Friday, May 28, 2010

क्या इसे माओवादी और नक्सली कृत्य तक ही समेट लेना उचित होगा ?



आज तडके हावडा -कुर्ला लोकमान्य तिलक ज्ञानेश्वरी सुपर डीलक्स एक्सप्रेस, जोकि महाराष्ट्रा जा रही थी, के १३ डिब्बे आतंकवादियों द्वारा जगराम से १३५ किलोमीटर दूर खेमसोली और सर्दिया रेलवे स्टेशनों के बीच तडके १:३० बजे रेल पटरी पर किये गए ब्लास्ट की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो गए, जिसमे अपुष्ट ख़बरों के मुताविक अब तक ७० से अधिक यात्रियों के मारे जाने और करीब २०० के घायल होने की खबर है! इस घटना का एक दुखद पहलू यह भी रहा कि १३ डिब्बों में से ५ डिब्बे बगल वाली उस पटरी पर गिर गए जिस पर एक मालगाड़ी आ रही थी, और फिर वह भी इन डिब्बो से भिड गई!

हालांकि इस दुर्घटना की जिम्मेदारी पीसीपीए नाम के एक मावो समर्थित गुट ने घटनास्थल पर दो बैनर छोड़कर ली है, मगर मैं समझता हूँ कि इस घृणित कार्यवाही को इतने हलके में लेना उचित नही होगा! 'हलके में लेना' शब्द इसलिए इस्तेमाल किया है क्योंकि नक्सली और माओवादी घटनाएं तो हमारे सरकार के लिए हल्की-फुल्की बाते ही बनकर रह गई है ! एक-विभाग किसी दूसरे विभाग के ऊपर दोष मड देगा, प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी दुर्घटना पर खेद व्यक्त कर लाख पचास हजार का मुआवजा लोगो का मुह बंद करवाने के लिए घोषित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेंगे, सरकारी फंड को लूटने के लिए एवं लोगो की आँखों में धूल झोंकने के लिए एक-दो जांच इन्क्वैरिया / कमेटियां गठित कर ली जायेंगी , बस हो गया काम ! लेकिन देशवासियों को, जिनकी कि जान हर वक्त मौत के सौदागरों की शतरंजी चालों के बीच अटकी पडी है इस पूरे प्रकरण को एक दूसरे नजरिये से भी देखने की जरुरत है!

जैसा कि मैं पहले भी कई बार कह चुका कि देश की राजनीति एक बहुत ही घृणित दौर से गुजर रही है! कुर्सी हथियाने और अपना घर भरने के लिए नेता किसी भी हद तक गिरने को तत्पर है! उसे इस बात की कोई परवाह नही कि उसमे कितने निर्दोष मारे जाते है, बस इन्हें तो अपनी आकांक्षाओ की पूर्ति करनी है, अपने तुच्छ निहित स्वार्थों को पूरा करना है! इस घटना के होने, उसके समय, स्थान और कारणों का अध्ययन करने से मुझे जो लगता है, वह है कि इन प्रदेशों में वर्तमान में जारी नक्सली हिंसा की आड़ में माओवाद और नक्सल का मुखौटा पहन, पश्चिम बंगाल में होने वाले २०११ के राज्यस्तरीय चुनावों के मद्देनजर , मतदाता के रुझान को अपने पक्ष में करने हेतु राज्य में सत्ता के लिए लालायित उन सभी राजनितिक दलों की एक घृणित सोची-समझी उस चाल का हिस्सा है,जिसमे मतदाता को विरोधियों के प्रति उकसाने और अपने वोट को पक्ष में करने के लिए अभी से पृष्ठ-भूमि तैयार की जाने लगी है! इस राज्य को आने जाने वाले लोगो को मेरी यही सलाह रहेगी कि वहां जब तक चुनाव नही हो जाते , तब तक सर्वप्रथम आत्मरक्षा बाद को अन्य कार्य है, क्योंकि संकीर्ण स्वार्थों के लिए ऐंसी हरकते फिर दोहराई जा सकती है! इन सरकारों के भरोसे मत रहिये, अगर मान भी लें कि यह सिर्फ एक माओ-नक्सली कृत्य ही है, तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि माववादियों की सप्ताह भर के विरोध की पूर्व धमकी के बावजूद भी निर्दोष नागरिकों के जानमाल की सुरक्षा की कोई पुख्ता व्यवस्था नही की गई!

19 comments:

  1. और रेल विभाग तथा होम मिनिस्ट्री में ठन गयी है ? एक कहता है आतंकवादी कार्यवाही है और दूसरा रेल की लापरवाही -
    और इतनी जाने चली गयीं -चुलू भर पानी में डूब मरे ये सब !

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  2. बहुत सही गोदियाल जी इसको कहते है किसी मुद्दे पड़ सारे मतभेद को भूल कर एकजुटता के साथ सत्य और न्याय की खोज ईमानदारी से करने का प्रयास करना / इस ईमानदारी भरे विवेचना के लिए धन्यवाद / गोदियाल जी हम इसी के लिए एक सशक्त संगठन चाहते हैं जो सरकार में बैठे शेर की खाल ओढ़े गीदरों और भेड़ियों का असली चेहरा जनता को दिखाने का प्रयास करे और इस कार्य के लिए साधन,संसाधन व सुरक्षा पहुँचाने का काम इस संगठन का हो क्योकि मिडिया तो मुर्गी पकरना और गोबर उठाना तथा महिलाओं के मांसल सौन्दर्य को दिखाने में मस्त है /

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  3. एक एक नेता की सुरक्षा के लिए पूरी की पूरी फ़ौज लगा दी जाती है .......... और यहाँ अब तर्क यह दिया जाता है कि सेना का उपयोग नहीं होगा ! जनता क्या सिर्फ़ मरने के लिए है ?? समस्या पालने की ऐसी क्या जरूरत है ?? क्यों नहीं आर या पार का हल निकला जा रहा है!! कब तक युही बलि का बकरा बनाया जाता रहेगा हमको?? क्या मुआवजा उस कमी को पूरा कर सकता है जो किसी के मारे जाने से होती है........... नहीं !! सरकार पूरी तरह विफल है जनता के हितो की रक्षा करने में !

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  4. aapne bahut kaargar aur sahi kaha..

    umda post !

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  5. निरीह जनता राजनैतिक इच्‍छाशक्ति और बयानबाजियों से अब त्रस्‍त हो चुकी है पर ये सबकुछ झेलने के लिए विवश है.

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  6. सादर वन्दे !
    माओवादी जनता को मारते हैं, नेता जनता को मरवाते हैं, कारण इनमे से कोई हो मरती आम जनता है, क्या येसा समय नहीं आ रहा जब खुद जनता इन दोनों को मारने के लिए उठ खड़ी होगी! ऐसा क्यों नहीं हो रहा है ? ऐसा कब होगा ? और अब मुझे लगता है आम जनता जिस भी नेता को देखे पत्थर लेकर दौडाए, इनका घर से निकलना दूभर कर दे, लेकिन कैसे , कब ?
    जिस दिन ऐसा हो गया, फैसला अपने आप हो जायेगा ! लेकिन कब , कैसे ?
    रत्नेश त्रिपाठी

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  7. इसे केवल माओवादी और नक्सली कृत्य मान लेना वर्तमान सत्ताधारियों को उन के गुनाहों से बरी कर देना है।

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  8. गोदियाल जी माओवादी आतंकवादीयों को कांग्रेस समेत सभी सेकुलर गिरोह के गद्दार नेताओं ने पाल पोस कर बड़ा किया है.अब यही गद्दार नेता इनके हाथों निर्दोशों को मरवाने में पकर महसूस कर रहे हैं आपने देख नहीं कि जब गृह मन्त्री ने माओवादी आतंकवादियों के विरूद्ध कार्यवाही करने की बात कही तो किस तरह एंटोनियो उर्फ सोनिया नेहरू,दिरविजय सिंह जैसे भारत के गद्दारों ने उनकी इस योजना को पलीता लगाकर माओवादी आतंकवादियों का हौसला बढ़ाया।

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  9. द्विवेदी जी के कथन से सहमत

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  10. अब फ़िर ड्रामा शुरु होगा, एक दुसरे पर आरोप लगेगे, प्रधान मत्री वा अन्य मत्री आंसू बहाएगे, फ़िर हर मरने वाले को सरकारी खजाने से कुछ रक देने की घोषाणा होगी( दे या यह सब अपनी जेब मै डाले राम जाने)
    अगर मेरे हाथ मै हो तो सब से पहले उन अधिकारियो को पकडू जो इस के जिम्मे दार है, फ़िर उन हरामी नेताओ को जो करोडो रुप्या हर साल रेलबे वजट के नाम से लेते है, ओर एक एक रुपये का हिसाब लू फ़िर इन सब दोषीयो के बंगले, कार जमा पुंजी सरकारी खजाने मै जमा कर के इन्हे किसी वीरान टापू पर छोड आऊं, जहा खुब सारे बाघ ओर शेर बगेरा हो...

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  11. बहुत दुख होता है ऐसे बयानों को सुनकर।

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  12. एक नये स्वतन्त्रता संग्राम की आवश्यकता है... चलेंगे साथ में...

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  13. इन ह्र्दय विदीर्ण करने वाली घटनाओ के लिये विचार व्यक्त करना तो ठीक है, आम आदमियो का ऐसा कौन सा सन्गठन तैयार किया जाय, जो इन समस्याओं से जूझ सके?

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  14. kya kahein........asar kahan hota hai kisi par.

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  15. एक दूसरे पर आरोपों की प्रक्रिया ही चलती रहती है...मारी आम जनता जाती है....बहुत खेदपूर्ण घटना ...

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  16. Ummid hai sarkar ki neend tootegi....

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  17. अति सामयिक दृष्टि ।

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  18. ऐसी घटनायें मन को व्‍यथित कर जाती हैं, आपकी प्रस्‍तुति उसी का स्‍वरूप है ।

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  19. आपकी बात में सच्चाई है ... राजनीति के चलते कुछ भी संभव है अपने देश में ... वैसे भी लोगों की जान तो बहुत सस्ती है देश में ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।