वोये, लख-लख बधाईयाँ तेनु "नेताजी", "भाई", "गुरु", 'उस्ताद" और 'बोस" जी ! अब तो आपके उद्योग के लिए देश की सर्वोच्च न्यायालय की ओर से भी एक और रियायत मिल गई है ! अब देखना चंद हफ़्तों में ही आपकी कम्पनियों के शेयर किन ऊँचाइयों को छूंते है !
यह तो थी इस दिन-दुगने रात-चौगुने फलते-फूलते उद्योग को मेरी तरफ से शुभकामनाये ! मगर साथ ही यह एक गंभीर चिंता का विषय भी है, कि "महा-महिम" ( पता नहीं यह गुलामों वाली भाषा बोलना हम कब बंद करेंगे ) सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय से जिसमे उसने जांच एजेंसियों द्वारा संदिग्ध के नारको टेस्ट और ब्रेन मैपिंग को अवैध करार दिया है, अपराध जगत को एक और निरंकुशता या यूँ कहे कि मुगली घुट्टी मिल गई है! यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हम हिन्दुस्तानियों में स्वजागृति की हमेशा कमी रही है, और जो बात हम डंडे के बल पर ज्यादा अच्छे ढंग से समझ पाते है, वह प्यार-प्रेम से नहीं समझ पाते ! ( We deserve to be ruled ) और काफी हद तक वो कहावत भी हम पर चरितार्थ होती है " उंगली पकड़कर पौंचा पकड़ना " ! यह मैं भी मानता हूँ कि नारको टेस्ट ने आजतक जांच एजेंसियों को बहुत ज्यादा उत्साहित परिणाम नहीं दिए, मगर एक जघन्य अपराधी के दिल से पहले तो यह खौफ खत्म कर देना कि उसे हमारे तथाकथित क़ानूनवेताओं, विद्वानों, और मानवाधिकार संस्थाओं के चलते मृत्यु-दंड जैसा कठोर दंड नहीं मिलने वाला, उसके ऊपर से यह भी खौफ ख़त्म कर देना कि जांच एजेंसिया उससे सच नहीं उगलवा सकती, पुलिस उससे सबूत ढूढने के लिए टॉर्चर भी नहीं कर सकती, भला कहाँ की समझदारी है ? देश में पहले से ही अपराध अपने चरम पर है ! इन सबके चलते भला अपराधी को अब डर किस बात का रहेगा? फांसी होनी नहीं, नौकरी नहीं है, खाने को कुछ नहीं है, निकम्मे हो तो राह चलते किसी को भी चाकू घोंप दो , आपको जेल हो जायेगी ! और इस देश में एक आदमी को भले ही दो जून की रोटी ठीक से न मिलती हो, मगर जेलों में तो खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए भी निरीक्षक है , डाक्टर लगे है ! हा-हा , ज्यादा न कहकर बस यही कहूंगा कि भगवान् बचाए इस देश को !
यह तो थी इस दिन-दुगने रात-चौगुने फलते-फूलते उद्योग को मेरी तरफ से शुभकामनाये ! मगर साथ ही यह एक गंभीर चिंता का विषय भी है, कि "महा-महिम" ( पता नहीं यह गुलामों वाली भाषा बोलना हम कब बंद करेंगे ) सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय से जिसमे उसने जांच एजेंसियों द्वारा संदिग्ध के नारको टेस्ट और ब्रेन मैपिंग को अवैध करार दिया है, अपराध जगत को एक और निरंकुशता या यूँ कहे कि मुगली घुट्टी मिल गई है! यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हम हिन्दुस्तानियों में स्वजागृति की हमेशा कमी रही है, और जो बात हम डंडे के बल पर ज्यादा अच्छे ढंग से समझ पाते है, वह प्यार-प्रेम से नहीं समझ पाते ! ( We deserve to be ruled ) और काफी हद तक वो कहावत भी हम पर चरितार्थ होती है " उंगली पकड़कर पौंचा पकड़ना " ! यह मैं भी मानता हूँ कि नारको टेस्ट ने आजतक जांच एजेंसियों को बहुत ज्यादा उत्साहित परिणाम नहीं दिए, मगर एक जघन्य अपराधी के दिल से पहले तो यह खौफ खत्म कर देना कि उसे हमारे तथाकथित क़ानूनवेताओं, विद्वानों, और मानवाधिकार संस्थाओं के चलते मृत्यु-दंड जैसा कठोर दंड नहीं मिलने वाला, उसके ऊपर से यह भी खौफ ख़त्म कर देना कि जांच एजेंसिया उससे सच नहीं उगलवा सकती, पुलिस उससे सबूत ढूढने के लिए टॉर्चर भी नहीं कर सकती, भला कहाँ की समझदारी है ? देश में पहले से ही अपराध अपने चरम पर है ! इन सबके चलते भला अपराधी को अब डर किस बात का रहेगा? फांसी होनी नहीं, नौकरी नहीं है, खाने को कुछ नहीं है, निकम्मे हो तो राह चलते किसी को भी चाकू घोंप दो , आपको जेल हो जायेगी ! और इस देश में एक आदमी को भले ही दो जून की रोटी ठीक से न मिलती हो, मगर जेलों में तो खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए भी निरीक्षक है , डाक्टर लगे है ! हा-हा , ज्यादा न कहकर बस यही कहूंगा कि भगवान् बचाए इस देश को !
Great!!!
ReplyDeleteगोदियाल जी
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा …………………एक गरीब को 2 वक्त की बेशक रोटी न मिले मगर अपराधी तो सरकारी मेहमान होता है उसकी आवभगत मे कोई कमी नही होनी चाहिये……………………अब तो लाइसेंस मिल गया है तो क्यूँ न यहाँ अपराध बढें।
वो ऊपर शायद गलत टाइप हो गया है उसे सही कर लें…………पोंछा नही पौंचा आना है।
सत्य कहा आपने साहब
ReplyDeleteइसमें बिलकुल सच्चाई हैं.
बहुत-बहुत शुक्रिया वन्दना जी, टंकण सुधार कर लिया है !
ReplyDeleteइस देश को भगवान भी नहीं बचा सकता..
ReplyDeleteदुनिया भले ही इक्कीसवी सदी की तरफ जा रही है, देश तो गंवार ही बन रहा है. आज भी न्यायलय में झूठी गवाही वैज्ञानिक परीक्षणों से ज्यादा मायने रखती है फिर चाहे गवाह बयान देकर अपने खुद के बयान से रोज मुकर जाए.
ReplyDeleteदेश की इतनी बर्बादी ये न्याय मूर्ति (न्याय करने के लिए जो मूर्ति के सामान मरे हुए है इसलिए न्याय मूर्ति) ऐसे ही नहीं करते. इतना बेडा गर्क करने के लिए इनको पैसे भी मिलते है और अब तो देश की विभिन्न निचली अदालतों में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों के वेतनमान और भी बड़ा दिए गए है. अब इनकी तनख्वाह मौजूदा तनख्वाह से करीब तीन गुनी हो जाएगी और ये जनवरी २००६ से लागु मानी जायेगी. जय हो.....
गोदियाल जी
ReplyDeleteIs desh ko bharvan nahi, apradhi hi bacha sakte hai.
और उद्योग को बढ़ावा भी खूब मिलेगा
ReplyDeleteआप देख लेना
उसके ऊपर से यह भी खौफ ख़त्म कर देना कि जांच एजेंसिया उससे सच नहीं उगलवा सकती, पुलिस उससे सबूत ढूढने के लिए टॉर्चर भी नहीं कर सकती, भला कहाँ की समझदारी है ? देश में पहले से ही अपराध अपने चरम पर है ! इन सबके चलते भला अपराधी को अब डर किस बात का रहेगा? फांसी होनी नहीं, नौकरी नहीं है, खाने को कुछ नहीं है, निकम्मे हो तो राह चलते किसी को भी चाकू घोंप दो
ReplyDeleteहा कुछ ऐसा ही हो रहा हैं आजकल .
देखिये,आप सब भावुक हो रहे है!भावनाओं में बह कर आप गलत-सही में फर्क नहीं कर पा रहे है!और हाँ!आपके पास कोई और काम-वाम नहीं है क्या,जो ऐसे-वसे मुद्दे पे बहस शुरू कर दी!भई जो हो रहा है वो ठीक हो रहा है,जो होगा वो भी ठीक ही होगा,हम-आप तो व्यर्थ में परेशान हो रहे है......
ReplyDelete@%$#%^&*&^^#$#^
#$%@&$%
कुंवर जी,
यह तो थी इस दिन-दुगने रात-चौगुने फलते-फूलते उद्योग को मेरी तरफ से शुभकामनाये !
ReplyDeletewah kya bat hai sarkar. narayan narayan
ReplyDeleteगुरुजी काहे परेशान हो रहे हैं…
ReplyDeleteअभी एनकाउंटर वाला ऑप्शन खुला है और सदा रहेगा… बस एनकाउंटर करने वाला पुलिसिया थोड़ा "समझदार" होना चाहिये और उसे पुराने केसों की फ़ाइलें पढ़कर सीख लेना चाहिये कि "सेफ़-एनकाउंटर" कैसे किया जाता है… बस।
फ़िर सुप्रीम कोर्ट क्या उखाड़ लेगा :)
बिल्कुल सही कहा आपने ।
ReplyDeleteश्रीमान सुरेश जी, पुलिस एनकाउन्टर ऐसे अपराधियों का करती है जो टुच्चे होते हैं या फिर उनका जो पुलिस का मुंह बन्द नहीं कर सकते या उनका जिनका धर्मनिरपेक्ष ताकतें करवाती हैं... या कभी कभार निर्दोष फौजी या छात्रों का... जब रा, आई बी जैसी एजेंसियां हिट नहीं करतीं तो फिर इनका क्या कहना..
ReplyDeleteभगवान् बचाए !
ReplyDeleteसरस.............
ReplyDeleteबहुत खूब........
और इस देश में एक आदमी को भले ही दो जून की रोटी ठीक से न मिलती हो, मगर जेलों में तो खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए भी निरीक्षक है , डाक्टर लगे है !'
ReplyDeleteआम आदमी आम होता है गोदियाल सर पर जेल में पहुँचने वाला खास. और फिर आम और खास में कुछ तो फर्क होना ही चाहिये...
आपकी दृष्टि का जवाब नहीं
गौदियाल जी ... हम तो समझे थे इस देश को भगवान ही चला रहा है ... अब भगवान चला रहा है तो बचाएग भी ज़रूर ...
ReplyDeleteमेरे जान पहचान के एक बुज़ुर्ग व्यक्ति कहते थे कि इस देश को देखने से यकीन हो जाता है कि भगवान है ... क्यूंकि इतनी खराब हालत में भी यह देश टिका हुआ है ... ये भगवान का चमत्कार ही तो है !
ReplyDeleteफांसी होनी नहीं, नौकरी नहीं है, खाने को कुछ नहीं है, निकम्मे हो तो राह चलते किसी को भी चाकू घोंप दो , आपको जेल हो जायेगी ! और इस देश में एक आदमी को भले ही दो जून की रोटी ठीक से न मिलती हो, मगर जेलों में तो खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए भी निरीक्षक है , डाक्टर लगे है ! हा-हा ,
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने....जेल में कम से कम रोटी तो मिलेगी....