आज उदित है तपस, तुम्हे जलना है,
सांझ दस्तक देगी , तुम्हे ढलना है।
आसान न सही जोखिमी जिन्दगी,
पहाड़ सा डटना, हिम सा गलना है।
छीने न कोई पवन से खुसबूओ को,
चट्टान बन तूफानों का रुख बदलना है।
थककर रोक लो कदम, मुमकिन नहीं,
अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है।
सांझ दस्तक देगी , तुम्हे ढलना है।
आसान न सही जोखिमी जिन्दगी,
पहाड़ सा डटना, हिम सा गलना है।
छीने न कोई पवन से खुसबूओ को,
चट्टान बन तूफानों का रुख बदलना है।
थककर रोक लो कदम, मुमकिन नहीं,
अभी तुम्हे तो बहुत दूर तक चलना है।
waah josh dila diya sir aapne...
ReplyDeleteशुक्रिया दिलीप जी, आप लोगो के उत्साह वर्धन से निसंदेह आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है , और यह हर एक उस सीरियस ब्लोगर के लिए अहम् है , जो वाकई कुश हट के लिखना चाहता है, जिसमे से एक आप भी हो !
ReplyDeleteगोदियाल जी अगर आप बुरा न मानें तो हमें हिन्दूओं से आपके माध्यम से सिर्फ इतना कहना है
ReplyDeleteआपभूल गए,माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
आप कबितायें प्रेरणादायक लिखते हैं
आपने बहुत अच्छा लिखा है, खासकर उनके लिये जो निरपेक्ष हो चुके हैं>..
ReplyDeleteओजपूर्ण प्रेरक पंक्तियां हैं गोदियाल जी ।
ReplyDeleteवातावरण से छीन के कोई ले गया है खुसबूओ को !
ReplyDeleteतुम्हे चट्टान बनके उन हवाओं का रुख बदलना है !!
ओज की गज़ल और भावपूर्ण
आलस तज कर उठ मतवाले
ReplyDeleteदूर निकल गए दुनिए वाले ....ये मेरे पिताजी बोला करते थे ....किसी ने लिखा है पर अच्छा लिखा है
राम त्यागी
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/
उत्साह बढाती कविता।
ReplyDeleteआत्मविश्वास बढ़ती हुई एक सुंदर रचना..गोदियाल जी बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteप्रेरणादायक और रगों जोश भर देने वाली एक ........ शानदार प्रस्तुति
ReplyDeletebehad sundar panktiyan
ReplyDeleteएक प्रेरणादायी सकारात्मक सोच पैदा करती रचना...आज मुझे जरुरत भी थी ऐसी रचना पढ़ने की..लगा जैसे आपने मेरे लिए ही रच दी है.
ReplyDeleteगोदियाल साहब,
ReplyDeleteबहुत खूब।
असर जरूर होगा आपकी बातों का।
आभार।
प्रेरक सुंदर रचना...
ReplyDeleteएक अपील:
ReplyDeleteविवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
जबरदस्त वाली बात है जी ये तो....
ReplyDelete"भूल गए, माँ ने तुम्हे शेरनी का सा दूध पिलाया था !
तुम्हे सिखाया किसने, तुम्हारा काम हाथ मलना है !!"
जब तक आप सब हो स्मरण कराने के लिए तब तक कैसे हम बस हाथ मल कर ही रह जायेंगे!
जय हिंद!
कुंवर जी,
ओज, तेज और उमंग के साथ विश्वास से भरी रचना
ReplyDeleteआभार
.........प्रेरणादायक
ReplyDelete