल तोड़ न दे ,
कहीं राह अकेला छोड़ न दे ,
हो हमराही जन्म-जन्म का ,
ये तीरे-जिगर अभिलाष जगा।
छूटे का अफ़सोस न कर,
किस्मत का दोष न कर,
मायूसी में आशाओं के
अरमां अपने पास जगा।
बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
ReplyDeleteवाह जी, गोदियाल साहब।
ReplyDeleteजगा कर ही छोड़ोगे।
आयेगा फिर हमराही बनकर, तीरे-जिगर अभिलाष जगा!
ReplyDeleteअभिलाषा की ताकत का सही आकलन
सुन्दर
bhaav achhe hain ...par
ReplyDeleteजीना है तो आश जगा, दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया को तर सकता है, मन में यह विश्वाश जगा!
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
in do ashaar ke baad lay kaheen kho si gayi .. baharhal ek achhi rachna
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
ReplyDeleteनिराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा!
शानदार प्रस्तुति ....मान गए जनाब
वाह वाह!! हर शेर लाजबाब!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
बहुत बढिया!!
ReplyDeleteभाव बड़े अच्छे थे.. अतः लोभ सम्वरण न कर पाया इनको अपनी छोटी समझ से एक बहर में लाने की... लयबद्धता आ गई है... धृष्टता के लिए क्षमा चाहूँगा..
ReplyDeleteजीना है तो आस जगा, दिल में इक अहसास जगा,
हर दरिया तर सकता है तू, मन में यह विश्वास जगा!
हलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
तृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
बेदर्दी दिल तोड़ गया जो, बीच राह में छोड़ गया जो,
फिर हमराही बनकर आए, तीरे-जिगर अभिलाष जगा!
दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूंढने वाला सुखी नहीं,
तम काट निराशा के, आशा के दायरे अपने पास जगा.
कुछ छूट गया अफ़सोस न कर, किस्मत का अपने दोष न कर,
चित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा!
अंधियारे को रौशन कर दे ...दीप बेहद ख़ास जगा ...
ReplyDeleteआस जगा ...
उत्साह से लबरेज सुन्दर कविता ....
गोदियाल जी !
ReplyDeleteमन में आशाओं का संचार करते शानदार अशआरों के लिए आपको बधाई!
गोदियाल जी,
ReplyDeleteहमारा तो हर पैग ही पहला होता है
जब तक खतम नही हो जाती बोतल।
सभी शेर सवासेर हैं, बधाई
@ स्वप्निल कुमार जी एवं @संवेदनाओं के स्वर जी ,
ReplyDeleteआपका शुक्रिया , कुछ संशोधन कर लिए है !
पीछे छूटे का अफ़सोस न कर, किस्मत का दोष न कर,
ReplyDeleteचित-अन्धकार को रोशन कर दे, दीप वो बेहद ख़ास जगा
bahut acha godiyaal ji
aise hi likhtge raho
hum h na padhne ke liye
बहुत सुन्दर संदेश देते शेर्।
ReplyDeleteहलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
ReplyDeleteतृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा
वाह!भावनाओं के हर छोर को छूती पंक्तियाँ!अब तक तो प्यास बुझाने के लिए ही मारे-मारे फिरे थे,अब प्यास जगाने की भी सोचेंगे....
कुंवर जी,
हर शेर लाजबाब!!
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteहलक उतरता जाम न हो, साकी फिर बदनाम न हो,
ReplyDeleteतृप्ति का कोई छोर नहीं है, पीना है तो प्यास जगा!
वाह क्या खूब ! लाजवाब !
बस ये शेर अपने नेता लोगों के कान तक न पहुंचे ... वैसे ही वे खून के प्यासे रहते हैं :)
दुःख देने वाला दुखी नहीं, सुख ढूढने वाला सुखी नहीं,
ReplyDeleteनिराशाओं में भी आशाओं के दायरे अपने पास जगा ..
सुंदर रचना है ... बहुत ही लाजवाब ....