आपको नहीं लगता कि हमारे प्रधानमंत्री के पास अब बोलने के लिए भी कुछ नहीं बचा? जो इंसान खुद दूसरों की कृपा पर निर्भर हो , वह देश को क्या ख़ाक आत्मनिर्भर बनाने के सपने दिखाएगा? वे कहते है कि मैं तो रिटायर नहीं होना चाहता, मगर यदि राहुल जी आना चाहेंगे तो में रिटायर हो जाउंगा ! आत्मसम्मान तो मानो जैसे इन्होने कहीं पोटली में बांधकर किसी गहरे सूखे कुंए में डाल दिया हो! ईमानदारी का चोला ओढने वाला कोई शख्स अगर अपने उस मंत्री का बचाव कर रहा हो, जिसने सीधे-सीधे देश को ६० हजार करोड़ का चूना लगा दिया हो, तो वह कैसा ईमानदार ?
अगर देखा जाए तो यह जो गठबंधन सरकारों का दौर इस लोकतंत्र में आया है, वह राजनीति में भ्रष्ट लोगो के लिए एक वरदान की तरह है! राजनेता का पिछले सत्र में कैसा भी चरित्र और व्यावहारिक रिकॉर्ड रहा हो, बस वह दो-चार अपने गुंडे-मवालियों के साथ जीतकर सदन में पहुच जाए, उसके बाद सत्ता की मलाई उसके मुह पर होती है! किसी की भी कोई प्रत्यक्ष जिम्मेदारी नहीं, हर कोई मजबूरी और एक दूसरे पर दोषारोपण करता है! और कौंग्रेस जैसी पार्टिया ऐसे मौकों पर गठबंधन सरकारों की मजबूरियों की दुहाई देकर वह सब कर रही है, होने दे रही है, जो देश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है, या फिर आगे चलकर घातक सिद्ध होगा ! सवाल यह है कि क्या बहुमत के लिए गठबंधन की आड़ में इन्हें वो सब करने दिया जाये ?
वैसे तो मैं भी जानता हूँ कि मेरा यहाँ इसतरह का सुझाव कोई मायने नहीं रखता, फिर भी कहना चाहूंगा कि अभी भी अगले आम चुनाव के लिए ४ साल का वक्त है और अगर देश का जागरूक नागरिक इस सरकार को चुनाव सुधारों के लिए संविधान में कुछ सशोधन करने को मजबूर करे तो निश्चित तौर पर आगे चलकर यह देशहित में होगा ! क्योंकि आज भ्रष्टाचार की जड़ ऐसी बन गई है कि कोई भी चोर-उचक्का अपने दो चार सदस्य लेकर सरकार में शामिल हो जाता है और फिर मनमानी करता है ! इसे रोकना होगा, वरना यह देश के लिए बहुत घातक सिद्ध होगा! कोई आमूलचूल परिवर्तन की जरुरत नहीं, बस करना सिर्फ इतना है कि संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाये हों ;
१. चुनाव पश्चात कोई भी गठबंधन बनाने पर रोक
२.राष्ट्रपति का चुनाव भी जनता के द्वारा और उसी समय पर जबकि देश में आम-चुनाव हो रहे हो !
३. अधिकतम 4 पार्टियों के बीच चुनावी संघर्ष !
४. यदि कोई भी दल सदन में निर्धारित बहुमत लाने में विफल रहता है तो सरकार उस दल की बनेगी जिसका राष्ट्रपति चुना गया हो, और वह सरकार राष्ट्रपति प्रणाली की तरह राष्ट्रपति ही चलाएगा, यदि किसी दल को पूर्ण बहुमत मिल जाता है तो वह मौजूदा संसदीय प्रणाली के हिसाब से प्रधानमंत्री के अधीनस्थ सरकार चला सकती है! लेकिन चुनाव के बाद कोई भी गठबंधन बना कर सरकार चलाने का दावा नहीं कर सकता !
५. यही सब बातें राज्य सरकारों पर भी लागू हों !
६. आज अपने को जिम्मेदारी से बचने के लिए बहुत सी बाते राज्य सरकारों पर छोड़ दी जाती है और देश का मुखिया साफ़ बच निकलता है !
राज्यों और स्थानीय निकायों से कुछ अधिकार केंद्र को वापस लेने चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि उनका ठीक इस्तेमाल नहीं हुआ ! ऐसी व्यवस्था के जाने चाहिए कि हर नागरिक की सुरक्षा और रहन-सहन की जिम्मेदारी देश के मुखिया की हो !
अंत में यही कहूँगा कि अगर देश को सही दिशा देनी है तो जागो देशवासियों जागो ! अभी हाथ में चार साल का वक्त है !
अगर देखा जाए तो यह जो गठबंधन सरकारों का दौर इस लोकतंत्र में आया है, वह राजनीति में भ्रष्ट लोगो के लिए एक वरदान की तरह है! राजनेता का पिछले सत्र में कैसा भी चरित्र और व्यावहारिक रिकॉर्ड रहा हो, बस वह दो-चार अपने गुंडे-मवालियों के साथ जीतकर सदन में पहुच जाए, उसके बाद सत्ता की मलाई उसके मुह पर होती है! किसी की भी कोई प्रत्यक्ष जिम्मेदारी नहीं, हर कोई मजबूरी और एक दूसरे पर दोषारोपण करता है! और कौंग्रेस जैसी पार्टिया ऐसे मौकों पर गठबंधन सरकारों की मजबूरियों की दुहाई देकर वह सब कर रही है, होने दे रही है, जो देश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है, या फिर आगे चलकर घातक सिद्ध होगा ! सवाल यह है कि क्या बहुमत के लिए गठबंधन की आड़ में इन्हें वो सब करने दिया जाये ?
वैसे तो मैं भी जानता हूँ कि मेरा यहाँ इसतरह का सुझाव कोई मायने नहीं रखता, फिर भी कहना चाहूंगा कि अभी भी अगले आम चुनाव के लिए ४ साल का वक्त है और अगर देश का जागरूक नागरिक इस सरकार को चुनाव सुधारों के लिए संविधान में कुछ सशोधन करने को मजबूर करे तो निश्चित तौर पर आगे चलकर यह देशहित में होगा ! क्योंकि आज भ्रष्टाचार की जड़ ऐसी बन गई है कि कोई भी चोर-उचक्का अपने दो चार सदस्य लेकर सरकार में शामिल हो जाता है और फिर मनमानी करता है ! इसे रोकना होगा, वरना यह देश के लिए बहुत घातक सिद्ध होगा! कोई आमूलचूल परिवर्तन की जरुरत नहीं, बस करना सिर्फ इतना है कि संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाये हों ;
१. चुनाव पश्चात कोई भी गठबंधन बनाने पर रोक
२.राष्ट्रपति का चुनाव भी जनता के द्वारा और उसी समय पर जबकि देश में आम-चुनाव हो रहे हो !
३. अधिकतम 4 पार्टियों के बीच चुनावी संघर्ष !
४. यदि कोई भी दल सदन में निर्धारित बहुमत लाने में विफल रहता है तो सरकार उस दल की बनेगी जिसका राष्ट्रपति चुना गया हो, और वह सरकार राष्ट्रपति प्रणाली की तरह राष्ट्रपति ही चलाएगा, यदि किसी दल को पूर्ण बहुमत मिल जाता है तो वह मौजूदा संसदीय प्रणाली के हिसाब से प्रधानमंत्री के अधीनस्थ सरकार चला सकती है! लेकिन चुनाव के बाद कोई भी गठबंधन बना कर सरकार चलाने का दावा नहीं कर सकता !
५. यही सब बातें राज्य सरकारों पर भी लागू हों !
६. आज अपने को जिम्मेदारी से बचने के लिए बहुत सी बाते राज्य सरकारों पर छोड़ दी जाती है और देश का मुखिया साफ़ बच निकलता है !
राज्यों और स्थानीय निकायों से कुछ अधिकार केंद्र को वापस लेने चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि उनका ठीक इस्तेमाल नहीं हुआ ! ऐसी व्यवस्था के जाने चाहिए कि हर नागरिक की सुरक्षा और रहन-सहन की जिम्मेदारी देश के मुखिया की हो !
अंत में यही कहूँगा कि अगर देश को सही दिशा देनी है तो जागो देशवासियों जागो ! अभी हाथ में चार साल का वक्त है !
काश! आपके द्वारा मेंशन की हुई सारी व्यवस्थाएं ...हमारे संविधान में हो.... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट...
ReplyDeleteगोदियाल जी आपके सुझाव बहुत अच्छे हैं पर देशविरोधी इन्हें मानने वाले नहीं इसीलिए हमें लगता कि सैनिक शाशन ही एकमात्र विकलप है।
ReplyDeleteआपका लेख आपके मन में देशहित की दहक रही ज्वाला को दिखाता है।
aapki baaton se sehmay hun aur sath hi sath vote me inme se koi nahi ka bhi vikalp diya jaaye jiski sankhya jyada hone par ummeed var badal kar dubara chunav kiye jaaye...waise yah pravdhan hamare samvidhaan me hai..par ham anbhigy hain...
ReplyDeleteजागेंगे जी जरूर जागेंगे!
ReplyDeleteबचे है पूरे चार साल.
देख आज देश का हाल और
आप जैसे विद्वानों की लेखनी का कमाल
जरूर जागेंगे!
कुंवर जी,
जागो देशवासियों जागो
ReplyDeletejai hind
काश!! आपकी आवाज सुन कर लोग जागें.
ReplyDeleteमनमोहन सिंह नहीं, 'म्याऊ-म्याऊ सिंह' कहिये।
ReplyDelete4th Vote n Nice Post .रचनाएं अपने रचनाकार का परिचय कराती हैं ।
ReplyDeletehttp://blogvani.com/blogs/blog/15882
हमारा मानना है की हम लोग भी दोषी है साडी व्यवस्था के सड़ जाने में / अब भी वक्त है अगर हमलोग मिलकर प्रयास करें तो स्थिति को बदला जा सकता है / ये कहाँ ले जायेंगे इनका तो काम ही है नरक में धकेलने का /
ReplyDelete4th Vote n Nice Post .रचनाएं अपने रचनाकार का परिचय कराती हैं ।
ReplyDeletehttp://blogvani.com/blogs/blog/15882
1) सभी लोकसभा उम्मीदवारों हेतु न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता आवश्यक हो।
ReplyDelete2) मतों का "वेटेज" भी अलग-अलग हो, जैसे पढ़े-लिखे का वोट 4 वोट बराबर, अनपढ़-नशेड़ी-डाकू इत्यादि के वोट मात्र 1 बराबर :)
बहुत सही सुझाव दिए है आपने पर अफ़सोस है कि कोई भी सुझाव अमल में नहीं लाया जायेगा ...................जब जब चुनाव होते है यह सब बाते अपने आप विलुप्त हो जाती है हम सब के दिमाग से ..........शायद कोई जादू सा चल जाता है हम पर चनावो में !
ReplyDeleteबहुत अच्छे सुझाव हैं....जागरूक करती हुई पोस्ट...अब पानी सिर के ऊपर से गुज़र गया है...अब तो सच ही जाग जाओ...
ReplyDeleteदेशवासियों अभी भी जागरुक हो जाओ...
ReplyDeleteबाते तो सही हैं. राष्ट्रीय सरकार भी चल सकती है।
ReplyDeleteहमारे देश में इतनी विविधता है कि सब को एक ही सोच से संचालित हो सकें संभव नहीं है। आपकी सारी राय बेहद ही उचित हैं।
जहां तक राज्यों को मिले अधिकार की बात है, तो उस पर केंद्र चाहे तो उस पर अंकुश लगा सकता है। पर केंद्र इतना कमजोर है कि उसकी हिम्मत नहीं होती राज्यों में दखल देने की।
अब तक अगर दिया भी है तो विरोधी दल की सरकार को गिराने के लिए या तंग करने के लिए। .....जब नक्सली हमले में सीआरपीएफ पिटी तो कहा जाने लगा है कि पुलिस मदद नहीं करती, सुरक्षा राज्यों का विषय है..देश के गंहमंत्री सीमित अधिकार की बात करते हैं.
1.कई संवैधानिक रास्ते हैं जिस से आसानी से राज्यों को कंट्रोल किया जा सकता है।
2.राजनीतिक इचछाशक्ति हो तो सही।
3.सत्ता में आने के लिए राज्यों के टुकड़े हो रहे हैं पर कोई कुछ बोलता नहीं। जनता आगे आती नहीं
मतदान स्वैच्छिक नहीं बल्कि अनिवार्य होना चाहिये. वैसे राज्य सरकारों की आवश्यकता है क्या?
ReplyDelete"काम का ना काज का
ReplyDeleteना अपनी ही आवाज का
वो तो मानो संगीत हैं किसी दूसरे के साज का
प्रधानमंत्री हैं बस नाम का
कमाल हैं ये सोनिया के हाथ का "
kash kanoondano ke kano tak bhi ye bat pahuche.
ReplyDeleteKATHAPUTALI.....देशवासियों जागो .
ReplyDelete.अब तो जाग जाओ.......
ReplyDeleteआपकी बातों से ज़्यादातर सहमत ही हूँ. कांग्रेस क्या अधिकाँश राजनैतिक पार्टियां व्यक्तिवादी ही हैं. वैसे प्रशासन हर स्तर पर हो मगर निकम्मा न हो.
ReplyDeleteसुझाव बहुत अच्छा है..अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट...
ReplyDeleteबेहतरीन सुझाव दिए हैं अपने. बहुत बढ़िया लेख.
ReplyDeletei agree with u
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